पाइन ट्री से रोज़गार की जड़े मज़बूत

पिछले पांच सालों से, जिले की माही पंचायत के गांवों में ज्योति स्वयं सहायता समूह (SHG) की अनीता और 34 महिलाएं कटलरी, कंटेनर, ट्रे, ज्वेलरी, और सजावट का सामान बनाने के लिए चीड़ की सुइयों जैसी पत्तियां उपयोग कर रही हैं.

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मिस्बाह
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हर साल गर्मियां शुरू होते ही, चारों ओर जंगलों में चीड़ के पेड़ (pine tree) से सुइयों जैसी पत्तियां झड़ना शुरू हो जाती. हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के सोलन जिले के घलाई गांव की स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की महिलाएं इन पत्तियों को इकट्ठा कर पूरे साल इस्तेमाल करने के लिए स्टोर कर लेतीं. पिछले पांच सालों से, जिले की माही पंचायत के गांवों में ज्योति स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की अनीता और 34 महिलाएं कटलरी, कंटेनर, ट्रे, ज्वेलरी, और सजावट का सामान बनाने के लिए चीड़ की सुइयों जैसी पत्तियां उपयोग कर रही हैं. स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष अनीता कहती हैं, "इन उत्पादों को बेचने से हमें हर महीने 30 हज़ार रुपये कमाने में मदद मिलती है." अनीता ने पाइन नीडल इस्तेमाल कर सामान बनाने का सोचा और एक प्रयोग के रूप में 2016 में स्वयं सहायता समूह (SHG) की शुरुआत की.

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“मैंने सीखा कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के तहत राज्य के अधिकारियों द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में पाइन का उपयोग घरेलू सामान बनाने के लिए कैसे किया जा सकता है. मैंने सोचा कि यह एक अच्छा विचार है, क्योंकि हमारे यहां चीड़ आसानी से मिल जाता है. यह एक बढ़ता हुआ पर्यावरणीय खतरा भी है, क्योंकि गिरी हुई, सूखी सुइयां जंगल की आग के लिए ईंधन का काम कर सकती हैं. इसलिए मैंने, अपने गांव की तीन और महिलाओं के साथ, चाय के कोस्टर, ट्रे और ब्रेड कंटेनर बनाना शुरू किया,” अनीता याद करती है.

जल्द ही, उन्होंने कई और उत्पाद और ज्वेलरी बनाना भी शुरू की, जिसके बाद, बगास, हाथू, मलाई और कलहोग जैसे पड़ोसी गांवों की और महिलाएं समूह के साथ जुड़ गईं. 2018 में, SHG ने सरस मेलों (Saras Mela) में भाग लिया. दिल्ली और चंडीगढ़ के व्यापारियों के साथ जुड़कर व्यापार मेलों के ज़रिये से अपने उत्पादों की मार्केटिंग और बिक्री को बढ़ाया. लोग इन उत्पादों की ओर आकर्षित हुए क्योंकि वे हाथ से बनाये गए, टिकाऊ, मज़बूत और आसानी से धोए जा सकते हैं. इनके प्रोडक्ट्स महंगे भी नहीं हैं. प्रोडक्ट का दाम 80 रुपये से लेकर 1,500 रुपये तक हैं. 

SHG के ज़रिये मेरी आय ने मेरे परिवार को गांव से बाहर जाने और बेहतर जीवन जीने में मदद की है. हम महिलाओं को आजीविका के अवसरों की तलाश करने के लिए आत्मविश्वास हासिल करने में भी मदद मिली है,” इंदिरा ठाकुर, समूह सदस्य कहती हैं.

अपने नेटवर्क का विस्तार करने के लिए, स्वयं सहायता समूह क्षेत्र में महिलाओं को ट्रेनिंग भी दे रहा है. अब तक 800 महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा चुका है. पाइन नीडल से इन महिलाओं को आजीविका मिली. इसके साथ ही पाइन नीडल इस्तेमाल कर जंगलों में आग लगने से भी बचाया जा रहा है.  

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