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"तथ्य कई हैं, पर सत्य एक ही है" कहना और मानना था रबीन्द्रनाथ टैगोर का. देश 'गुरुदेव' कहता था क्यूंकि ताकत थीं उनकी कलम और ज्ञान में. लिटरेचर में अपने योगदान के लिए 1915 किंग जॉर्ज V ने उन्हें 'नाइटहुड' (Knighthood) के सम्मान से नवाज़ा. लेकिन 1919 में हुए जल्लिआं वाला बाग में हुए हत्याकांड से वे इतने दुखी हुए कि उन्होंने उस उपाधि को वापस लौटा दिया. रबीन्द्रनाथ टैगोर भी भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद की तरह वे भी एक स्वतंत्रता सैनानी के थे. अंग्रेजो के खिलाफ वे अपनी कलम और लेखों के साथ खड़े थे. उन्होंने अपनी लिखी कविताओं, लेख, नाटक, और कहानियों में आज़ादी और आज़ाद व्यक्ति की कल्पना बख़ूबी की है.
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ऐसे कितनी ही कविताएं और कहानियां लिखी है उन्होंने, जिनमें विशेष रूप से महिलाओं का वर्णन और चित्रण उस समय के मुकाबले बहुत आगे का था. रबीन्द्रनाथ ने जितनी भी महिला किरदारों को अपने कलम से कागज़ पर उतारा, वे कुछ अलग थी. बहुत स्ट्रांग और सटीक किरदार लिखे थे उन्होंने. उनके द्वारा लिखी गयी महिला किरदार खुद के अधिकारों, इच्छाओं और आवाज के लिए खड़ा होना जानती थी. टैगोर की महिलाएँ प्रोग्रेसिव थीं. उस वक़्त पर टैगोर ने जो चित्रण तैयार किये उन्होंने हर व्यक्ति के दिमाग में एक नए दृष्टिकोण को जन्म दिया.
रबीन्द्रनाथ की एक कहानी में बिनोदिनी नाम की महिला का किरदार उस वक़्त के हिसाब काफी बेबाक था. वह किरदार एक विधवा महिला का था, जिसनें कभी भी अपने नसीब को अपनी इच्छाओं के बीच में नहीं आने दिया. बंगाल में एक विधवा महिला, लेकिन अपनी इच्छा के मुताबिक ज़िन्दगी जीना चाहती थी बिनोदिनी. कहानी के अंत में बिनोदिनी कहती है, "यदि मैं पढ़ी लिखी नही होती, तो अन्य विधवाओं की तरह, मैं समाज की उपेक्षा को आसानी से सह लेती.”
एक और किरदार है उनकी कहानी 'मानभंजन' में, जिसका नाम है गिरिबाला. अपने पति का अत्याचार सहन करने वाली यह महिला किरदार एक खुद में ऐसे बदलाव लती है, जो उम्मीद के परे है. पति से मिले धोके के बाद यह किरदार अपने नसीब पर रोने के बजाय नाटकों की एक बहुत बहुत कलाकार के रूप मैं सामने आती है. गिरिबाला का चित्रण यह बताता है कि महिलाओं को अपने जीवन में पुरुषों पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है, वे अपनी सफलता खुद हासिल कर सकती हैं.
अपनी चॉइस को सबसे पहले रखा 'समाप्ति' की मृण्मयी ने. मृण्मयी की शादी जिस लड़के से कराइ गयी, वह उसके आगे अपने अधिकारों की मांग रखती है. शादी के वक़्त मृण्मयी की चॉइस को ज़रूरी ना समझना उसे कभी नहीं भाया. वह कहती है, “सारे नियम गलत हैं. क्या किसी ने यह जानने की कोशिश की कि मुझे क्या पसंद है?"
मृणाल, एक किरदार 'स्त्रीर पत्र' कहानी का, जिसका चित्रण एक प्रगतिशील महिला का है. मृणाल अपने पति और ससुराल वालों का घर छोड़कर चली जाती है क्यूंकि वह उस घर में बहुत घुटन महसूस करती है. यह कहानी महिला किरदार के दिए एक पत्र पर बनी है, जिसमें किरदार ने अपनी हर परेशानी को खुल के बताया.
कल्याणी एक सेल्फ इं0डिपेंडेंट महिला का किरदार लिखा रबीन्द्रनाथ ने जिसके पिता कल्याणी की शादी रुकवा देते है क्यूंकि लड़के वालों की तरफ से दहेज़ को लेकर परेशानी हो रही थी. कल्याणी इस बात से बिलकुल भी परेशान नहीं होती और बिना डरे अपनी ज़िन्दगी जीने लगती है. जब दोबारा उसी लड़के का रिश्ता कल्याणी के लिए आता है तो वह उन्हें बिना कुछ सोचे मना कर कहती है- "शादी टूटने के बाद मुझे अपने जीवन का असली लक्ष्य मिल गया. मुझे एक नई दिशा मिली. सैकड़ों अनाथ लड़कियों के चेहरे की मुस्कान ने मेरे जीवन को एक नया अ र्थ दिया है. मैं अब पूरी हूं. मेरे जीवन में किसी भी रिश्ते के लिए कोई जगह नहीं, और ना ही मुझे इसकी आवश्यकता है."
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यह सभी किरदार सिर्फ उस वक़्त के हिसाब से ही नहीं बल्कि आज के समय में भी बहुत प्रोग्रेसिव लगते है. आज भी यह किरदार उतने ही नए और अनोखे लगते है. Rabindranath Tagore की इन सारी रचनाओं को पढ़कर कोई यह नहीं कह सकता की वे उस वक़्त के रचियता है. अपने समय से सदियों आगे थे रबीन्द्रनाथ टैगोर और उनके किरदार.