मेहनत से खुद की ज़िंदगी रिपेयर

जहां कुछ आदिवासी इलाकों में लड़कियां बाइक और दूसरे वाहनों को रिपेयर करते भी दिख रहीं, लेकिन ठेठ आदिवासी गांव की एक महिला ने तो मजदूरी छोड़ गांव के ख़ास बाजार में ऑटो पार्ट्स की दुकान खोल खुद को चर्चा में ला दिया.

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SHG women open auto parts shop

पारा गांव में ऑटो पार्ट्स दुकान संचालित करते हुए लीला डामोर (Image Credits: Ravivar Vichar)

झाबुआ के पारा गांव में सड़क पर ऑटो पार्ट्स की दुकान पर बैठी लीला डामोर ने एक आवाज़ में कभी क्लच वायर तो कभी बाइक का ऑइल निकाल ग्राहक के हाथ में थमा दिया. किसी वक़्त खेत में खेत में मजदूरी करने वाली लीला अपनी आदिवासी बोली बारेली से बाहर नहीं निकल पाती थी. अब फर्राटे से हिंदी बोलती और ग्राहकों को सामान दे देती हैं. ऑटो पार्ट्स संचालक लीला डामोर दुकान की मालकिन है और खुद की कमाई से आत्मनिर्भर बन गई.

फैशनेबल अंदाज़ में बाइक धुनकाते लड़कियों को देखना आजकल बातों का टॉपिक नहीं रह गया. इससे अलग जहां कुछ आदिवासी इलाकों में लड़कियां बाइक और दूसरे वाहनों को रिपेयर करते भी दिख रहीं,लेकिन ठेठ आदिवासी गांव की एक महिला ने तो मजदूरी छोड़ गांव के ख़ास बाजार में ऑटो पार्ट्स की दुकान खोल खुद को चर्चा में ला दिया.   

SHG women open auto parts shop

 (Image Credits: Ravivar Vichar)
 
खेती-मजदूरी कर बमुश्किल पेट पालने वाली महिलाओं ने अपने बल पर ऐसी पहचान बनाई कि गांव में तो लोग पहचानने लगे ही, लेकिन मजदूरी करने वाले पति को भी रोजगार से लगा दिया. दो सालों की मेहनत के आगे किस्मत को भी पलटना पड़ा. यह कहानी है झाबुआ जिले के आदिवासी गांव छापरी की. जनजाति खेत-मजदूर महिलाओं के जीवन में आजीविका मिशन की योजनाओं ने कमाई के रास्ते खोल दिए. गांव पारा में लीला दीदी की दुकान का पता अब हर कोई जानता है.

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(Image Credits: Ravivar Vichar)

वाहनों के ऑटो पार्ट्स की दुकान चलाने वाली लीला बाई कहती है -" हम तो छोटे से गांव छापरी में ही रहते थे. रोज खेत में जाकर मजदूरी करते  थे. आजीविका मिशन समूह से जुड़े. वनशिखा स्वयं सहायता समूह की सदस्य बनी. लोन लिया और पारा गांव में ऑटो पार्ट्स की दुकान खोली. कोरोना कॉल के बाद हमारी दुकान अच्छी चल रही है." इसी समूह की अध्यक्ष ने तौली दिनेश डामोर अपने ही गांव छापरी में किराना दुकान खोली. सचिव मुन्नी वीरसिंह ने सब्जी की बाड़ी को कमाई का जरिया बना लिया.

लीला बाई आगे बताती है कि - "सबसे बड़ी बात यह है कि मेरे पति महेश भी मेरे काम में सहयोग दे रहे. मेरी दोनों बेटियां भी अच्छे स्कूल में पढ़ रही हैं. "
आजीविका मिशन के जिला परियोजना प्रबंधक देवेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं - " जिले में आजीविका मिशन और समूहों से जुडी दीदियां अलग-अलग क्षेत्र में बहुत बढ़िया काम कर रहीं हैं. आदिवासी समूह की महिलाओं को रोजगार के नए अवसर दिए जा रहे हैं." समूह की सभी सदस्यों ने अलग से कमाई का साधन निकाला. मिशन के ही यंग प्रोफेशनल अमित विश्नोई बताते हैं -" लीला डामोर ने पुरुषों के कारोबार को चुनौती दे कर खुद को स्थापित किया. आगे भी ऐसे समूहों को और प्रोत्साहित किया जा रहा है."

 

आजीविका मिशन ऑटो पार्ट्स वनशिखा स्वयं सहायता समूह परियोजना प्रबंधक देवेंद्र श्रीवास्तव