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कानून, शिक्षा, धर्म, परंपराओं, और संस्थाओं के ज़रिये पितृसत्ता की जड़ों को मज़बूती दी जाती है. साहित्य समाज को आइना दिखाता है. सही-ग़लत के बीच, साहित्य असलियत दिखाकर, पाठक को समाज में मौजूद असमानता पर दोबारा विचार करने के लिए मजबूर करता है.
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