सूरज की पहली किरण के साथ, जब सपनों की धड़कनें नए आसमान में बस रहीं थी, मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) रीवा (Rewa) के जोरौट गांव की रहने वाली शिखा (Shikha), अपने सपनों को पाने की नई कहानी लिखने को तैयार थी.
शिखा की मेहनत और संघर्ष ने, उनकी ज़िन्दगी को अमरुद और अन्य फलदार पौधों से सजीव किया. फलों की विक्री से उन्हें पिछले सीजन में दो लाख रूपए की आमदनी हुई, जिससे उनके सपनों को रंगीन उड़ान मिली और यह सब संभव हुआ स्वयं सहायता समूह में शामिल होने से. Self Help Groups से जुड़ने से पहले शिखा के परिवार का ख़र्च पहले मजदूरी और खेती से चल रहा था. जब उन्हें SHGs के बारे में पता चला तो निशा और उनकी मां समूह की सदस्य बन गई.
लोन की मदद से शिखा ने शुरू की फलों की खेती
सेल्फ हेल्प ग्रुप कि मदद से शिखा ने CLF बैंक लोन (Bank Loan) लेकर अपनी ज़मीन पर फलदार पौधे और 100 अमरुद (Guava) के पेड़ लगाए. जब फल आने शुरू हुए तब उन्होंने लगभग 2 लाख रूपए की विक्री की. आज शिखा मजदूरी छोड़कर बाग़ीचे की मालकिन है और अपनी आय से बच्चों को भी अच्छी शिक्षा उपलब्ध करा रहीं. अब वह लगभग महीने के 15 -20 हज़ार रूपए कमाती है.
शिखा की कहानी सपने की तरह है, जिसने उनके जीवन को खुशियों से भर दिया. उनकी मेहनत, संघर्ष, और सामूहिक समर्थन ने उन्हें नई मंजिल पर पहुंचाया. सीखा की कहानी हमें सिखाती है कि सपनों को पाने के लिए हार नहीं माननी चाहिए, बल्कि मेहनत और सहायता के साथ उन्हें पाने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए.