बीना दास (Bina Das) पश्चिम बंगाल की भारतीय क्रांतिकारियों और राष्ट्रवादियों में से एक थीं. बीना उस समय के मुकाबले सामान्य लड़कियों से अलग थीं. वह समाज की रूढ़िवादी सोच में बदलाव लाइ और समाज को बताया कि महिलाएं पुरुषों से कम नहीं. घर के काम के साथ जरुरत पड़ने पर महिलाएं देश के लिए हांथ में हथियार भी उठा सकती हैं.
बीना दास ने की थी बंगाल के गवर्नर को मारने की कोशिश
21 साल की क्रन्तिकारी वीरांगना बीना दास ने यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता (Calcutta University) में चल रहे कन्वोकेशन में मुख्य अथिति बंगाल के गवर्नर (Governor Of Bengal) सर स्टैनली जैकसन (Sir Stanley Jackson) को गोली मार, हत्या करने का प्रयास किया था. छात्रों से भरे हॉल में, जब जैक्सन ने भाषण (Convocation Speech) देना शुरू किया, तभी गोलियां चलने की आवाज सुनाई दी, सभी की नज़र बीना पर थी. वह मंच के बिक्लुल पास खड़ी थी.
यूनिवर्सिटी के वाईस प्रिंसिपल हसन सुहरावर्दी (Vice Principal Hasan Suhrawardy) ने बीना को रोकने की कोशिश की, पर तब तक बीना रिवॉल्वर में से सारी गोलियां ख़ाली कर चुकी थी. हॉल में अफरा तफरी मच गई.
Image Credits : Thisday.app
बंगाल की भूली हुई स्वतंत्रता सेनानी है बीना
24 अगस्त,1911 पश्चिम बंगाल (West Bengal) में जन्मी बीना बंगाल की भूली हुई स्वतंत्रता सेनानी (Forgotten Freedom fighters of bengal) में से एक है, जिन्होंने देश को आज़ादी दिलाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके पिता ब्रम्हा समाज शिक्षाविद थे, उन्होंने सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) को पढ़ाया था. बीना की मां सामाजिक कार्यकर्ता थीं , जो स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई (Battle Of Independence) में शामिल हुई.
बीना को सुनाई गई नौ साल की सजा
बीना को रिवॉल्वर स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighters) कमला दास गुप्ता (Kamla Das Gupta) से मिली थी. उन्होंने पांच गोलियां चलाईं पर वह जैकसन को मारने में असफल रहीं. गोली सिर्फ जैक्सन के कान को छूकर निकली. बीना को नौ साल की कठोर कारावास (Jail) की सजा सुनाई गई. पर बीना इससे कहां डरने वाली थी.
बचपन से क्रन्तिकारी स्वभाव होने के कारण, 1939 में जब वह जेल से निकली उन्होने महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के "भारत छोड़ो आंदोलन" (Quit India Movement in Hindi) में हिस्सा लिया. जिस के लिए उन्हें 1942 में फिर से जेल हुई. वहां उन्होंने जेल के कैदियों के हक़ के लिए हंगर स्ट्राइक, मतलब भूख हड़ताल (hunger strike meaning in hindi) की.
Image Credits : Asianet Newsable
बीना को अग्रि कन्या नाम दिया गया
बीना दास की कहानी (Bina Das story) की शुरुआत छात्री संघ से जुड़कर हुई. इस संघ का हिस्सा उनकी बड़ी बहन कल्याणी भी थी. इस संघ में सौ लड़कियां शामिल थी. लड़कियों को मोटर ड्राइविंग, साइक्लिंग और तलवार बाज़ी की ट्रेनिंग दी जाती थी. ज्यादातर लड़कियां घर में नहीं पुण्य आश्रम नाम के हॉस्टल में रहती थीं. इस हॉस्टल को बीना की मां सरला देवी चलाती थीं. पुलिस से बचने के लिए यहां पर बम छिपाये जाते थे. बीना की ट्रेनिंग भी इसी हॉस्टल में हुई, जहां उन्हें ‘अग्रि कन्या' नाम दिया गया. बीना दर्द झेलने की अपनी क्षमता को जानने के लिए जहरीली चीटियों से अपने पैर कटवाती और आग की लौ पर उंगली लगाया करती थीं.
बीना दास (Bina Das Slogan) स्वतंत्रता की लड़ाई में 'करो या मरो' (Do or Die) जैसे नारों से प्रेरित थी. यह एक ऐसा नारा था जिसने स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए बंगाल के युवक- युवतियों को प्रेरित किया था.
बीना ने अपने गुनाह को स्वीकारा
बीना ने जज के सामने अपने गुनाह को स्वीकार करते हुए कहा कि, "मैंने सीनेट हाउस (Senate House) में आखिरी कन्वोकेशन (Convocation Ceremony) के दिन गवर्नर पर गोली चलाई. मेरा मकसद गवर्नर को मारना था. इस सरकार के खिलाफ लड़ते हुए , जिसने मेरे देश को लगातार शर्म और दमन के गर्त में धकेल रखा है. मैंने गवर्नर को गोली मारी देश प्रेम से प्रेरित होकर. मेरी किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है. लेकिन बंगाल के गवर्नर एक ऐसे सिस्टम का प्रतिनिधित्व करते है, जिसने मेरे देश के 30 करोड़ लोगों को गुलाम बना रखा है." (Bina Das Speech)
Image Credits : Static.thelallantop.com
बीना दास के पति (Bina Das Husband) भी स्वतंत्रता संग्रामी थे. 1947 में उन्होंने अपने साथी जतीशचन्द्र भौमिक से शादी की. कलकत्ता (Calcutta) के ही एक स्कूल में पढ़ने लगीं. जब बीना के पति की मृत्यु हुई, तब वह कलकत्ता छोड़ ऋषिकेश (Rishikesh) चली गईं. वह पर भी स्कूल में पढ़ाने लगीं, बीना या उनके पति ने कभी सरकार से मदद नहीं ली.
कोई नहीं जानता बीना दास की मृत्यु का कारण
ऋषिकेश में उन्होंने आम ज़िन्दगी जी. साल 1986 में, कुछ लोगों को सड़क किनारे एक लाश दिखाई दी. पुलिस को ख़बर की गईं और एक महीने बाद पता चला कि यह लाश ' अग्रि कन्या ' (Agri Kanya) बीना की थी. बीना दास की मृत्यु का कारण (Bina Das death reason) तो कोई नहीं जानता. 26 दिसंबर को उनकी लाश मिली थी और उसी को आधिकारिक तौर पर बीना की मौत की तारीख लिख दी गई. बिना के जीवन पर एक किताब भी लिखी गई, जिसका नाम बिना दास - अ मेमोयर (Bina Das - A Memoir) है.