बंधुआ मज़दूरी से आज़ादी का सफ़र तय करती महिलाएं

बोंडेड लेबर की कहानियां आए दिन हमारी सामने आ जाती है. इनके लिए कोई कुछ सोचता नहीं है. लेकिन कहते है न एक महिला है दिल सबसे कोमल होता है. इसीलिए वे ना ही अपने परिवार को और ना ही अपने साथियों को परेशानी में देख सकती है.

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रिसिका जोशी
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Bonded labour story

Image Credits: Femina.in

एक मज़दूर देखने को हमें हर जगह मिल जाते है, कोई बिल्डिंग बनने का काम हो रहा हो या कोई फैक्टरी चल रहीं हो. इन मजदूरों को देखकर हमारे दिमाग में ये ख्याल भी नहीं आता कि इन लोगों की ज़िंदगियों में क्या परेशानियां चल रहीं है. हर माथे की लक़ीर कोई अलग कहानी कह रही होती है. पसीने की हर बूँद एक नयी दास्तान बयां करती है. इन मजदूरों की ज़िंदगी कब क्या मोड़ ले इन्हें भी नहीं पता होता. ऐसी ही कुछ कहानियां है इस आर्टिकल में, जो हर व्यक्ति को सोचने पर मजबूर कर देतीं है.

बोंडेड लेबर की कहानियां आए दिन हमारी सामने आ जाती है. इनके लिए कोई कुछ सोचता नहीं है. लेकिन कहते है न एक महिला है दिल सबसे कोमल होता है. इसीलिए वे ना ही अपने परिवार को और ना ही अपने साथियों को परेशानी में देख सकती है. ऐसी ही 5 महिलाओं की कहानियां है यहां पर जिन्हें पढ़कर आज़ादी का सच्चा मतलब समझ आता है.

बंधुआ मज़दूरी से आज़ादी का सफ़र तय किया इन महिलाओं ने

वसंथा, एक बोंडेड लेबर, जो अपने पति और 1 साल के बच्चे के साथ ईंठ की भट्टी पर काम करने को मजबूर थी. सरकार की तय मिनिमम वेज से कई गुना काम मिलने के बावजूद वह कुछ बोल नहीं सकती थी, क्योंकि सवाल अपने बच्चे और परिवार के पेट पलने का था. अगर किसी दिन भूखा भी सोना पड़े तो हैरानी की कोई बात नहीं थी उसके लिए. मालिक की गालियां और दिन रात सिर्फ दर्द, यही ज़िंदगी बनकर रह गयी थी, वसंथा की. 

एक उम्मीद की किरण के रूप में डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन सामने आया. उन्हें अपने घर  जाने का मौका मिल गया. वह नसीब वाली थी इसीलिए इस दलदल से बच पाई. यह बात वसंथा भी जानती थी. वह तिरुवन्नामलाई में Released Bonded Labour Association (RBLA) की स्पोक्सपर्सन के रूप में एक मज़बूत एडवोकेट के रूप में सामने आई. एक स्वयं सहायता समूह (SHG) का नेतृत्व कर रहीं है, जो छोटी आजीविका पहलों के माध्यम से सदस्यों की सहायता करता है. 

सिल्क बनाने के फैक्टरी में काम तो करती थी, चंद्रम्मा, लेकिन यह कभी सोचती भी नहीं थी कि उसी सिल्क से बनी साड़ी कभी पहनने को मिलेगी उसे. सिल्क वर्म्स के साथ काम करते करते उसके हाथ सूख गए थे. 2 बच्चों की मां थी चंद्रम्मा. लगा की एक नयी नौकरी करेगी तो सब ठीक हो जाएगा. लेकिन बैंगलोर की उस फैक्टरी में जाकर उसकी जिन्दगी बद से बत्तर हो गयी. मालिक पीटता था, बिना वज़ह सज़ा देता था. उसे और उसके बेटे को मालिक ने एक छोटे से कमरे में 4 महीने के लिए बंद कर दिया. वह बस मर ही नहीं रही थी, बाकी उसके साथ सब कुछ हो गया था.

कुछ समय बाद लोकल अथॉरिटीज़ ने उन्हें बचा लिया. वह खुद को लकी मानती है और  आज ऐसे लोगों की मदद करने में अपना ज़्यादातर समय देती है चंद्रम्मा. अपने स्थानीय Released Bonded Labour Association (RBLA) के सदस्य के रूप में, वह दूसरों को अपनी स्वतंत्रता पुनः प्राप्त करने के लिए सशक्त बनाने के लिए समर्पित है.

12 साल की रंजीता, अपने परिवार के साथ ईंठ की भट्टी पर काम करती थी. अपनी पढ़ाई को नज़रअंदाज कर इस बच्ची ने अपने परिवार को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए अपना जीवन सौंप दिया. लेकिन जिस जगह वह काम कर वहां उसके परिवार की हालत और बुरी हो गयी. सुबह से लेकर शाम तक इतना काम दिया जाता था. बच्चों को बांध कर काम करवाते और हर वह धमकियों के डर में सब को काम करना पड़ता था. लेकिन इतना होने के बावजूद भी रंजीता ने हार नहीं मानी.

कुछ समय बाद कर्नाटक सरकार ने उस भट्टी के लोगों को रेस्क्यू कर उन्हें अपने गांव में वापस भेज दिया. रंजीता के परिवार की ख़ुशी हद से ज़्यादा थी, लेकिन रंजीता जानती थी, की अभी उसने सिर्फ आधी जंग ही जीती है. उसने पढ़ना शुरू कर दिया, और परिवार की मदद करने के लिए छोटे मोटे काम भी करना. आज वह समुदाय के कमजोर सदस्यों का आवास और श्रम कार्ड बनवाने में मदद करती है. वह उन्हें पंजीकरण के महत्व और बिना लाइसेंस वाले श्रम ठेकेदारों पर भरोसा करने के जोखिमों के बारे में शिक्षित करती है.

अपनी छोटी सी बच्ची को आखों के सामने मरता देखा हो जिस माँ ने, उसकी क्या हालत हुई होगी यह कोई सोच भी नहीं सकता. मालिक को सिर्फ अपनी फसल ख़राब होने की चिंता थी. उसने बच्ची को वैसे ही मरने के लिए छोड़ दिया. कांपते हुए हाथों के साथ कुप्पामम्ल को काम करना पड़ रहा था. दूसरी बच्ची की भी जान जाते जाते बची थी, और तीसरे बच्चे के पैरों में भी चले पड़े गए थे. इतना होने के बाद भी काम करना मजबूरी थी, कुप्पामम्ल की.

एक बदलाव की किरण लेकर आया 2006. Revenue divisional officer ने उन्हें कर्ज़े से मुक्त करवाया ताकि वह घर जा पाए. जैसे ही उन्हें आज़ादी मिली, उसने ठान लिया कि वह हर महिला, जो इस तकलीफ से गुज़र रही है, उसे कभी वह परेशानी नहीं सहने देगी. कुप्पाम्मल अब आठ  Self Help Group की देखरेख करती हैं. ये समूह महिलाओं को अपने जीवन का पुनर्निर्माण करने, करियर बनाने और उद्यमी बनने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं. उन्होंने अपने जीवन को न केवल अपने परिवार के लिए, बल्कि पूरे समुदाय के लिए आशा की किरण में बदल दिया.

जब उसका पति बीमार हुआ, तो उसने सोचा की अपने परिवार को अच्छे से  पालने के लिए मुझे आगे आना होगा. मध्यप्रदेश की परोबाई, ने फैसला किया कि वह दूसरे शहर जाकर अपना काम करेगी और पैसे कमाकर अपने परिवार को संभालेगी. लेकिन जिस व्यक्ति पर भरोसा कर वो गयी थी, उसने उसके साथ की हर महिला को और उसे महाराष्ट्र में बेच दिया. एक नेता के खेत पर इन सब को काम के लिए मजबूर किया गया. महाराष्ट्र में उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, ना भाषा और ना ही मदद पाने का तरीका. 1 साल तक इस परेशानी से गुज़री परोबाई.

2018 में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार  ने लोगों को इस चंगुल से छुड़वाया. अपनी आज़ादी देखकर परोबाई की आखों से आसूं ही नहीं रुक रहे थे. आज, पारोबाई अतिरिक्त आय के लिए अपने खेत का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित करती है. वे दैनिक जरूरतों को पूरा करने और अतिरिक्त उपज बेचने के लिए गेहूं और सब्जियों की खेती भी करती हैं. एक नेता के रूप में उभरते हुए, पारोबाई यह सुनिश्चित कर रही है कि किसी और को उस दर्द से ना गुज़ारना पड़े, जो उसने सहा है.

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