हर दिन सुबह उठ कर जब तक हाथ में चाय-बिस्कुट ना हो, दिन की शुरुआत ही नहीं होती. यह सिर्फ़ कुछ घरों की नहीं बल्कि देश के हर घर की कहानी है. बच्चे हो या बूढ़े, बिस्कुट और कुकीज़ खाना किसे पसंद नहीं होता और अगर ये ही कुकीज़ स्वाद के साथ साथ सेहत भी दे तो? यही सोच रखकर नक्सल प्रभावित 'रेंगाखार जंगल' में महिलाएं 'कोदो-कुटकी' से कुकीज़ बना रहीं है. रेंगाखार में प्रोसेसिंग प्लांट लगा है, जहां कोदो- कुटकी और रागी से कई तरह से प्रोडक्ट तैयार किया जा रहे हैं. इस क्षेत्र की महिलाएं ना सिर्फ़ खुद आत्मनिर्भर बनने की तरफ कदम बढ़ा रही है बल्कि अपनी जैसे दूसरी महिलाओं को भी रोजगार दे रहीं है.
कोदो-कुटकी, रागी से कुकीज बनाने का काम रेंगाखार की 'नई किरण स्वयं सहायता समूह' की महिलाओं ने शुरू करा. समूह की अध्यक्ष कुसुम अग्रवाल ने बताया - "इसकी कीमत वर्तमान में 500 रुपए किलो है। अभी तक 30 किलो कुकीज की बिक्री की जा चुकी है. प्रति किलो 500 रुपए की दर से अभी तक 15 हजार रुपए का व्यापार कर चुके हैं, जिससे समूह को फायदा हुआ है." उन्होंने बताया - "कुकीज बनाने के लिए कोदो-कुटकी, रागी का पाउडर, आटा, शक्कर, ग्लूकोज पाउडर, दूध पाउडर, इलायची पावडर खोपरा, चॉकलेट पावडर, चॉकलेट चिप्स मार्ग्रीन पेस्ट की ज़रूरत पड़ती है, जिसकी खरीदी रायपुर से की जाती है." रेंगाखार के वन-धन विकास में प्रोसेसिंग प्लांट लगा है जहां कोदो-कुटकी, रागी के लिए 4 तरह की मशीन लगी है. इसकी देख-रेख सिवनीखुर्द की 'जय मां कर्मा समूह' की महिलाएं कर रहीं है. जून 2022 में महिलाओं ने कोदो-कुटकी और रागी से प्रोडक्ट्स बनाना शुरू किया था और अभी तक 10 क्विंटल कोदो खरीदी कर चुकीं हैं. अभी तक 9 क्विंटल 50 किलो प्रोडक्ट बेच चुके हैं.
समूह की महिलाएं बताती हैं, "कोदो-कुटकी, रागी से कुकीज व अन्य प्रोडक्ट पर्याप्त मात्रा में तैयार करते हैं लेकिन इन प्रोडक्ट्स की बिक्री के लिए उनके पास इतना बड़ा मार्केट नहीं है. मार्केट उपलब्ध नहीं होने के कारण नियमित काम नहीं कर पाते हैं." महिलाओं ने कहा, "इसे लेकर प्रशासन को और ध्यान देने की ज़रूरत है." लघु वनोपज समिति के प्रबंधक कमलेश साहू का भी कहना है - "कोदो-कुटकी, रागी वनांचल क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है. लेकिन अत्यधिक मात्र में यहाँ बिक्री नहीं हो पाती."
बहरहाल, यह एक बहुत अच्छी और बड़ी पहल है, जो महिलाओं को रोजगार के अवसर भी प्रदान करेगी और लोग सेहत पर ही उतना ही ध्यान दे पाएंगे. सिर्फ रेंगाखार की महिलाएं ही क्यों, अगर ये पहल पुरे देश की सहज महिलाएं शुरू कर दे तो, वो अपने हालातों को बहुत आसानी से बदल सकतीं है.