पहाड़ चीर निकाली नहर… बबिता का कमाल

सुबह से देर रात तक केवल और केवल पानी की बूंद-बूंद जुटाते देख बबिता ने कुछ करने की ठानी. जब उसने पहाड़ काट कर नहर बनाने की बात की तो ग्रामीणों ने बबिता के पिता को कहा - " तेरी बेटी को समझा. वह पागल हो गई." पर बबिता को तो धुन सवार थी.

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फोटो क्रेडिट :प्रीति प्रकृति

महज 21 साल की लड़की और अपने बलबूते पर पहाड़ चीर दिया. कोई छोटी-मोटी पहाड़ी नहीं बल्कि पूरे 107 मीटर का पहाड़ और वह यहीं नहीं रुकी. पहाड़ के बीच नहर बना कर पानी अपने गांव के सूखे तालाब तक ले आई. अब गांव के हर घर का मटका पानी से लबालब है. तालाब में पानी हिलोरे मार रहा है. वाटर गर्ल के रूप में इस वक़्त देश के नक़्शे पर छाई यह है छतरपुर जिले के गांव अगरौठा की बबिता राजपूत. इस बड़ी उपलब्धि पर जल शक्ति मंत्रालय ने "जल प्रहरी अवार्ड" दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल मन की बात में ज़िक्र किया. बबिता की ज़िद और जूनून ने ऐसा कमाल कर दिखाया. माउंटेन गर्ल बबिता और पानी को तरसते गांव की कहानी है.बुंदेलखंड में बबिता वाटर हीरो बन कर उभरी है.        

जब गांव में महिलाओं की ज़िंदगी पानी की जद्दोजहद पर आकर टिक गई. सुबह से देर रात तक केवल और केवल पानी की बूंद-बूंद जुटाते देख बबिता ने कुछ करने की ठानी.  जब उसने  पहाड़ काट कर नहर बनाने की बात की तो ग्रामीणों ने बबिता के पिता को कहा - "तेरी बेटी को समझा. वह पागल हो गई."  पर बबिता को तो धुन सवार थी.

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फोटो क्रेडिट :प्रीति प्रकृति

बबिता कहती है - " मुझसे  औरतों की यह तकलीफ रोज-रोज  देखी नहीं जाती. 12 साल की उम्र से मैं भी पानी भरने लगी. स्कूल कई बार छूट जाता. कई बार औरतों को पिटते  देखा. यह सब देख  मैंने किसी की परवाह न की. मैंने यही बात गांव की महिलाओं से कही, और दस महिलाओं को इस काम के लिए तैयार किया. हम अपने मिशन पर निकल पड़े." शुरुआत में बड़ी चुनौती थी. रोज यह क्रम बनता चला गया. परमार्थ समाज सेवी संस्था के डॉ संजय सिंह और मानवेन्द्र सिंह ने मनोबल बढ़ाया. सभी को ट्रेनिंग दी. लगभग डेढ़ साल तक सर्दी ,गर्मी और बरसात हर मौसम में ये पहाड़ काटते रहे. नहर बनती चली गई. साथ में काम करने वाली रामदेवी और गुड़िया कहती हैं -" पानी के मटके भरते-भरते सुबह से रात हो जाती. बबिता की सलाह पसंद आई. हमने साथ दिया. " बबिता के पिता मलखान लौधी कहते हैं -" मेरी बेटी ने पानी की कीमत को समझाया. पहले दो हजार की आबादी वाले गांव में सिर्फ दो हैंडपंप पर लगातार भीड़ लगी रहती थी." 

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फोटो क्रेडिट :प्रीति प्रकृति

इस नहर बनाने के बाद छह चेक डेम और आउट लेट बनाए. पहले ये पानी बछेड़ी नदी में व्यर्थ बह जाता. बुंदेलखंड पैकेज में 70 एकड़ का तालाब बन गया. पर गर्मी आने के पहले सूख जाता. बबिता आगे बताती है -" आखिर बारिश की बूंदें ठहरी. देखते ही देखते पानी हमारे गांव सूखे तालाब में आ गया. अब खेतों में भी घरों के साथ पानी मिल रहा है. मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मन की बात में सम्मान मिला." गांव बबिता के नाम से पहचाने जाने लगा। बबिता की मां सिया बाई कहती हैं -" मुझे शुरू में बेटी की ज़िद और गांव वालों के विरोध की चिंता थी। अब तो सारा गांव बेटी मानने लगा।" बबिता इन दिनों 75 पंचायतों में पानी संरक्षण और महत्व बता कर लोगों को जागरूक कर रही है।    

रविवार विचार का मिशन ऐसे रियल हीरो को समाज के सामने लाना है. गर्मी की दस्तक के बीच अपने-अपने इलाकों में हर व्यक्ति को व्यर्थ पानी सहेज कर बबिता जैसी सोच बनाना होगी.

मानवेन्द्र सिंह डॉ संजय सिंह माउंटेन गर्ल जल प्रहरी अवार्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी