महिलाओं में दिख रहे ईंटों जैसे मजबूत हुए इरादे

छत्तीसगढ़ के इलाके में बन रहे भवनों, रूरल इंडस्ट्रियल पार्क और गौठान के निर्माण में 'घर' की ईंटें लगाई जा रही. यानी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने अपनी मेहनत के बल पर  फ्लाय एश ईंटें (Fly Ash Bricks) बना रहीं.

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महासमुंद जिले में भी इसी तरह समूह ने ईंटें तैयार की (Image Credit: Ravivar Vichar)

महिलाओं में दिख रहे ईंटों जैसे मजबूत हुए इरादे 

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कई सरकारी  भवनों को बनाने में लगाई जा रही ईंटें कोई बाजार या बाहरी भट्टे से नहीं खरीदी जा रही. इलाके में बन रहे भवनों, रूरल इंडस्ट्रियल पार्क (RIPA) और गौठान (Gothan) के निर्माण में 'घर' की ईंटें लगाई जा रही. यानी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने अपनी मेहनत के बल पर  फ्लाय एश ईंटें (Fly Ash Bricks) बना रहीं. राज्य के महासमुंद (Mahasamund) जिले के एक गांव में यह कमाल महिलाओं ने कर दिखाया.

महासमुंद (Mahasamund) जिले के गांव कनपा (Kanpa)के जय दुर्गा स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की अध्यक्ष अहिल्या साहू बताती है- "हम लोग की महिलाएं अलग-अलग मजदूरी करती थीं. समूह बना कर काम की शुरुआत की. रीपा योजना में हमें मशीनें मिल गई. हम सभी ईंटें बनाना सीख गईं. हम सभी की आर्थिक हालत अच्छी हो रही.हमारी ईंटें तेज़ी से पसंद कर खरीदी जा रही. हर ईंट केवल तीन रुपए में पड़ रही. जो दूसरी ईंटों से सस्ती है."  समूह की अन्य सदस्य देवकी सोनी, दीपलता और उर्वशी दुबे ने मशीनों को बहुत जल्दी चलना सीख लिया.

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रीपा की मदद से मिली मशीन से समूह की महिलाएं ईटें बनाते हुए (Image Credit: Ravivar Vichar)

लाखो के कारोबार से बनाई लाखों ईंटें 

समूह (SHG) की सचिव कल्याणी दुबे ने बताया- "ट्रेनिंग के बाद से ही हमें अधिकारीयों ने हौसला बढ़ाया. केवल ढाई महीने में हम लोग एक लाख 20 हजार ईंटें बना चुके. ख़ुशी है कि तैयार ईंटों में हम 60 हजार ईंटें बेच भी चुकें हैं.इस कारोबार में हमें एक लाख 80 हजार रुपए मिले. इतना कभी हम मजदूरी में कमा भी नहीं सकते थे.हम अपना स्टॉक बढ़ा रहे."

महासमुंद (Mahasamund)आजीविका मिशन बिहान (Ajeevika Mission) की ब्लॉक प्रोजेक्ट मैनेजर (BPM) रेखा नागपुरे  का कहना है- "यह हमारा बहुत सफल प्रोजेक्ट रहा. इसमें महिला सदस्यों की मेहनत रंग ला रही. महिलाओं को अच्छे से प्रशिक्षण दिया गया. शासन के सहयोग से ये ईंटें गौठान. रीपा के नए भवन और दूसरे कॉरपरेट भवनों को सप्लाई किए जा रहे. इससे सीधे लाभ समूह को मिल रहा.मार्केटिंग को और बढ़ावा दिया जाएगा."              

सस्ती और मजबूती से बढ़ी बिक्री      

 महासमुंद (Mahasamund) आजीविका मिशन (Ajiveeka Mission) के डीपीएम (DPM)अशोक कुमार यादव बताते हैं- "कनपा गांव के समूह ने अपनी नई पहचान बनाई है. यहां ट्रेनिंग के बाद महिलाएं आत्मनिर्भर हो गईं. रॉ मटेरियल राख (Fly Ash) पानी, सीमेंट, एल्युमिनियम पाउडर और कुछ अन्य चीजों की जरूरत होती है. इन सारी चीजों को एक तय अनुपात में मिलाकर ईंटें बनाई जाती हैं. ये काफी मजबूत और किफायती होती है. शासन और जिला प्रशासन के कलेक्टर और सीईओ जिला पंचायत खुद महिलाओं और समूह सदस्यों का हौसला बढ़ा रहे."  सस्ती और मजबूती के कारण इन ईंटों की बिक्री बढ़ रही.     

भारत में करीब 72 प्रतिशत पावर प्लांट कोयले से बिजली बनाते हैं और हर साल करीब 40 मिलियन टन राख पैदा होती है.छत्तीसगढ़ में यह सब आसानी से मिलने कारण यूनिट प्रोजेक्ट सफल रहा..इस पूरे प्रोजेक्ट में जनपद पंचायत की सीईओ निखत सुल्ताना लगातार समूह की महिलाओं का हौसला बढ़ा रहीं, जिससे उनमें और अधिक काम करने का उत्साह बने. जिला पंचायत सीईओ एस.आलोक एवं कलेक्टर प्रभात मलिक ने जिले में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को गौठान और रीपा से मिलने वाली सुविधाओं से जोड़ा. यही वजह जिले में समूह की महिलाओं को कई तरह के कारोबार से जुड़ कर कमाई बढ़ाने में मदद मिल सकी.                   

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