मासूमों के निवालों पर लगी नज़र !
प्रदेश की शान स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की दीदियां को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शासन ने कई अवसर दे दिए. बावजूद प्रदेश के छतरपुर (Chhatarpur) जिले की घटना ने समूह के काम करने पर सवाल खड़े कर दिए . मासूम बच्चों के मुंह में निवाला सिर्फ औपचारिक बन कर रह गया. न कटोरी में दाल और न समय पर हरी सब्जियां थाली में रखी गई. पौष्टिक भोजन (Hygienic food) खिलाने का सरकार का मकसद कई स्कूलों में पूरा ही नहीं हो रहा. मजदूर और खेतिहर परिवारों के बच्चे इस मध्यान्ह भोजन के कारण भी स्कूल आते हैं.
प्रदेश के छतरपुर जिले में खुलासा तब हुआ जब कलेक्टर (DM) संदीप जीआर ने फीडबैक बेस पर अलग-अलग स्कूलों में अधिकारियों को जांच के लिए भेजा. जांचे गए 58 स्कूलों में से 23 स्कूल में यह शिकायत सही पाई गई. यहां मेनू (Menu) अनुसार एमडीएम (MDM) परोसा नहीं जा रहा. जिला पंचायत से ऐसे स्कूलों को कारण बताओ नोटिस थमाए.साथ ही चेतावनी दी, यदि पौष्टिक भोजन (Hygienic food) नहीं दिया गया तो स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) का अनुबंध समाप्त किया जाएगा.
पौष्टिकता पर करोड़ों खर्च
ये सिर्फ छतरपुर नहीं बल्कि प्रदेश के कई जिलों में हालात बने हुए हैं.प्रदेश में राष्ट्रीय त्यौहार 15 अगस्त और 26 जनवरी पर प्रभारी मंत्री से लगा कर सारे आला अफसर इन बच्चों के साथ बैठ कर मध्यान्ह भोजन (Mid Day Meal) करते हैं. उस दिन का दिखावा भी अगले दिन मिडिया में छपे फोटो- वीडियो में दिख जाएगा. 'रविवार विचार' (Ravivar Vichar) ने मासूमों के हक़ के निवालों की पड़ताल की तो कई विसंगतियां के साथ प्रबंधन,अधिकारी तो कहीं समूहों की मनमर्जी नज़र आई. सरकार के करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी ये अव्यवस्था शर्मिंदा करती है.
कोर्डिनेशन का आभाव
मध्यान्ह भोजन (MDM)की अव्यवस्था में विभागों और अधिकारियों के बीच कोर्डिनेशन (Coordination) की सबसे बड़ी कमी है.केंद्र की इस योजना में पहली से आठवीं तक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को यह भोजन मेनू (Menu) अनुसार खिलाना है. इसमें पौष्टिकता और शुद्धता का ध्यान खासतौर पर रखना है. इस पूरी प्रक्रिया में जिला पंचायत के एमडीएम अधिकारी मॉनिटरिंग और कोर्डिनेशन करते हैं. मिडिल स्कूल स्तर तक की संस्थाओं के शैक्षणिक और दूसरी गतिविधि जिला परियोजना समन्वयक (DPC) देखते है. इस समय स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को रोजगार देने के लिए एमडीएम (MDM) का काम सौंपा .जहां समूह की व्यवस्था नहीं है वहां शाला प्रबंधन समिति एमडीएम काम को करती है. यही वजह एमडीएम में में मनमर्जी चल रही है.
थाली का रेट 5 रुपए 45 पैसा !
पूरे प्रदेश प्राइमरी स्कूल के बच्चों की थाली का रेट 5 रुपए 45 पैसा है. जबकि मिडिल क्लास के बच्चों की थाली का रेट 8 रुपए 17 पैसा है. इसमें 2 चपाती, दाल और सीज़नल सब्जी खिलाना है. इसको बेलेंस करने के लिए समूह और स्कूल प्रबंधन एब्सेंट बच्चों की अटेंडेंस को बढ़ा कर पैसा निकालता था. अब केंद्र सरकार क्लास में दर्ज कुल बच्चों की संख्या का सिर्फ 65 प्रतिशत उपस्थिति मान कर पैसा रिलीज़ करती है. यह पेंच फंस गया. इसमें केंद्र 60 प्रतिशत और राज्य सरकार 40 प्रतिशत पैसा मिलती है. रसाईयों को कुल दो हजार रुपए में केंद्र केवल 600 रुपए और राज्य सरकार 14 सौ रुपए मिला कर भुगतान करती है.आने वाले दिनों में स्कूल में उपस्थित बच्चों की सही संख्या के आधार पर ही पैसा मिलेगा.
कई समूह रजिस्टर्ड नहीं !
प्रदेश के कई जिलों में काम कर रहे स्वयं सहायता समूह अभी तक NRLM के साथ रजिस्टर्ड ही नहीं हुए. जिलों में एमडीएम योजना पहले शुरू हुई और आजीविका मिशन के प्रोजेक्ट देर से शुरू हुए. राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने हालांकि आदेश दे कर जिले के सभी समूहों को रजिस्टर्ड करने को कहा.
मासूमों के लिए बड़ी योजना
मध्यान्ह भोजन (MDM) की योजना बहुत रिसर्च के बाद पूरे देश लागू की गई. केंद्र ने इस योजना को सबसे बड़े प्रोजेक्ट में लिया. रिसर्च में पाया गया कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अधिकार भूखे आते हैं. माता-पिता मजदूरी के लिए चले जाने का खामियाजा बच्चे शाम तक भूखे भुगतते हैं. और मिला भी तो वह पौष्टिक नहीं होता. सरकार ने इन मासूमों की हेल्थ और भोजन का अधिकार देकर योजना शुरू की.