मंजरी फाउंडेशन के सखी कार्यक्रम से महिलाएं बन रहीं साक्षर

मंजरी फाउंडेशन के साथ मिलकर प्रवीणा ने गांव की अशिक्षित महिलाओं को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का निर्णय लिया ताकि प्रत्येक महिला स्वयं हस्ताक्षर करना सीख सके.

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रिसिका जोशी
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कुछ समय पहले, मंजरी फ़ाउंडेशन का “सखी कार्यक्रम” एक पुरुष प्रधान समाज वाले छोटे से गांव नरपत की खेड़ी तक पहुंचा. राजस्थान के अधिकांश गांवों की तरह, यहां भी गांव के पुरुष कृषि और श्रम कार्यों में लगे हुए थे, जबकि महिलाएं घर पर रहकर घरेलू काम करती थीं. जागरूकता की कमी और अशिक्षा इस गांव की प्रमुख बाधाएं हैं. इसलिए महिलाओं और उनके परिवारों को स्वयं सहायता समूह बनाने के लिए राजी करना मंजरी के लिए चुनौतीपूर्ण काम था. 

मंजरी फाउंडेशन के 'सखी कार्यक्रम' का कमाल

इसी गांव में प्रवीणा नाम की महिला रहती है, जिसकी कहानी उसके ही गांव की कई अन्य महिलाओं की कहानियों से मिलती जुलती है. प्रवीणा B.A है, वह आगे जाकर शिक्षिका बनना चाहती थी लेकिन दुर्भाग्य से 17 साल की उम्र में ही उसकी शादी हो गई. शादी के बाद उसे अपने घर तक ही सीमित कर दिया गया. ये सब प्रवीणा को बहुत खलता था. उसे लगता था कि उसकी शिक्षा किसी काम की नहीं है.

प्रवीणा के पति दुर्गा शंकर एक किसान हैं जो दूसरों के खेतों में मजदूरी किया करते हैं. प्रवीणा के तीन बच्चे हैं- दो लड़कियां और एक लड़का. उनकी बड़ी बेटी 10वीं कक्षा में पढ़ती है. उनका बेटा 8वीं कक्षा में है और सबसे छोटी लड़की 3 साल की है. 

Manjari Foundation Sakhi Program ने भरी प्रवीणा में ऊर्जा

सखी कार्यक्रम (Manjari Foundation Sakhi Program) नाम का परिवर्तन बिन्दू जब मंजरी फाउंडेशन ने उनके गांव में शुरू किया, तो प्रवीणा सबसे पहले आगे आईं और सांवरिया स्वयं सहायता समूह की सदस्य बनीं. तब वह इस गांव की कुछ शिक्षित महिलाओं में से थीं और स्वयं सहायता समूह की एकमात्र साक्षर सदस्य थीं.

उन्होंने कहा, ''जब मैं देखती थी कि यहां सभी महिलाएं हस्ताक्षर करने के बजाय अंगूठे के निशान का इस्तेमाल करती हैं तो मुझे बहुत दुख होता था. मैं असहाय महसूस करती थी.” 

मंजरी के साथ मिलकर प्रवीणा ने गांव की अशिक्षित महिलाओं को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का निर्णय लिया ताकि प्रत्येक महिला स्वयं हस्ताक्षर करना सीख सके. प्रवीणा ने समूह के सभी सदस्यों से आधे घंटे अतिरिक्त रुकने का अनुरोध किया ताकि वह कम से कम बुनियादी शिक्षा तो ले सके.

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पहले यह कठिन था क्योंकि किसी को भी अतिरिक्त समय लगाने और सीखने में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन “सखी कार्यक्रम” की मदद और नियमित परामर्श से धीरे-धीरे महिलाएं अतिरिक्त समय देने के लिए तैयार हो गईं और सीखना शुरू कर दिया. अब यहीं महिलाएँ गर्व से मंजरी फाउंडेशन को बताती हैं कि अब वे अंगूठा नहीं लगाती, अब उन्होंने हस्ताक्षर करना सीख लिया है.

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