स्वसहायता समूह (SHG) भारत का ऐसा माइक्रोफाइनेंस मॉडल हैं जिसका पूरी दुनिया के आर्थिक और सामाजिक संस्थानों ने लोहा माना. SHG क्रांति के बीज तो 80 के दशक में पड़ चुके थे और 90 का दशक आते आते ग़ैर-सरकारी संगठनों (NGO) भी इस आर्थिक आंदोलन से पूरी तरह जुड़ गए. आज ये NGO, SHG के सबसे बड़े प्रमोटर (SHPI) बन गए. SHG भारत में स्वरोज़गार और गरीबी हटाने का एक बड़ा साधन बने. SHG ने ग्रामीण महिलाओं को अपना रोज़गार शुरू करने का ज़रिया बनाया और इसके साथ उन्होंने आर्थिक आज़ादी हासिल की. लेकिन इन बदलाव की कहानियों के बीच कुछ ऐसी महिलाएं भी हैं जिनमें SHG से जुड़ने को लेकर झिझक है या SHG से जुड़ने के कुछ समय बाद ही वो उससे अलग हो जाती हैं.
SHG में हर दिन जुड़ती महिलाओं की संख्या के बीच उन आंकड़ों पर ध्यान देने की भी ज़रुरत है जो बताते हैं कि अभी भी SHG कुछ महिलाओं का विश्वास नहीं जीत पाएं. महिलाओं का SHG से अलग हो जाने का बड़ा कारण उनका दूसरे गांव शिफ्ट कर जाना है. शादी हो जाने के कारण या पति की नौकरी, काम-धंधे में गांव बदलना या नौकरी की तलाश ग्रामीण महिलाओं को कस्बों व शहर की ओर खींच लाई. जिसकी वजह से SHG से उनका साथ छूटा. SHPI कुछ दिनों के लिए दूर जाने वाली SHG सदस्यों को छूट देने के लिए बैंकरों को समझाये और ई-बैंकिंग को बढ़ावा दे ताकि आसानी से उपस्थित न होने पर भी वो लोन का भुगतान कर सकेें.
कुछ महिलाएं बतातीं है कि वे SHG में शामिल नहीं हो पाई क्योंकि मौजूदा SHG सदस्य अपने फायदे को बांटना नहीं चाहती. समूह की लीडर्स कई बार अपने झुकावों, मान्यताओं, पूर्वाग्रह, विचारों की वजह से नए सदस्यों को नहीं जोड़ती. ईमानदारी से सदस्यों में मुनाफ़े का बंटवारा न होने, बचत में पक्षपात करने, और बहीखातों का सही मैनेजमेंट न होने के कारण समूह में तनाव पैदा होता है. SHPI को लीडर्स और सभी सदस्यों के साथ बातचीत का नेटवर्क बनाना ज़रूरी है, ताकि सभी को अपनी बात कहने और संदेह दूर करने का प्लैटफॉर्म मिल सके. स्वसहायता समूहों के साथ सीधे काम करने वाली सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं को एकसाथ आकर समूह की महिलाओं के भ्रम दूर करने होंगे। रविवार विचार भी ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां सम्बंधित संस्थाओं को साथ लाकर स्वसहायता समूह की महिलाओं की शंकाओं का समाधान किया जाता है।
कई महिलाएं अपने SHG बनाकर बचत और व्यवसाय की शुरुआत करना चाहती हैं पर उन्हें नहीं पता किससे संपर्क करना है, या SHG में शामिल होने के लिए किस प्रक्रिया का पालन करना होगा. SHPI और सरकारी संस्थानों को बड़े पैमाने पर ऐसे इलाकों में जागरूकता अभियान चलाने की ज़रुरत है जहां महिलाएं कठिन ज़िन्दगी गुज़ार रहीं हैं. फाइनेंशियल अवेयरनेस प्रोग्राम यहां बहुत मददगार साबित हो सकते है.
अशिक्षा के कारण पैसों के लेन देन का सही हिसाब न रख पाने की वजह से बचत या लोन का फ़ायदा नज़र नहीं आता. फाइनेंशियल लिट्रेसी की ट्रेनिंग में ये मुद्दे सिखाये जाने चाहिए. SHG फेडरेशन SHG की पुस्तकों के रखरखाव के लिए बुक कीपर रखे जो समय समय पर उनका ऑडिट करे. ये प्रैक्टिस उनमे पारदर्शिता लाकर एक दूसरे के लिए विश्वास बढ़ाएगी.
मार्केटिंग,पैकेजिंग, सोशल मीडिया,और डिस्ट्रीब्यूशन चैनल की समझ न होने के कारण समूह अपने उत्पादों को एक दायरे के बाहर नहीं ले जा पाते. उन्हें इस दिशा में SHPI और सरकार से मिली ट्रैनिंग से राज्य, देश, यहां तक कि विदेश में प्रोडक्ट बेचने में मदद मिलेगी.
SHG आज पूरे देश में आर्थिक क्रांति ला रहें है, यदि उनकी समस्याओं पर ग़ौर कर उन्हें समाधान बताया जाये तो SHG महिलाओं की आर्थिक आज़ादी को और आगे ले जा पाएंगे. इसके लिए इस दिशा में काम कर रहें सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थानों को एक साथ आने की ज़रुरत है। और यही पहल कर रहा है रविवार …
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