कृषि सखी से किसानों को सॉइल टेस्टिंग में मदद

भारत में 14 करोड़ से ज़्यादा किसान हैं, पर टेस्टिंग लैब 3 हज़ार से भी कम. इस समस्या को दूर करने और बीज बोने से पहले मिट्टी परीक्षण को बढ़ावा देने के लिए डॉ. राजुल पाटकर ने वैज्ञानिकों के साथ मिलकर न्यूट्रीसेंस बनाया.

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मिस्बाह
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पौष्टिक आहार (nutritious food) सेहत (health) के लिए बहुत ज़रूरी है. ऐसा माना जाता है कि अच्छे बीज (seed) से अच्छी फसल आती है, पर अगर मिटटी की क्वालिटी सही नहीं है, तो न ही फसल उत्पादन सही होगा, और ना ही फसल की गुणवत्ता. पांच दशक पहले तक 2 टन प्रति हेक्टेयर उपज के लिए 54 किलोग्राम उर्वरक (fertiliser) की ज़रुरत होती थी. आज, उतनी ही उपज के लिए आपको लगभग 280 किग्रा उर्वरक की ज़रुरत होगी. इसकी वजह है रासायनिक उर्वरकों का अनुचित और असंतुलित इस्तेमाल जिसकी वजह से मिट्टी का स्वास्थ्य खराब हो जाता है. मिटटी (soil) में कितने उर्वरक की ज़रुरत है, तय करने के लिए किसान टेस्ट करवाते है. एग्रीकल्चर लैब (agriculture) से रिजल्ट आने में 15 दिन लग जाते है. 

भारत में 14 करोड़ से ज़्यादा किसान (farmers) हैं, पर टेस्टिंग लैब 3 हज़ार से भी कम. इस समस्या को दूर करने और बीज बोने से पहले मिट्टी परीक्षण (soil testing) को बढ़ावा देने के लिए डॉ. राजुल पाटकर (Dr Rajul Patkar) ने वैज्ञानिकों के साथ मिलकर न्यूट्रीसेंस बनाया. डॉ. राजुल पाटकर पुणे स्थित प्रॉक्सिमल सॉइलेंस टेक्नोलॉजीज के सह-संस्थापक और सीईओ है (CEO and co-founder of Pune-based Proximal Soilsens Technologies). उनका दावा है कि यह दुनिया की सबसे छोटी मिट्टी परीक्षण प्रणाली है, जो पोर्टेबल (portable), सस्ती (cheap) और उपयोग में आसान है. 

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डॉ. पाटकर (55) ने पहली बार 2011 में IIT बॉम्बे (IIT Bombay) में अपनी पीएचडी (PhD) करते हुए इस विषय पर शोध करना शुरू किया. हालांकि वे कृषि पृष्ठभूमि से नहीं आते, पर उन्होंने इस विषय को चुना क्योंकि वे अपने काम के ज़रिये बदलाव लाने को डॉक्टरेट की डिग्री से ज़्यादा अहमियत देते है. ग्लूकोमीटर से ब्लड ग्लूकोज लेवल को मापना आसान हो गया है. उन्होंने सोचा कि क्यों ना  मिट्टी का परीक्षण करने के लिए भी कोई उपकरण (device) बनाया जाए. उन्होंने ग्लूकोमीटर जैसी इलेक्ट्रो-केमिकल (electro chemical) आधारित तकनीकों (technology) पर काम करना शुरू किया और न्यूट्रीसेंस (NutriSens) बनाया. 

न्यूट्रीसेंस को इस्तेमाल करना बेहद आसान है. मिट्टी को एक एजेंट में घोलकर करीब आधे घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है. सेंसर पर घोल की एक बूंद डालने पर रिजल्ट आ जाता है. छह मापदंडों (parameters) पर रिजल्ट (result) मापा जा सकता है. ये रिजल्ट मृदा स्वास्थ्य कार्ड (soil health card) के रूप में आता है जिसे मोबाइल में डाउनलोड कर सकते हैं. आज असम, पंजाब, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान के कृषि उद्यमी मिट्टी परीक्षण उपकरण का इस्तेमाल कर रहे हैं. अब तक, डॉ पाटकर लगभग 2 हज़ार सेंसर स्ट्रिप्स बेच चुके है.

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डॉ पाटकर का लक्ष्य ग्रामीण महिलाओं (rural women) को सूक्ष्म उद्यमी (micro entrepreneurs) बनाकर उनकी आजीविका को बढ़ावा देना है. ग्रामीण महिलाएं किसानों को इस डिवाइस के इस्तेमाल के लिए ट्रेनिंग (training) दे सकती हैं. इस डिवाइस को किसानों तक पहुंचा कर वे से आजीविका का ज़रिया भी बना सकती हैं. ऐसी ही एक माइक्रो एंटरप्रेन्योर (micro entrepreneur) हैं मंगल धूमल, जो महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के डोंगांव की रहने वाली है. पिछले एक साल में, 50 वर्षीय माइक्रो एंटरप्रेन्योर आसपास के पांच गांवों में लगभग 25 किसानों की सहायता कर चुकी है. 

इस उपकरण से निजी लैब में मिट्टी परीक्षण की लागत 500 रुपये से घटकर 300 रुपये होने की भी उम्मीद है. इसकी उम्र तीन साल है, और डॉ पाटकर का कहना है कि यह एक साल में कम से कम 3,000 मिट्टी परीक्षण कर सकता है. डॉ पाटकर का लक्ष्य पूरे देश में इसके उपयोग का विस्तार करना है. 

भारत में स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups) की महिलाएं कृषि सखी (Krishi Sakhi) बन तकनीक को खेती से जोड़ने का काम कर रही हैं. इस डिवाइस को किसानों तक पहुंचाने में वे सहायता कर सकती है, जिससे उन्हें रोज़गार का ज़रिया मिलेगा और किसानों को मिट्टी परीक्षण की सुविधा.  

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