रोज़मर्रा की तरह आज भी आपके दरवाज़े, कॉलोनी, सोसाइटी, फ्लैट्स, सड़कों से कचरा लेकर गए होंगे वो लोग, जिन्हे हम सब 'कचरे वाला' कहते है. लेकीन हैरानी की बात ये है कि जो व्यक्ति साफ़ सफाई कर आपके घर और देश को स्वच्छ बना रहा है उसे 'सफाई वाला' क्यों नहीं मान रहे हम?
हर सफाईकर्मी के साथ भेदभाव घरों से ही शुरू होता है. लेकिन ज़रा एक बार सोचिए, ये लोग अगर काम करना बंद कर दें तो क्या हाल होगा देश का? एक taboo का विषय बना दिया है इसे. इसीलिए आज हमारे देश में लोगो कि सोच बदलना ज़रूरी हो गया है और इसी कड़ी में एक बहुत बड़ा कदम बनते हुए Harpic World Toilet College (HWTC) सामने आया है.
HWTC कर रहा sanitation workers को train
Sanitation Workers को प्रशिक्षित करने के लिए HWTC सामने आया है जो उन्हें सही कौशल सेट से लैस करेंगे ताकि हर sanitation worker (sanitation workers initiatives) पनी ज़िंदगी में नौकरियां सुरक्षित करने के साथ सम्मानजनक जीवन जीए. यह प्रशिक्षण स्वच्छता कर्मियों को अपना जीवन उत्थान करने और सम्मान के साथ जीने में मदद करेगा.
एक संगठन के रूप में, Reckitt समुदायों का समर्थन करने और लोगों को स्वस्थ और सम्मानजनक जीवन जीने में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है. देश भर के 14 राज्यों को कवर करने के लिए हार्पिक वर्ल्ड टॉयलेट कॉलेज नेटवर्क का विस्तार कर रेकिट कंपनी स्वच्छता कर्मचारियों के जीवन और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सकारात्मक रूप से बदलने का सफल प्रयास कर रही है. Social return on investment (SROI) evaluation '20 के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में, HWTC प्रत्येक 1 रुपये के निवेश पर 23.20 रुपये का सामाजिक मूल्य प्रदान कर रहा है.
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भारतीय महिला सफाई कर्मियों को है उत्थान की ज़रूरत
भारत में महिला स्वच्छताकर्मियों (number of women labours in india) की गंभीर वित्तीय, सामाजिक और स्वास्थ्य चुनौतियों को देखते हुए उनकी सुरक्षा और उत्थान की सख्त जरूरत है. Dalberg की रिपोर्ट "Sanitation worker safety and livelihoods in India" के अनुसार, लगभग पांच मिलियन “sanitation workers के full-time equivalents” हैं. ये सब अपने जीवन को हर दिन खतरे में डालकर sanitation का काम कर रहे है. इन सफाई कर्मचारियों को अलग-अलग स्तर के जोखिम का सामना करना पड़ता है. इनमें से लगभग दस लाख शहरी क्षेत्रों में नालियों और सामुदायिक सफाई के लिए और छह लाख शौचालय की सफाई में लगे हुए हैं.
सदियों से, जाति व्यवस्था ने एक ख़ास वर्ज के लोगों को मजदूर बनाकर स्वच्छता सेवाएं प्रदान करने के लिए मजबूर किया है. एक पेशे के रूप में उनका सम्मान करने के बजाए अधिकांश समाजों ने इनके साथ भेदभाव और शोषण किया है. जैसे-जैसे भारत स्वच्छ भारत मिशन (swachh bharat mission) के अगले चरण में आगे बढ़ रहा है, लाखों स्वच्छता कर्मचारियों (सफाई मित्रों) के लिए काम की गरिमा और कामकाजी परिस्थितियों में सुधार के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता भी बढ़ती जा रही है. शहरी भारत को आधिकारिक तौर पर अक्टूबर 2019 में Open Defecation Free घोषित किया गया था, जो SBM 1.0 द्वारा प्रदान किए गए thrust के कारण संभव हो पाया.
स्वच्छता कार्य को चार प्रमुख प्रणालियों में शामिल प्रथाओं/सेवाओं के रूप में बेहतर ढंग से समझा जा सकता है: 1. सीवेज (संग्रह और उपचार), 2. जल (उपचार, प्रबंधन और वितरण) 3. ठोस अपशिष्ट (संग्रह और उपचार), और 4. वर्षा जल निकासी. दुर्भाग्य से, हमारे देश के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में स्वच्छता मूल्य श्रृंखलाओं में सभी चरणों में standardisation, strength, और efficiency का अभाव है.
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बेहतर उपकरणों से लैस करना है ज़रूरी
भारत में वर्तमान sanitation infrastructure महिला श्रमिकों को hazardous conditions में डालता है क्योंकि उन्हें दिए गए उपकरण और गियर सुरक्षा स्थितियों को पूरी तरह से कम नहीं करते हैं. साथ ही महिला सफाई कर्मचारियों को odd hours में public interactions के कारण unsafe work environments का सामना करना पड़ता था लेकिन आज भी इस मुद्दे पर कोई भी बात नहीं की जा रही.
भारत में इस वक़्त sanitation के बहु बड़ा मुद्दा है लेकिन फिर भी sanitation workers आज भी बहुत बड़े पैमाने पर ignore किया जाते है.कारण है इन्हें (human labours count statistics) human labour की socially invisible class समझना. इसीलिए Harpic World Toilet College महिला स्वच्छता कर्मियों के मुद्दों को संबोधित कर उनके सशक्तिकरण की दिशा में काम करता है और साथ ही इन महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक भी.
Reckitt का Hari Bhari initiative कर रहा मदद
Reckitt की एक पार्टनर स्कीम है "Hari Bhari initiative" जिसनें इस company को जातिगत पूर्वाग्रह से लड़ने में म बहुत मदद कर रही है.
ऐसा ही एक experience है Sunil Siraswal का. वे बताते है- “मैं एक मैनहोल में काम कर रहा था जब कुछ महिलाओं ने मुझे गंदगी में भरा हुआ देखकर मुझ पर थूक दिया. अपमान हर रोज़ की चुनौती थी, लेकिन इस घटना ने मुझे अंदर तक तोड़ दिया."
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16 वर्षों से अधिक समय तक गटर और मैनहोल की सफाई करने के बाद, सिरसवाल ने उसी काम को करने के लिए मशीनों का उपयोग करने के बारे में सीखने के लिए हार्पिक वर्ल्ड टॉयलेट कॉलेज में प्रशिक्षण लिया. वह गर्व से बताते हैं कि बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन ने उन्हें एक मशीन दी थी. Harpic द्वारा शुरू किए गए self help group के अध्यक्ष सिरसवाल कहते हैं, "I will be an entrepreneur- the king of sanitation"
भारत के कस्बों और शहरों को साफ-सुथरा रखने और लोगों के स्वास्थ्य को बनाए रखने वालों की मदद करना स्वाभाविक प्रक्रिया है, और अब इन स्वच्छता कार्यकर्ताओं की ज़िंदगियों को और हल्के में नहीं लिया जा सकता है. सफाई कर्मचारी unhealthy और hazardous परिस्थितियों में काम करते हैं, उन्हें बहुत कम वेतन मिलता है और उनका कोई बीमा भी नहीं होता है. सामाजिक रूप से बहिष्कृत है ये लोग. आपको जानकर हैरानी होगी की एक sanitation worker की life expectancy 50 वर्ष या उससे कम है जो national average 70 वर्ष से बेहद काम है.
नालियों और सीवेज की सफाई से लेकर सेप्टिक टैंक तक, महिला सफाई कर्मचारी देशभर में मानव अपशिष्ट की सफाई करते हैं और इसी कारण उन्हें प्रतिदिन मानव अपशिष्ट का सामना करते हैं. यह बात घातक बीमारियों जैसे cardiovascular degeneration, musculoskeletal disorders, hepatitis और leptospirosis के खतरे से उनका सामना हर दिन करवाती है
रेकिट की हार्पिक वर्ल्ड टॉयलेट कॉलेज पहल आशा की किरण प्रदान कर रही है हर उस महिला स्वछता कर्मी की ज़िंदगी में जो आज तक सिर्फ इसीलिए सर उठा कर नहीं जी पाई क्योंकि वह अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ कर रही थी. आज, HWTC की उपस्थिति 14 भारतीय राज्यों में है. HWTC का लक्ष्य मजबूत और व्यापक प्रशिक्षण और पोस्ट-प्लेसमेंट सहायता के माध्यम से वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान कर स्वच्छता कर्मचारियों को सम्मानजनक जीवन जीने में मदद करना है. नाजाने क्यों लो इन्हें इस तरह से धुत्कार है, क्योंकि रविवार विचार की नज़र में ये सारे सफाईकर्मी किसी सिपानी ही कम नहीं जो अपनी जान को जोखिम में डालकर आम जनता की जान बचा रहा है.