आजकल महिलाएं सिर्फ घर के कामों तक ही सिमित नहीं है, बल्कि अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी पहचान बना रहीं है. अपने साथ-साथ अन्य महिलाओं को मार्गदर्शित कर उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. ऐसी ही कहानी है, उत्तराखंड (Uttarakhand) के अल्मोड़ा (Almora) जिले के द्वाराहाट गांव में रहने वाली मंजू शाह (Manju Shah) कि, जिन्होंने जंगल में उगने वाले चीड़ (Pine) के पत्तों से नई दिशा की ओर कदम बढ़ाया और अपने साथ गांव की अन्य महिलाओं को पिरूल से सामान बनाना सिखा रहीं, जिससे वह भी मंजू के मार्गदर्शन में अपनी आर्ट स्किल में सुधार ला रहीं है.
मंजू को लोग 'पिरूल वूमेन' (Pirul Women) के नाम से जानते है. उन्होंने पिरूल के प्रोडक्ट्स बनाने की ट्रेनिंग जापानी इंस्ट्रक्टर से ली. वह पिरूल के पत्तों का उपयोग कर बहुत ही यूनिक और अट्रैक्टिव प्रोडक्ट्स जैसे टोकरी, फूलदान, आसन, पेन स्टैंड, पर्स, अगूंठी सहित हर तरह के सजावट के सामान, जो लोगों को काफी पसंद आ रहें, इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार के साथ समाज में सम्मान भी मिला.
मंजू दे रहीं पिरूल के प्रोडक्ट्स बनाने की ट्रेनिंग
साल 2019 में, मंजू को कोलकाता (Kolkata) में, इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल (India International Science Festival) की तरफ से, बेस्ट अपकमिंग आर्टिस्ट का अवार्ड दिया गया. कुछ समय बाद उन्हें ताड़ीखेत में गवर्नमेंट गर्ल्स इंटर कॉलेज (Government Girls Inter College) में प्रयोगशाला सहायक (Laboratory Assistant) बनाया गया, जहां वह स्कूल के शिक्षकों और लड़कियों को पिरूल के सामान बनाने की ट्रेनिंग देने लगीं. मंजू के इस जीरो इन्वेस्टमेंट इनोवेशन इन एजुकेशन प्रोग्राम (Zero Investment Innovation In Education Program) के लिए उन्हें प्रशस्ति पत्र से नवाजा गया. मंजू की वजह से आज गांव में महिलाओं के पास रोजगार का नया जरिया हैं.
आज मंजू पैंतालिश self help groups (SHGs) और 2000 से ज्यादा बेरोजगार महिलाओं को स्वरोजगार की दिशा में ट्रेनिंग दे रहीं हैं. मंजू की यह सफलता की यात्रा आसान नहीं थी, उनकी ज़िन्दगी में कई परेशानियां आई पर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और ज़िन्दगी में आगे बढ़ने के लिए निरंतर प्रयास में लगीं रही. आज इन्हीं प्रयासों का नतीजा हैं कि, मंजू ने अपने साथ दूसरी महिलाओं को भी सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया हैं.
Pine के प्रोडक्ट्स को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान के साथ सराहना भी मिली. इन उत्पादों के इस्तेमाल से प्लास्टिक और पर्यावरण प्रदुषण से भी छुटकारा मिल सकता हैं. अब मंजू इस काम को और आगे बढ़ाकर महिलाओं की आर्थिक स्थिति में बदलाव लाना चाहती है. मंजू की इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि, किसी भी सामाजिक परिस्थिति में हम अपने कौशल और परिश्रम से न केवल अपनी ज़िन्दगी में बदलाव ला सकते है, बल्कि दूसरों को भी आत्मनिर्भर बना सकते हैं.