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राजस्थान के चित्तौड़गढ़ की 55 वर्षीय महिला मधु खोईवाल की कहानी काफी दिलचस्प है. मधु की यात्रा चुनौतियों और सशक्तिकरण से भरी है. वह एक ऐसे गाँव में पली-बढ़ी, जहाँ लड़कियों के लिए शिक्षा को आवश्यक नहीं माना जाता था. उन्होंने 5वीं कक्षा के दौरान स्कूल छोड़ दिया. शादी करने और बच्चे पैदा करने के बाद, वह हतोत्साहित महसूस करने लगीं.
Manjari foundation के साथ मिला सेकंड चांस एजुकेशन प्रोग्राम
समाज की महिलाओं के बारे में धारणा मधु को परेशान करती थी. उनके बच्चों के प्रोत्साहन ने उन्हें इस धारणा को बदलने और सपने देखने के लिए प्रेरित किया. तीस साल बाद, मधु ने स्कूल लौटने और एक बार फिर से शिक्षा हासिल करने का फैसला किया.
दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत के दम पर उन्होंने 10वीं की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की. Manjari foundationद्वारा समर्थित सेकंड चांस एजुकेशन प्रोग्राम से उनका वापस पढ़ने का सपना साकार हो गया.
शुरू करी खुद की LIC एजेंसी
मधु का अगला लक्ष्य अब एलआईसी एजेंट बनना था. हाल ही में, उन्होंने अपनी खुद की एजेंसी शुरू की और बड़े उत्साह के साथ वो व्यवसाय चलाने के बारे में सीख रही हैं.
मधु की कहानी उनकी उम्र की महिलाओं के लिए प्रेरणा का काम करती है, जो इस बात पर जोर देती जीवन में हर कोई एक सेकंड चांस का हक़दार है. मधु का मानना है कि सपनों को पूरा करने और वित्तीय स्वतंत्रता हासिल करने में उम्र कभी भी बाधा नहीं बननी चाहिए.
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संयुक्त राष्ट्र महिला भारत द्वारा एक जमीनी स्तर के उद्यमी के रूप में सम्मानित, मधु एक ऐसे भविष्य की उम्मीद करती है जहां कोई भी महिला सीखने और आत्मनिर्भर बनने के अवसर से वंचित न रहे.
मधु का कहना है, "हम कोई भी शौक, कोई काम या कोई भी उद्देश्य चुन सकते हैं, चाहे हम जीवन के किसी भी पड़ाव पर हों; जो चीज आम रहती है वह है उसे आगे बढ़ाने का दृढ़ संकल्प."
इस उम्र में आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना मधु जैसी कई महिलाओं के लिए किसी नामुमकिन के मुमकिन होने जैसा है.