हाल ही में आई एक स्टडी के अनुसार संसद और अधिकांश राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 15% से कम है. यह हालात सिर्फ भारत में ही नहीं है बल्कि विश्व की संसदों में केवल 26.4% सीटें महिलाओं के हिस्से आई. दुनिया की आधी आबादी को राष्ट्रीय नेतृत्व में एक चौथाई से भी कम जगह मिली. यह स्थिति तो सर्वोच्च स्तर पर है नीचे आए तो हालात और भी खराब. इन्ही आंकड़ों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम कर रहे यू.एन. विमेन को बताया - " लैंगिक समानता (जेंडर इक्वालिटी ) अभी '300 साल दूर' है ".
इस दूरी को जल्द से जल्द कम करने के लिए महिलाएं, आज़ादी से लेकर राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में अपनी भागीदारी करती रही. चिपको आंदोलन की शुरुआत से लेकर आफस्पा विरोध की अगुआई करने तक , इन सब के साथ महिलाएं सशक्तिकरण और समानता के अधिकार की अपनी व्यक्तिगत लड़ाई को आगे बढ़ाती रही.
इन सब आंदोलनों और प्रयासों के बीच 1970 से एक ऐसी क्रांति की आग धीमी लौ पर सुलग रही थी जिसकी गर्माहट को तथाकथित मुख्यधारा महसूस नहीं कर पाई. यह कोई राजनीतिक क्रांति नही बल्कि एक ऐसा सामाजिक आर्थिक इंक़लाब है जो नए भारत की तस्वीर बदलने की ताकत रखता है. यह ताकत है स्वयं सहायता समूहों (SHGs) की,आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार आज भारत में लगभग 1.2 करोड़ स्वयं सहायता समूह हैं, जिनमें 90% से ज्यादा महिला मेंबर हैं. इन SHG को सरकारों से भी पूरी मदद मिलती है और मुख्यतः यह बचत और लोन ग्रुप्स की तरह काम करते है. हर सदस्य हर महीने एक छोटी राशि यहां जमा करता है और समूह से उधार भी ले सकता है. इन समुहों को बैंक लोन सुविधा भी मिलती है और साथ ही वेल्यू एडेड कामों के लिए भी बैंक से आर्थिक मदद मिलती है. सरकार भी दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डे - NRLM) के जरिए कई स्कीम चलाती है.
भारत में SHG से जुड़ी तकरीबन 8.5 करोड़ महिलाएं एनआरएलएम के छाते के अंदर आती है और अपने आप में संगठित ताकत बनती है जो धीरे धीरे सशक्तिकरण, समानता , सुरक्षा और सफलता की राह पर चलना शुरू करती है. जैसे पुराने समय से चल रहे सूदखोरी के चंगुल से ये महिलाएं बाहर आई है , उनकी आय के साधन और स्त्रोत दोनो बड़े है, साथ ही पंचायत के स्तर पर भागीदारी बढ़ी है. इस तरह जैसे जैसे SHG के ज़रिए आर्थिक राह खुल रही है सामाजिक , राजनीतिक और पारिवारिक भागीदारी भी बढ़ रही है.
हालांकि, स्वयं सहायता समूहों अभी भी मुख्य रूप से माइक्रो-क्रेडिट तक सीमित हैं. SHG से जुड़ी महिलाओं की इस बड़ी संख्या को कौशल विकास ( स्किल डेवलपमेंट), उद्यमशीलता ( एंटरप्रेनरशिप ) और वित्तीय साक्षरता (फायनेंशियल लिटरेसी ) की ट्रेनिंग देना जरूरी है जिससे आमदनी के नए और बेहतर आयाम अपनी जिंदगी में जोड़ सके. अभी भी कई गृह उद्योग , कुटीर उद्योग , एफ पी ओ आदि SHG महिलाएं चला रही है लेकिन इसको हर स्तर पर बढ़ावा मिलना चाहिए. सरकारी और प्राइवेट हर सेक्टर में SHG भागीदारी बढ़ानी होगी.
आज भी महिलाओं की आय बढ़ाने के कई अवसर है जो SHG से निकल सकते हैं. इन अवसरों को तो बढ़ाना होगा, वही SHG कहीं राजनीतिक हथियार ना बने इसका भी खास ध्यान रखना होगा. वैसे भी सहकारी बैंकों और क्रेडिट सोसायटियों के बाद, राजनेता अब जनता तक पहुंचने के लिए स्वयं सहायता समूहों (SHG) की ओर मुड़ गए हैं.
स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं की बड़ी संख्या ने उन्हें फॉरफ्रंट पर ला दिया है. अब सरकारी कार्यक्रमों, बैंकों और कॉरपोरेट जगत की मदद से इनके सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक रूप से सक्षम बनाया जा सकता है . स्किल डेवलपमेंट और फायनेंशियल लिटरेसी , SHG महिलाओं के इस आर्थिक सामाजिक आज़ादी के आंदोलन की पहली सीढ़ी होंगी.