'राजा हरीशचंद्र', भारत की सबसे पहली फिल्म, ये तो सब जानते हैं. लेकिन आप में से कितने लोगों को पता हैं कि इस फिल्म की कामियाबी के पीछे एक महिला का हाथ हैं? दादा साहेब फ़ाल्के के निर्देशन में बनी इस फिल्म को परदे तक लाने के लिए सरस्वती बाई फ़ाल्के की मेहनत दिखाई देती है. भारत की सबसे पहली फिल्म बनाने के लिए दादा साहेब को जितनी मदद उनकी पत्नी से मिली उतनी मदद शायद ही कोई कर पाता.
जब यह फिल्म बनाई जा रहीं थी तब खाने से लेकर फिल्म की एडिटिंग जैसी बड़ी चीज़ों की ज़िम्मेदारी भी ली थी सरस्वती बाई फ़ाल्के ने. भले ही नाम हर जगह दादा साहेब फ़ाल्के का लिया जाता हो, लेकिन इस फिल्म को सरस्वती बाई फ़ाल्के के बिना परदे पर नहीं लाया जा सकता था. जब भी दादा साहेब को पैसे की कमी पड़ती थी, तब उन्हें आर्थिक तौर पर मदद करना, पुरे क्रू के लिए खाना बनाना, प्रोडक्शन से लेकर एडिटिंग तक सब करना, फिल्म की रील तैयार करना, और ऐसे ना जाने कितने कामों में मदद की थी सरस्वती बाई ने.
जब फिल्मों की शुरुआत हुई तब इनमें काम करने वालों को बहुत छोटा माना जाता था. इसीलिए लोग किसी भी फिल्म में काम करने के लिए तैयार नहीं होते थे. ऐसे में लोगों की कमी होने के कारण सरस्वती बाई ने आधे से ज़्यादा कामों को अपने कंधो पर लिया. इस फिल्म में फीमेल कैरक्टर्स का रोल भी पुरुषों ने किया था. इन पुरुषों को अदाकारी सीखने का काम भी सरस्वती बाई ने किया. धूप में घंटों तक खड़े रहकर छोटे-मोटे काम करना और करवाना, सब कुछ वे ही देखतीं थीं.
दादा साहेब को लोगों ने बहुत कुछ बोला, उन्हें इस फिल्म को बंद करने की सलाह दी. लेकिन सरस्वती बाई जानती थी, की उनके पति का सपना हैं यह फिल्म. बस इसी बात को दिमाग में रखकर हर काम में उनकी मदद की उन्होंने. भले ही दादा साहेब फ़ाल्के 'भारतीय सिनेमा के पायनियर' कहे जातें हों, लेकिन असल में 'राजा हरीशचंद्र' को उसके मुकाम तक पहुंचाया है, सरस्वती बाई फ़ाल्के ने.