मद्रास हाई कोर्ट: महिलाओं के घरेलू काम को दी मान्यता

मद्रास उच्च न्यायालय ने एक घरेलू विवाद मामले में फैसला सुनाया, जिसने एक गृहिणी को अपने पति की संपत्ति में बराबर हिस्सा देने की अनुमति दी. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह पहली बार है जब अदालत ने पति की आय में गृहिणी के योगदान को मान्यता दी है.

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Madras High court

Image Credits: Siasat.com

कई महिलाओं को उनके पति या पिता की प्रॉपर्टी में बराबरी का हिस्सा (equal rights in property) नहीं दिया जाता. तमिलनाडु (Tamilnadu) ने इस दिशा में बदलाव की ओर कदम बढ़ाया. मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High court) ने एक घरेलू विवाद मामले (domestic dispute case) में फैसला सुनाया, जिसने एक गृहिणी (Housewife) को अपने पति की संपत्ति में बराबर हिस्सा देने की अनुमति दी.

महिला अधिकार कार्यकर्ताओं (women rights activists) ने इस फैसले पर ख़ुशी जताते हुए कहा कि यह पहली बार है जब किसी भारतीय अदालत ने पति की आय में गृहिणी के योगदान को फॉर्मली मान्यता दी है. यह फैसला दूसरे राज्यों पर लागू नहीं किया जायेगा जब तक कि देश का सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) इसी तरह का फैसला नहीं सुनाता. 

इस केस में तमिलनाडु का एक विवाहित जोड़ा शामिल था, जिनकी शादी 1965 में हुई थी. 1982 के बाद, पति नौकरी के लिए सऊदी अरब चले गए. उनकी पत्नी भारत में ही रुक गईं जिनकी अपनी कोई आय नहीं थी, उन्होंने पति द्वारा घर भेजे गए पैसे का इस्तेमाल कर कई संपत्तियां - प्रॉपर्टी और ज्वेलरी खरीदीं. 1994 में भारत लौटने पर, पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी उनकी सभी संपत्तियों पर अपने स्वामित्व (ownership) का दावा करने की कोशिश कर रही थी. 2007 में पति की मृत्यु हो गई और उनके बच्चों ने आगे का केस लड़ा.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पत्नी ने घरेलू काम करके पारिवारिक प्रॉपर्टी (familial property) खरीदने में समान रूप से योगदान दिया था. कोर्ट ने कहा, "या तो पति द्वारा कमाई करके या पत्नी द्वारा परिवार और बच्चों की देखभाल करके किया गया योगदान" का मतलब यह हुआ कि "दोनों संपत्ति के समान रूप से हकदार हुए"

हालांकि, ऐसा कोई कानून नहीं था जो किसी भी तरह से गृहिणी के योगदान को मान्यता देता हो, अदालत ने कहा कि जज को इसे मान्यता देने से रोकने वाला भी कोई कानून नहीं है.

महिला अधिकार वकील फ्लाविया एग्नेस (Women's rights lawyer Flavia Agnes) ने इसे "सकारात्मक निर्णय बताया क्योंकि यह फैसला महिलाओं के घरेलू श्रम को मान्यता देता है".

महिलाओं को आर्थिक गतिविधियों से दूर रख, उन्हें आर्थिक आज़ादी (financial freedom) हासिल करने से रोका जाता है. घरेलु कामों की ज़िम्मेदारी महिलाओं की मानी जाती है, जिसके बदले कोई आर्थिक भुगतान नहीं किया जाता. ये फैसला समाज के इस बायस को चुनौती देता है और दूसरे राज्यों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है.    

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