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महिलाएं इसी काम को अपनी आजीविका का साधन बना चुकीं हैं. हाथ से बुनी इन रजाइयों को स्थानीय भाषा में ‘गोधड़ी’ कहते हैं. रूमा स्वयं सहायता समूह (SHG) की शुरुआत वर्ष 2017 में 50 हजार रुपये से हुई थी.
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