हमीदा बानो: अखाड़े की पहली महिला पहलवान

'अलीगढ़ की अमेज़न' (Amazon of Aligarh) के नाम से मशहूर हमीदा बानो (Hamida Banu) ने इस पुरुष प्रधान खेल में तो कदम रखा ही, साथ ही उन्होंने अपनी क्षमताओं से 300 से भी ज़्यादा पहलवानों को धुल चटाई है.

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विधि जैन
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Hamida Bano Google Doodle

Image Credits - Google Doodle

कुश्ती (Wrestling) एक समय में पुरुषों का खेल माना जाता था, जिसमें महिलाओं की भागीदारी का विचार भी दुर्लभ था. यह खेल शारीरिक शक्ति बल्कि के साथ ही मानसिक दृढ़ता का परीक्षण भी करता है. परंपरागत रूप से, कुश्ती के अखाड़े में पुरुषों का वर्चस्व (male dominant) रहा है, लेकिन एक नाम था जिसने इस परिपाटी को तोड़ा - हमीदा बानो (Hamida Banu).

'अलीगढ़ की अमेज़न' (Amazon of Aligarh) के नाम से मशहूर हमीदा बानो (Hamida Banu) ने इस पुरुष प्रधान खेल में तो कदम रखा ही, साथ ही उन्होंने अपनी क्षमताओं से 300 से भी ज़्यादा पहलवानों को धुल चटाई है.

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कुश्ती से छेड़ी सामाजिक क्रांति

एक छोटे से शहर में जहां एक तरफ महिलाओं के लिए खेल के मैदान में उतरना भी एक सपने की तरह था, वहीं दूसरी ओर हमीदा बानो (Hamida Banu) अपनी सफलता की कहानी लिख रहीं थी. पुरुष प्रधान खेल कुश्ती में उनका प्रवेश केवल खेल की दुनिया में एक उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह एक सामाजिक क्रांति का संकेत भी था.

हमीदा बानो (Hamida Banu) की जीत सिर्फ अखाड़े में ही नहीं थी. समाज की रूढ़िवादी सोच और धार्मिक बंदिशों के बावजूद, हमीदा ने अपने खेल का प्रदर्शन किया. उनके पहनावे को अक्सर अश्लील और अनुचित माना गया, लेकिन हमीदा इन बातों को नज़रअंदाज करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती रही.

हमीदा ने stereotypes से लड़ते हुए कई नियमों का विरोध किया. इसमें 'पर्दा' की वास्तविक सीमाओं के विरोध से लेकर समाज द्वारा थोपे गए अन्य बेमतलब के नियम शामिल थे.

Hamida Banu

Image Cedits - Feminism in India

अखाड़े में चुनौती थी पारंपरिक सोच 

हमीदा ने जब अखाड़े में कदम रखा तो उनके सामने पुरुष पहलवान तो थे, पर हमीदा का असली मुकाबला उनकी पारंपरिक सोच भी थी जो महिलाओं को इस क्षेत्र में अनुपयुक्त मानती थी. हमीदा बानो (Hamida Banu) ने पहलवानों को यह तक चुनौती दे दी थी कि अगर कोई उन्हें हरा देगा तो वह उससे शादी कर लेंगी.

इसी के चलते एक बार बाबा पहलवान नाम के मशहूर पहलवान ने उन्हें चुनौती दी कि वह या तो उससे शादी करे या फिर उसे कुश्ती में हरा दे. यह पहलवान हमीदा को कमज़ोर समझ रहा था, लेकिन उसे क्या पता था कि हमीदा पहले ही दो अन्य दावेदारों को मात दे चुकी है, जिसे हमीदा ने नकारते हुए कहा कि वे उसे पराजित कर दिखाएंगी. मुकाबले के दिन हमीदा ने मात्र 1 मिनट 34 सेकंड में बाबा को धूल चटा दी.

उनके इसी मुकाबले की जीत को Google हर साल 4 मई को अपने होम पेज पर गूगल डूडल (Google Doodle) के साथ celebrate करता है और पूरी दुनिया में उनकी कहानी को जीवित रखता है.

Google Doodle celebrates Hamida Bano

Image Credits - Google Doodle

हर मुकाबले में हासिल की जीत

हमीदा के खेल कौशल की चर्चा तो थी ही, साथ ही उनके सामाजिक संघर्ष ने भी कईयों को प्रेरित किया. पुरुष वर्चस्व वाले इस खेल में उनका संघर्ष सिर्फ खुद के लिए नहीं था, बल्कि वह उन सभी महिलाओं के लिए भी था जो अपनी आवाज को बुलंद करना चाहती थीं. हमीदा ने कभी भी 'पर्दा' की पाबंदियों को नहीं माना और अपने खेल के ज़रिए समाज की रूढ़ियों को चुनौती दी.

हमीदा का करियर उनकी अदम्य भावना का प्रतीक था. उन्होंने अपने सभी 320 मुकाबलों में जीत हासिल की और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी छाप छोड़ी. वे यूरोपीय पहलवानों से भी मुकाबला कर चुकी थीं और उन्हें भी हरा देती थी. 

हमीदा बानो (Hamida Banu) की कहानी सिर्फ उनकी उपलब्धियों तक सीमित नहीं है; यह एक प्रेरणा है उन सभी के लिए जो समाज की बंदिशों को तोड़कर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं. उनकी कहानी आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी कि उनके समय में थी.

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