पहला पश्चिमी दार्शनिक (western philosopher) थेल्स आज से करीब 2500 साल पहले हुआ, यह वह दौर था जब भारत में वेदांत पर दार्शनिक बहस ज़ोरों पर थी. इतनी पुरानी और विकसित विचार, व्यवहार और विचारधारा की परंपरा के साथ भी फेमिनिज्म (Feminism), नारीवाद, वीमेन मूवमेंट को हम पश्चिम की देन मानते है. पौराणिक कहानियों से लेकर देवताओं के नाम तक में नारीवादी सभ्यता के कई रंग सदियों से देखे जा सकते है. देवी सीता का कदम और दृढ़ता हो या द्रौपदी का नारीवाद हर तरफ उदाहरण और तथ्य मौजूद है. इनको न सिर्फ नज़रअंदाज़ किया गया बल्कि कहीं न कहीं तथाकथित तौर पर पिछड़ा बताया गया.
भारत की हर कहानी में Feminsim
भारतीय समाज में नारीवाद की मूल भावना वेदों से ही आरंभ होती है. वेदों में स्त्री को सम्मानित किया गया और उसका महत्व प्राथमिकता में रखा गया. महिला को समृद्धि और समानता का प्रतीक वेदों में माना. इसी के साथ, भारतीय पुराणों में भी महिलाओं को उच्च स्थान और महत्व दिया गया. पुरातन भारतीय अर्थशास्त्र में स्त्री को समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना और इसी वजह से सम्मान दिया.
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यह सही है कि महिलाओं के अधिकारों का मुद्दा पिछले कुछ दशक में पश्चिमी दुनिया में राजनीति का एक प्रमुख और स्थायी पहलू रहा. लेकिन गहराई और ईमानदारी से सोचने पर हम पायेंगे की नारी के मुद्दों पर आज हम जहां खड़े है उसका एक बड़ा कारण ऐतिहासिक सबक सीखे बिना गलत या पश्चिम की दिशा में चलना भी रहा.
पिछले दशकों में महिला अधिकार कम
पिछले सात दशकों में महिला अधिकारों के उदाहरण कम ही रहे, भारतीय महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. हालांकि कुछ विकास भी हुआ है जैसे नीतियों के स्तर पर लगातार हो रहे प्रयास सशक्त, शिक्षित और आत्मनिर्भर नारी बनाने के लिए सकारात्मक पहल है.
भारत में महिलाओं की स्थिति का आकलन करने पर आर्थिक आज़ादी (Financial Independence) सबसे महत्वपूर्ण है. इसकी शुरुआत अलग अलग क्षेत्रों को चुनने और उनमें आगे जाने की क्षमता को बढ़ाना पहला कदम है. लगातार आते पहली महिला या प्रथम महिला के उदाहरण नए आसमान चुनने और छूने की बानगी है.
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महिला नेतृत्व और महिला केंद्रित विकास से ही हर क्षेत्र में भागीदारी और पहचान मिलेगी. इसमें पारम्परिक और ऐतिहासिक सबक और प्रेरणा को मिलकर, पश्चिम के नारीवादी आंदोलनों से बेहतर नतीजे लाये जा सकते है. लिंग विभाजन पर जोर देने के बजाए भारत में आज सशक्तिकरण को समग्र और समावेशी बनाना होगा. सहयोग, सहकार और सह-अस्तित्व से ही नारी विकास पूरा होगा जो की सदियों से भारतीय मूल्यों और संस्कृति में निहित है.
महिलाओं से जुड़े मुद्दों का राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग करना भी भारतीय समाज और व्यवस्था के लिए नया प्रारूप है. महिलाओं का सम्मान बहस या राजनीतिक पैंतरेबाजी का विषय नहीं होना चाहिए. महिलाएं एक जीवंत और समृद्ध समाज की मूलभूत आधारशिला है. महिलाओं के मुद्दे भारत में राजनीति नहीं सामाजिक मुद्दे है.
महिलाओं को समाज में समानता, सुरक्षा और सम्मान का अधिकार होना चाहिए. पश्चिम की तर्ज़ पर महिला मुद्दों को राजनीतिक बनाने से उनका हक कम हो जाता है. जब किसी भी मुद्दे को राजनीतिक बनाया जाता है, तो विवादित होने के कारण समाधान नहीं निकलता.
भारतीय इतिहास और पुराणों में महिलाओं का सम्मान और समर्थन बुनियादी मूल्य रहे, इस तरह नारीवाद भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना. और यह हमारे मूल्य सिद्धांतों का एक अभिन्न हिस्सा रहेगा.