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हम रोज़ सबेरे घर का कामकाज जल्दी निपटाकर निकल जाते थे. दुआर-दुआर घूमते थे, औरत लोगों को समझाते थे. ऊ पहले तो हां कहती थी, पर बाद में पलटी मार देती थी. शुरू में तो बहुत दिक्कत आया, लगा कि ई काम हमसे नहीं हो पायेगा, पर हम हिम्मत नहीं हारे.
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