बाल मज़दूरी ख़त्म करने में फेमिनिस्ट रिस्पॉन्स की ज़रुरत

नारीवादी लेंस से देखने पर पता चलता है कि यह समस्या सिर्फ बाल मजदूरी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें लैंगिक दृष्टिकोण पर ध्यान देने की ज़रुरत है. बच्चियों को अक्सर घरेलु कामों की और धकेला जाता है, जिसे बाल मज़दूरी की श्रेणी में नहीं गिना जाता.

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मिस्बाह
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Image Credits: UBC Blogs

नन्हें हाथों में किताब की जगह ईंट का होना, देश की न्याय व्यवस्था पर कई सवाल खड़े करता है. कोविड महामारी (covid pandemic) के बाद, बेरोज़गारी (unemployment) के बढ़ने की वजह से कई मासूम मज़दूरी करने पर मजबूर हैं. भारतीय श्रम मंत्रालय (Ministry of Labour & Employment) का डेटा बताता है कि 5 से 14 साल के करीब 1.33 करोड़ बच्चे बाल श्रम (child labourers) हैं. बाल मज़दूरी में, लड़कों की तुलना में, लड़कियां की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. इससे उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास पर गहरा असर पड़ता है. बाल मज़दूरी (child labour) का शिकार ज़्यादातर गरीब, नागरिकता रहित और वंचित समुदायों के बच्चे होते हैं. इस समस्या का समाधान खोजने के लिए हमें एक नारीवादी प्रतिक्रिया की ज़रुरत है. 

नारीवादी लेंस (feminist lens) से देखने पर पता चलता है कि यह समस्या सिर्फ बाल मजदूरी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें लैंगिक दृष्टिकोण (gender perspective) पर ध्यान देने की ज़रुरत है. बच्चियों को अक्सर घरेलु कामों (household chores) की और धकेला जाता है, जिसे बाल मज़दूरी की श्रेणी में नहीं गिना जाता. शिक्षा की बात करें तो महिला शिक्षा दर 77 % है, जबकि पुरुष शिक्षा दर 84.7 %. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि कुल मज़दूरों में से पचास से अस्सी प्रतिशत लड़कियों ने अपने कार्यस्थल और घरेलू कामों के बीच संघर्ष करते हुए अपना बचपन खो दिया. कई उद्योगों में बच्चियों का बेरहमी से शोषण किया जाता है. कई बार उनका यौन शोषण (sexual harassment) भी होता है. 

समाज ने पहले ही लड़कियों की हर उम्र से जुड़ी भूमिका को परिभाषित कर दिया है, जो पुरुष दृष्टिकोण पर आधारित है. कई समुदायों में आज भी, बेटो की तुलना में बेटियों को कम महत्व दिया जाता है, कम खिलाया जाता है, कम शिक्षित किया जाता है, जिससे वे अपने व्यक्तिगत, सामाजिक और बौद्धिक विकास के अवसर से वंचित रह जाती हैं. कई बार, महिलाओं और बच्चियों पर अनुमति और प्रतिबंध के नियम सख्त होने की वजह से शोषण और भेदभाव को बढ़ावा मिल जाता है.

नारीवादी लेंस से देखते हुए, हमें बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए सामाजिक धारणाओं को बदलने की ज़रुरत है, जिससे बाल अधिकारों की सुरक्षा की जा सके. बाल मज़दूरी का शिकार बच्चों में शिक्षा, उपयोगी कौशल और व्यापारिक योग्यता बढ़ाने के लिए संगठनों और सरकारी नीतियों का समर्थन जरूरी है. फेमिनिस्ट एंगल (feminist angle) बच्चों में जागरूकता बढ़ाने, उन्हें गलत के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करवाने, और समाज के बाल मज़दूरी के लिए जागरूकता फ़ैलाने की ओर ध्यान ले जाता है. 

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