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किसी देश में वास्तविक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि सबसे गरीब लोगों को अपने जीवन को बेहतर बनाने के अवसर नहीं मिल जाते. हमारे देश में आज भी बहुत से भारतीय, ख़ासकर जनजातीय लोग 18वीं सदी में जी रहे हैं जिनके पास बहुत कम अवसर हैं. भारत सरकार ने जनजातीय लोगों की मदद के लिए वन धन कार्यक्रम की शुरुआत की जिससे उनकी आय में बढ़ोतरी हुई और उन्हें अपने जीवन को बेहतर बनाने में मदद मिली.
पारंपरिक वन में रहने वाले मूल निवासियों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता है, जिस वजह से वे गरीबी के दलदल में फंसते चले जाते हैं. यह स्थिति शिक्षा की कमी और एक पारंपरिक जीवन शैली के कारण है, जो इन लोगों को अपने उत्पादों की अच्छी कीमत पाने से रोकती है. इसलिए केंद्र सरकार ने वन धन योजना शुरू की- यह जनजातीय लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का एक प्रयास है.वन धन योजना के तहत वन सम्पदा से समृद्ध जनजातीय जिलों में जनजातीय समुदायों के ज़रिये वन धन विकास केन्द्रों का संचालन किया गया. हर केंद्र में 10 आदिवासी स्वयं सहायता समूहों का समूह बना जिसमें लगभग 30 आदिवासी कलेक्टर शामिल हुए.
इस योजना के तहत आदिवासी युवाओं को इमली, महुआ भंडारण, सौंफ की सफाई, और पैकेजिंग के बारे में सारी जानकारी दी गई और मार्केटिंग सिखाई गई. इससे इन लोगों के कौशल का विकास हुआ और उनकी आय में वृद्धि हुई. वन संसाधनों को बढ़ावा मिला और साथ ही टैक्स रेवेन्यू बढ़ने से सरकार को भी फायदा हुआ. आज, देशभर में 3,000 से अधिक वनधन विकास केंद्र चलाये जा रहे हैं. 50 हज़ार से अधिक वनधन स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से लाखों जनजातीय लोगों को लाभ मिला है. इस पहल से जनजातीय लोगों को अपनी जगहों से बिना दूर जाए रोज़गार मिला और विकास के अवसर बढ़े.