प्राचीन आर्ट को सहेज रही समूह की आदिवासी महिलाएं

:छत्तीसगढ़ के बस्तर में यह आर्ट लगभग चार हजार साल पुरानी मानी जाती है. मोहन-जोदड़ो खुदाई में मिली सभ्यता में नृत्य करते हुए खूबसूरत मूर्ति इस बात का सबूत है. इस तरह की मूर्तियां यहां के आदिवासी कलाकार बनाते आए हैं.

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आदिवासी कलाकार महिलाओं से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ बात करती प्रियंका गांधी (Image Credit: PR, CG)

प्राचीन आर्ट को सहेज रही समूह की आदिवासी महिलाएं

छत्तीसगढ़ (CG) के कोंडागांव (Kondagaon) की पहचान हैंडीक्राफ्ट (Handicraft) से है. इस विरासत को बचाने के लिए कलाकारों के साथ सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी. नतीजा यह रहा कि कुछ सालों में ही कोंडागांव  (Kondagaon) की विरासत और कलाकार को देश के साथ अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर नए सिरे से पहचान मिल गई. बैल मेटल या ढोकरा आर्ट (Dhokara Art) के नाम से प्रसिद्ध यह विरासत है.कई तरह की आर्ट ने कोंडागांव 'डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ आर्टिस्ट' के नाम से जानने लगे.राज्य को पहचान दिलाने वाली इस  आर्ट और कलाकार महिलाओं से मिलने मुख्यमंत्री (CM)भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) के साथ खुद प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) पहुंची. 

छत्तीसगढ़ (CG) के गुमनाम कलाकारों की विरासत ही आज उनके लिए कमाई का जरिया बन गया. आजीविका मिशन (Ajiveeika Mission) से जुड़ कर महिलाएं भी आत्मनिर्भर हो गईं. जिले के करनपुर (Karnpur) गांव के तिरंगा स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की आशा बघेल कहती हैं- "मैं पहिले कुछ काम नहीं करत रहूं. खेती में जाती रहूं. उकर बाद में समूह से जुड़ के मोर जिंदगी में बदलाव आगे है." (मैं पहले कोई काम नहीं करती थी. खेती में जाती थी. उसके बाद समूह से जुड़ कर मेरी ज़िंदगी में बदलाव आया.) इस गांव में आशा बघेल जैसी कई महिलाओं की कहानी हैं जो घरेलु महिलाएं हो कर आर्थिक तंगी से जूझ रहीं थी. इन महिलाओं ने परिवार के साथ हैंडीक्रॉफ्ट कला (Handicraft Art) को संभाला. 

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करनपुर गांव में मूर्ति बनाती आदिवासी कलाकार (Image Credit: Ravivar Vichar)

चार हजार साल पुरानी आर्ट 

छत्तीसगढ़ (CG)के बस्तर (Batar)में यह आर्ट लगभग चार हजार साल पुरानी मानी जाती है. मोहन-जोदड़ो खुदाई में मिली सभ्यता में नृत्य करते हुए खूबसूरत मूर्ति इस बात का सबूत है. इस तरह की मूर्तियां यहां के आदिवासी कलाकार बनाते आए हैं. आजीविका मिशन (Ajiveeika Mission) की कोंडागांव (Kondagaon) जनपद ब्लॉक की यंग प्रोफेशनल (Young Professional) अनामिका भद्र बताती हैं- " यहां आदिवासी समूह इस कला को को बचाते रहे, लेकिन मार्केटिंग नहीं होने से आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी.समूह से जुड़ने के बाद इन्हें कला के साथ नई पहचान मिली."
इसी ब्लॉक के सात समूह में 50 से ज्यादा महिलाओं को जोड़ कर काम दिया गया. जिले के बीपीएम (BPM) रेनुराम बताते है- "हमारी टीम लगातार समूह के साथ जुड़ी रहती है. समय-समय पर उनको आ रही परेशानी को दूर किया जाता है."

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 कोंडागांव समूह की महिलाओं द्वारा बनाई गई खूबसूरत मूर्ति  (Image Credit: Ravivar Vichar)   

धातुओं से बनाते मूर्तियां 

करनपुर (Karnpur) के साथ सोनबाल  गांव में भी ये आर्ट बनाई जाती है.  इस तरह की आर्ट को ओडिशा (Odisha) में भी बनाया जाता है. अनामिका आगे बताती है- " इसे छत्तीसगढ़ की  'ढोकरा मूर्ति' कला कहा जाता है. सांचे में तांबा, पीतल, कांसा जैसे मटेरियल को ढलाई करके मिट्टी से बने सांचें में मोम, पेड़ की राल और अखरोट के तेल से ढंका जाता है. मोम के नरम होने पर नक्काशी की जाती. आखरी में इसे आर्ट को पॉलिश कर चमकाया जाता है. इससे कई आइटम बनाए जाते हैं." 

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मेले में आयोजित कोंडागांव की ढोकरा आर्ट को सराहना देते जनप्रतिनिधि  (Image Credit: Ravivar Vichar)   

जरूरतमंदों का सहारा रीपा सेंटर 

कलाकार इस कला के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं. आजीविका मिशन बिहान (Ajiveeika Mission Bihan) के लिए रीपा (रूरल इंडस्ट्रियल पार्क) योजना के तहत कलाकारों को प्रोत्साहन दिया.करनगांव सेंटर से जुड़ी लिंगमाता परदेशिन समूह (SHG) की बासन सागर बताती हैं- "हमर घर में शिल्पी काम करे के जगह नहीं रहीस, शासन की तरफ से हमला अधिक अच्छा जगह मिली से. यहां आके हमन अपन शिल्पी काम ला बनले कर सकत हन." (हमारे गांव में शिल्पी काम करने की जगह नहीं थी, शासन की तरफ अच्छी जगह मिली. यहां आकर हम शिल्पी का काम कर सकते हैं.)

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कोंडागांव का शिल्प नगरी जहां शिल्प आर्ट उपलब्ध कराया  (Image Credit: Ravivar Vichar)   

विदेशों में बनी पसंद की आर्ट 

ढोकरा आर्ट (Dhokara Art) की चमक विदेशों तक पहुंच गई. दिल्ली में आयोजित प्रदर्शनी में बैल मेटल आर्ट मूर्तियां, प्राकृतिक चांद, सूरज, नंदी के अलावा जूलरी और वॉल हेंगिंग को पसंद किया. यहां से इन्हें विदेशियों ने भी पसंद किया. आजीविका मिशन के जिला मिशन प्रबंधक (DMM) विनय कुमार सिंह कहते है- "यह आर्ट न केवल बस्तर बल्कि छत्तीसगढ़ की शान है. इन कलाकृतियों की लगातार मांग बढ़ी है. दिल्ली, मुंबई की प्रायवेट फर्म भी ऑर्डर्स दे रहे. सरस मेले में भी यहां की आर्ट के साथ कलाकारों को भेजा जा रहा.समूह की महिला कलाकारों को काफी आर्थिक लाभ हुआ." इस प्रोजेक्ट के लिए जिला प्रशासन भी ख़ास रूचि ले रहा. जनपद पंचायत (JP) की सीईओ (CEO) निकिता  मरकाम  खुद स्वयं सहायता समूह (SHG) की महिलाओं से मिल कर हौसला बढ़ाती हैं. समूह की महिलाओं का कहना है कि हमें सभी अधिकारियों से बेहतर मार्गदर्शन मिल रहा.

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