किरण देसाई (Kiran Desai) की कलम ने ऐसे महिला किरदारों (female characters) को रचा जिन्होंने पाठक को सोचने पर मजबूर किया, कई अहम सवाल उठाये, और भावों की जटिलता को सहजता से पेश किया. उन्होंने अपने उपन्यास 'द इनहेरिटेंस ऑफ़ लॉस' (The Inheritance of Loss) के लिए मैन बुकर प्राइज (Man Booker Prize winner) जीता.
'द इनहेरिटेंस ऑफ़ लॉस' में दिखी आइडेंटिटी की तलाश
किरण देसाई के महिला किरदार (female characters of Kiran Desai) बहु-आयामी (multi-faceted) होते. उनकी कहानियों का असर आख़री पन्ने के बाद भी नहीं जाता. 'द इनहेरिटेंस ऑफ़ लॉस' में उन्होंने महिलाओं की अपनी आइडेंटिटी (theme of identity in The Inheritance of Loss) की तलाश जैसे कई मुद्दों को उठाया है. इस उपन्यास में, नारीवादी (feminist perspective in Kiran Desai's work) नज़रिये को मुख्य किरदार सई के ज़रिये दिखाया गया है. सई को अपने गणित टीचर ज्ञान से प्यार हो जाता है. ज्ञान निम्न वर्ग से है, फिर भी सई का प्यार उसके लिए कम नहीं होता.
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अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में सई जज और रसोइये को बराबरी से ट्रीट करती. सई एक नारीवादी (feminist) हैं. वह मजबूत और महत्वाकांक्षी है. वह अपने आसपास की दुनिया के बारे में खुले विचार रखती है.
'हुल्लाबालू इन द गुआवा ऑर्चर्ड' में उजागर हुई भेदभाव की कठोरता
अपने पहले उपन्यास 'हुल्लाबालू इन द गुआवा ऑर्चर्ड' (Hullabaloo in the Guava Orchard) में किरण देसाई ने पुरुष प्रधान समाज (patriarchal society) में मौजूद डबल स्टैंडर्ड्स (double standards) की वजह से महिलाओं की दुर्दशा और कमजोर स्थिति पर लिखा. यह उपन्यास पुरुषों और महिलाओं की मानसिकता को उजागर करता है जो लिंग भेदभाव (gender descrimination) की कठोरता के बीच फंसे हुए हैं.
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प्रसिद्द उपन्यासकार अनिता देसाई की बेटी है किरण देसाई
3 सितम्बर 1971 को नई दिल्ली में जन्मी किरण देसाई (Kiran Desai in hindi) प्रसिद्द उपन्यासकार अनिता देसाई (Anita Desai and Kiran Desai) की बेटी है. 15 साल की उम्र में वह अपने परिवार के साथ इंग्लैंड (England) और फिर अमेरिका (America) चली गई. उन्होंने 1993 में बेनिंगटन कॉलेज से ग्रेजुएशन और बाद में दो एम.एफ.ए. की डिग्रियां हासिल की.
देसाई के किरदार विविध अनुभवों, संघर्षों और जीतों के ज़रिये पहचान, विस्थापन, परंपरा और आधुनिकता के विषयों की खोज करते हैं.