मोबाइल दीदी बोल रहीं है , फोन तो उठाओ !

भारत में, पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की मोबाइल इंटरनेट उपयोग करने की संभावना 41% कम है. 8. 5 करोड़ से अधिक महिला सदस्यों के साथ, सेल्फ हेल्प ग्रुप बड़े पैमाने पर महिलाओं तक डिजिटल क्रांति को पहुंचा सकते है.

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रोहन शर्मा
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भारत में डिजिटल क्रांति की शुरुआत हो चुकी है. लेकिन भारत में डिजिटल लिट्रेसी को लेकर जेंडर डिवाइड अभी भी बड़ा है. खासकर ग्रामीण भारत में महिलाओं की डिजिटल डिवाइस तक पहुंच बहुत सिमित है. अगर है भी तो वह उतना समय नहीं दे पाती.  

इन सबको लेकर ही बीबीसी मीडिया एक्शन ने स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से महिलाओं को डिजिटल दुनिया तक पहुंचाने की पहल करी. इस पहल में चैतन्य वाइस (Chaitanya WISE) और प्रदान (PRADAN) ने बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (Bill & Melinda Gates Foundation) ने साथ दिया.

भारत में, पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की मोबाइल इंटरनेट उपयोग करने की संभावना 41% कम है. इस तरह डिजिटल और टेक्नोलॉजी के फायदे उन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. 8.5 करोड़ से अधिक महिला सदस्यों के साथ, सेल्फ हेल्प ग्रुप (Self Help Group) बड़े पैमाने पर महिलाओं तक डिजिटल क्रांति को पहुंचा सकते हैं.      

फोन तो उठाओ ! ऐसा ही एक प्रोजेक्ट है जिसमें डिजिटल साक्षरता को ऑडियो वीडियो के माध्यम से SHG की मीटिंग में सिखाया जाता है. साथ ही इसमें समूहों को प्रशिक्षण और डेमो दिए जाते हैं. स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए डिजिटल कौशल प्रशिक्षण वो शुरुआत है जिससे उनके सशक्तिकरण की राह मजबूत होगी. फोन तो उठाओ ! जैसे प्रोजेक्ट, महिलाओं में मोबाइल फोन के उपयोग और उसको अपने पास रखने को ज़रूरी बताता है. साथ ही इस तर्क का मुकाबला भी करता है कि महिलाओं को मोबाइल फोन (विशेष रूप से स्मार्टफोन) की आवश्यकता नहीं है और यह महिलाओं के समय की बर्बादी है.  

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मोबाइल सखी वह पहला कदम था जिसके ज़रिये टेक्नोलॉजी को पहुंचाया गया स्वयं सहायता समूहों तक. मोबाइल सखी वो भरोसेमंद साथी बनी जो महिलाओं के उनके अपने घरों और जाने पहचाने माहौल में ट्रेनिंग दे रही है. समुदाय की महिलाओं के रूप में, मोबाइल सखियां वो  रोल मॉडल बनी जो प्रासंगिक तौर पर सुलभ मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करने में सक्षम है. इस से SHG सदस्यों को आसानी होती है. साथ ही स्थानीय भाषा में सीखना आसान होता है.  

एक काल्पनिक चरित्र, 'खुशी दीदी' बनाया गया जो की डिजिटल तकनीकों का उपयोग Self Help Group की महिलाओं को समझा सके. रोचक अंदाज़ वाला यह काल्पनिक चरित्र, बहुत पसंद किया गया. 'खुशी' को एक स्वयं सहायता समूह सदस्य के रूप में डिजाइन किया गया, जो डिजिटल रूप से साक्षर है और अन्य सदस्यों को मोबाइल फोन का उपयोग करने के लाभों के बारे में सिखा रही है. इसके रिजल्ट को देखते हुए एक दूसरा काल्पनिक चरित्र विकसित किया गया, 'कमला दीदी', जो SHG में एक अनुभवी किसान और कृषि प्रशिक्षक है .

डिजिटल तकनीक के आसपास की बातचीत में अक्सर अंग्रेजी शब्द शामिल होते हैं. इस प्रोजेक्ट में ऐसी शब्दावली का उपयोग किया गया जिसे कम साक्षर, कम आय वाली महिलाएं आसानी से समझें. जैसे वॉयस सर्च को 'बोलकर खोज' के रूप में बेहतर समझाया गया. टेक्नोलॉजी की बहुत कम महिलओं तक पहुंच ने तकनीक के फायदों को सीमित कर दिया. ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां कम साक्षरता या इंटरनेट-सक्षम डिवाइस तक पहुंच की कमी है. डिजिटल सामग्री को व्हाट्सएप चैटबॉट के माध्यम से साझा किया गया और इनबाउंड इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पॉन्स सर्विस (आईवीआर) भी उपयोग में लाया गया. इन्हे मोबाइल सखियां, गरीब और ग्रामीण महिलाओं को ऑडियो वीडियो की तरह उन स्वयं सहायता समूह महिलाओं तक पहुंचा सकी, जिनके पास स्मार्टफोन नहीं है या डेटा का खर्च नहीं उठा सकते और जहां मोबाइल इंटरनेट कनेक्टिविटी खराब है.  विश्लेषण से पता चला कि मोबाइल सखियों द्वारा चैटबॉट वीडियो और आईवीआर ऑडियो सामग्री को लगभग समान मात्रा में चलाया गया  जिससे पता चलता है कि दोनों ही महत्वपूर्ण है. कार्यक्रम के डिजाइन यह सुनिश्चित किया गया की आखिरी महिला तक बात और टेक्नोलॉजी (Technology) पहुंचे.  

तकनीक तक पहुंचने के लिए एक बड़ी लड़ाई सामाजिक और व्यावहारिक भी थी. डिजिटल सुरक्षा और धोखाधड़ी ऐसी बाधाएं थी जिन्हें पार करना ज़रूरी था. टेक्नोलॉजी को हर महिला तक पहुंचने के लिए ट्रस्ट बिल्डिंग की गयी और डिजिटल स्पेस में SHG महिलाओं को लाया गया. टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए सशक्तिकरण के साथ आर्थिक आज़ादी के द्वार भी खोले जा सकते हैं. देश दुनिया की रफ़्तार से बराबरी करने में तकनीक की स्पीड से चलना और उसे समझना ज़रूरी है.  

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