गुदड़ी के लाल के लिए 'गोधड़ी'

महिलाएं इसी काम को अपनी आजीविका का साधन बना चुकीं हैं. हाथ से बुनी इन रजाइयों को स्थानीय भाषा में ‘गोधड़ी’ कहते हैं. रूमा स्वयं सहायता समूह (SHG) की शुरुआत वर्ष 2017 में 50 हजार रुपये से हुई थी.

author-image
रिसिका जोशी
New Update
Women making godhadis

Image Credits: Pintrest

वो 'गोधड़ी' बनाती हैं ताकि उसकी और दूसरों की संतान चैन से सो पाए. ये कहानी हैं लातूर की उन महिलाओं की जो पुराने और बेकार पड़े कपड़ो से गोधड़ी और रजाई बनाकर बेच रही हैं. आज ये महिलाएं इसी काम को अपनी आजीविका का साधन बना चुकीं हैं. हाथ से बुनी इन रजाइयों को स्थानीय भाषा में ‘गोधड़ी’ कहते हैं. रूमा स्वयं सहायता समूह (SHG) की शुरुआत वर्ष 2017 में 50 हजार रुपये से हुई थी. वर्तमान में इस समहू में महिलाएं महीने में 8000 रुपये तक कमा रही हैं. छोटे स्तर पर शुरू किया गया यह उद्योग आज अंसरवाडा और निलंगा तहसील के आस-पास के इलाकों की 35 महिलाओं को रोजगार प्रदान कर रहा है. इन महिलाओं में से कुछ बोलने और सुनने में असक्षम हैं.

रूमा परियोजना की अध्यक्ष रुक्मिणी पस्तालगे ने बताया- " यह काम जिले में कुछ गैर सरकारी संगठनों के साथ काम करने वाली मधुवंती मोहन के मार्गदर्शन में शुरू हुआ. 'उम्मीद ग्रामीण आजीविका मिशन’ के एक अधिकारी ने कहा- "इस कार्य में लगी महिलाओं ने अपने नए डिजाइनों से कपड़ा निर्माण की इस कला को जिंदा रखा है. हमारा मिशन Self help group द्वारा तैयार किए गए सामान को लोगों तक पहुंचाने के लिए उन्हें प्रदर्शनी आदि में मंच मुहैया कराकर उनकी मदद करता है." पिछले चार वर्ष में 15 छोटी और बड़ी प्रदर्शनियां लगाई गई हैं और उनमें रूमा की महिलाओं द्वारा बनाई गई ‘गोदड़ी’ को इनाम तक मिल चुका है. लातूर की इन महिलाओं नें साबित कर दिया की जीवन में आत्मनिर्भर बनाना मुश्किल नहीं हैं बस अवसर पहचानना ज़रूरी हैं.

self help group उम्मीद ग्रामीण आजीविका मिशन रुक्मिणी पस्तालगे रूमा परियोजना की अध्यक्ष रूमा स्वयं सहायता समूह SHG