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नारीवादी लेंस से देखने पर पता चलता है कि यह समस्या सिर्फ बाल मजदूरी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें लैंगिक दृष्टिकोण पर ध्यान देने की ज़रुरत है. बच्चियों को अक्सर घरेलु कामों की और धकेला जाता है, जिसे बाल मज़दूरी की श्रेणी में नहीं गिना जाता.
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