चुनाव, Women Safety, Prajwal Revanna और वोट !

Prajwal Revanna देश छोड़कर चला भी गया. तो अब कार्यवाही अपनी गति से चलती रहेगी. लेकिन सवाल यह है कि चुनाव के ठीक बीचो-बीच, संदेशखाली के ठीक बाद, महिला सुरक्षा से जुड़ी इतनी बड़ी खबर सामने आने पर चुनाव पर उसका क्या असर पड़ेगा.

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मैत्री
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Prajwal Revanna case

Image- Ravivar Vichar

भारत में लोकसभा चुनाव जारी हैं. दो चरणों में वोटिंग हो चुकी है. देश भर में हर छोटे बड़े नेता की रैलियां हैं, भाषण हैं. सभी नेता वोट मांगने के लिए हाथ जोड़ आपके सामने नतमस्तक हैं. यह नेता अलग-अलग मुद्दों की बात कर रहे हैं, अलग-अलग सुविधा देने की बात कर रहे हैं, और चुने जाने पर आपके और आपके प्रियजनों के लिए एक बेहतर भविष्य देने का वादा कर रहे हैं. चुनावी मुद्दे लगभग वही हैं, हर बार वाले, सड़क, बिजली, पानी, महंगाई, रोज़गार और महिला सुरक्षा.

Women Safety सिर्फ नाम का मुद्दा

अब देखिए बाकी मुद्दों पर तो नेताओं को वोट मिलते रहे हैं और वह सरकारें बनाते रहे हैं. लेकिन महिला सुरक्षा के नाम पर क्या सचमुच वोट पड़ते हैं? क्या सिर्फ़ और सिर्फ़ महिला सुरक्षा अपने आप में किसी भी चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा, सबसे बड़ा एजेंडा बना पाता है? 2012 के निर्भया कांड के बाद दिल्ली सरकार गिर गई थी. उस वक्त भी महिला सुरक्षा और निर्भया कांड एक मुद्दा था, सबसे बड़ा मुद्दा नहीं.

कांग्रेस की सरकार गिरने के पीछे भ्रष्टाचार से लेकर महंगाई से लेकर विकास बड़े मुद्दे रहे. अब 2024 के लोकसभा चुनाव में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना पर कई महिलाओं का यौन शोषण करने के आरोप लगे हैं. प्रज्वल रेवन्ना पर आरोप है कि वह कई सालों तक अलग-अलग महिलाओं का यौन उत्पीड़न करता रहा. सोशल मीडिया पर इसके वीडियो भी सामने आए. इस घिनौने अपराध को लेकर पुलिस में मामला भी दर्ज हो गया.

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Prajwal Revanna के केस का क्या ?

प्रज्वल रेवन्ना देश छोड़कर चला भी गया. तो अब कार्यवाही अपनी गति से चलती रहेगी. लेकिन सवाल यह है कि चुनाव के ठीक बीचो-बीच, संदेशखाली के ठीक बाद, महिला सुरक्षा से जुड़ी इतनी बड़ी खबर सामने आने पर चुनाव पर उसका क्या असर पड़ेगा. कर्नाटक में जेडीएस जिन सीटों पर चुनाव लड़ रही थी वहां पर वोटिंग हो चुकी है तो ज़ाहिर सी बात है कि उन सीटों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

लेकिन कर्नाटक में JDS BJP के साथ गठबंधन में है और उन बची हुई सीटों पर अभी वोटिंग होनी बाकी है. प्रज्वल रेवन्ना पर लगे आरोप को आज़ाद भारत का सबसे ज़्यादा भयंकर यौन अपराध कहा जा रहा है. मामले ने राजनीतिक तूल तो पकड़ ही लिया है. कांग्रेस और बाकी विपक्षी पार्टियाँ भाजपा को इस बात पर घेरे हुए हैं कि किस तरह से उन्होंने प्रज्वल रेवन्ना जैसे शख्स को टिकट दिया और किस तरह से वह अभी भी जेडीएस के साथ गठबंधन में है. और भाजपा कांग्रेस पर यह आरोप लगा रही है कि राज्य में कांग्रेस की सरकार होते हुए अब तक प्रज्वल रेवन्ना वाले मामले में कोई भी कार्रवाई क्यों नहीं की गई.

अब इस पूरे मामले की सीधी सीधी तुलना संदेशखाली से भी की जा रही है. केंद्र सरकार का जो रवैया संदेशखाली को लेकर था वह बिल्कुल भी प्रज्वल रेवन्ना वाले मामले को लेकर के नहीं है. संदेशखाली के मामले में जिस तरह से आनन फानन केंद्रीय एजेंसी जांच में लग गई थी वैसा कुछ भी कहीं से कहीं तक प्रज्वल के मामले में नहीं दिखाई दे रहा है. और जो विपक्षी पार्टियों संदेशखाली पर ज़्यादा सवाल जवाब नहीं कर रही थीं वह खुलकर प्रज्वल रेवन्ना मामले में सामने आई हैं, जो कि उन्हें करना भी चाहिए. लेकिन संदेशखाली और प्रज्वल रेवन्ना वाले मामलों के बीच हो रहे हैं इस चुनाव में, इतना सब होने के बाद भी, महिला सुरक्षा एक अहम मुद्दा बनेगा या नहीं या अब भी नहीं कहा जा सकता.

अगर महिला सुरक्षा बड़ा मुद्दा बनता है तो यह एक चौंकाने वाला पर एक सही बदलाव होगा. हालांकि अब तक का इतिहास देखते हुए इसकी उम्मीद बहुत कम है. भारत अब भी अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए वोट नहीं डालता. उम्मीद है कि इस बार ऐसा ना हो.

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