पति, पत्नी और SHG

उस वक़्त चिंताओं का पहाड़ टूट पड़ा जब पता चला कि वो फैक्ट्री बंद हो गई है जहां उनके पति काम किया करते थे. आखिर उनका स्वयं सहायता समूह ही पहचान बना. जब पति भी समूह में काम करने को तैयार हुए तब सब के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई. 

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यूनिट में पापड़ सुखाते हुए हर्षा (Image Credits: Ravivar vichar)

बड़वानी जिले के आदिवासी ब्लॉक ठीकरी के जय भवानी स्वयं सहायता समूह की हर्षा धर्माल और दीपाली केंगडे ने अपनी मेहनत और रात-दिन एक कर ऐसी पहचान बनाई कि उनके हाथों से तैयार मसाला,पापड़ और सेवइयां का स्वाद निमाड़ और मालवा तक पहुंच गया. हर्षा कहती है -" हमारे जय भवानी समूह की दीदियां छोटे-छोटे समूह के काम कर रहीं थी. तभी पापड़ बनाने की मशीन ली और काम शुरू किया.देखते ही देखते हमारी पहचान बनने लगी.अब एक मशीन और लगाएंगे." धीरे -धीरे दिन फिरने लगे. श्री गणेश स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष वैशाली चौधरी बताती हैं - " हमारे साथ हर्षा और दीपाली ने काम शुरू किया. हमारे साथ अब कई दीदियां इसी तरह जुड़ीं और आत्मनिर्भर हो गई." हर्षा की पापड़ यूनिट में मिलेट्स को भी महत्व दिया गया. यहां रागी मोटे अनाज के भी पापड़ बन रहे,जिसे पसंद किया जा रहा है. हर्षा के पति गिरिधर कहते हैं-" जब फैक्ट्री बंद हुई. लगा जीवन ख़त्म हो गया. लेकिन मुझे ख़ुशी है कि अपनी पत्नी हर्षा की  यूनिट में काम कर रहा हूं ."

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यूनिट में सिवइयां सुखाते हुए दीपाली (Image Credits: Ravivar vichar)

यह उपलब्धि यूहीं नहीं मिली.दीपाली और हर्षा पर उस वक़्त चिंताओं का पहाड़ टूट पड़ा जब उन्हें पता चला कि वो फैक्ट्री बंद हो गई है जहां उनके पति काम किया करते थे . घर चलने का साधन नहीं बचा. उनके पैरों की ज़मीन खिसक गई. बच्चों की पढ़ाई और घर चलाने की चिंता... लेकिन कुछ पल में ही उन्होंने खुद को संभाला. और फिर सोचा, नई ज़िंदगी शुरू करेंगे, नए कारोबार से. आखिर उनका स्वयं सहायता समूह ही पहचान बना. जब पति भी समूह में काम करने को तैयार हुए तब सब के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई. 

इसी कैंपस में आप जब जाएंगे, बाहर गैलरी में सेवइयें बड़े सुंदर तरीके से सूखते और बनाते हुए दीपाली दिख जाएंगी. इनकी संघर्ष की  कहानी ख़त्म और सफलता रफ़्तार पकड़ चुकी है. दीपाली कहती हैं - "जब मेरे पति प्रमोद बेरोजगार हो गए,सबने हंसी उड़ाई. मैंने हिम्मत नहीं हारी. उदास पति को सहारा दिया और यूनिट से जोड़ लिया. हमारा काम और अच्छे से सेट हो गया. यह सब आजीविका मिशन का ही असर था कि हम आत्मनिर्भर बन सके. "समूह में बनाई जा रही सिवईयें लोगों द्वारा बहुत पसंद की जा रही है. दीपाली के पति प्रमोद कहते हैं - "शुरू में लोग कहते थे, पत्नी की नौकरी कर रहे हैं. हमने परवाह नहीं की. अब हम अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा पा रहे हैं. " 

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रैक में पापड़ सुखा कर पैक किए जाते हैं (Image Credits: Ravivar vichar)

जिले में इस यूनिट को देखने पूर्व राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ,राज्यपाल मंगू भाई पटेल भी आ चुके हैं. इस कैंपस में लगभग साढ़े तीन सौ से ज्यादा महिलाएं रोजगार पा चुकी हैं.आजीविका मिशन के जिला परियोजना प्रबंधक योगेश तिवारी कहते हैं - "ठीकरी में संचालित सभी यूनिट मिसाल हैं. यहां सिलाई, मसाला उद्योग, पापड़ सहित कई यूनिट काम कर रहीं हैं. इस ग्राम संगठन को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू से मिलने का भी मौका मिला है." लगभग छह हजार महिलाएं इस ब्लॉक में अपने-अपने क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बन कर सम्मान की ज़िंदगी जी रहीं हैं. 

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