भारतीय नारीवाद और ग्रामीण भारत

बात ग्रामीण महिलाओं की हो और स्वयं सहायता समूह का ज़िक्र ना आए यह मुमकिन नहीं. ग्रामीण नारीवाद शहरी नारीवाद से थोड़ा अलग दिखाई दे सकता है. लेकिन वह फ़र्क सिर्फ़ सतही है. मूल रूप से दोनों ही परिवेशों में ज़ोर women empowerment पर ही है.

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मैत्री
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SHG and women empowerment

Image: Ravivar Vichar

आपने कितनी ही बार सुना होगा और कितनी ही बार पढ़ा होगा कि असली भारत यहां के गांव में बसता है. महात्मा गांधी ने भी कुछ ऐसी ही बात कही थी. तो ज़ाहिर सी बात है कि भारत में किसी भी बड़े बदलाव और बड़े आंदोलन की जड़ें भारत के गांव की मिट्टी में रूपी हुईं होंगी. भारत की आज़ादी की लड़ाई में ग्रामीण भारत का योगदान किसी से भी छुपा हुआ नहीं है. और यह अपने आप में सिर्फ़ एक ही उदाहरण नहीं है.

भारत के ग्रामीण परिवेश में Feminism की मौजूदगी नई नहीं  

चलिए आज इस बारे में बात करते हैं कि किस तरह से नारीवाद जिसे अक्सर कई लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ शहरों से या शहरी महिलाओं से जोड़कर देखने की गलती कर लेते हैं, भारत के ग्रामीण परिवेश में भी Feminism यानी कि नारीवाद न सिर्फ़ सदियों से मौजूद है बल्कि वक्त के साथ सशक्त भी हो रहा है. इस सशक्तिकरण (women empowerment) की रफ़्तार वह नहीं है जो कि होनी चाहिए. लेकिन उसके अस्तित्व को ना तो नकारा जा सकता है और ना ही नज़रअंदाज किया जा सकता है.

feminism in rural india

Image Credits: Counterview.in

बहुत ज़्यादा पीछे न जाते हुए भारत के आधुनिक इतिहास की अगर बात करें और ख़ासकर कि मैं अगर सिर्फ़ महाराष्ट्र की ही बात कर लूं, तो चाहे वह सावित्रीबाई फुले हों या ताराबाई शिंदे, इनके नारीवाद का आधार और इन्होंने नारी उत्थान के लिए जो भी काम किया उसका एक बहुत बड़ा अंश ग्रामीण भारत में था. और बात अगर अभी की करनी है तो अभी के दौर में राजस्थान की भंवरी देवी ग्रामीण नारीवाद की सबसे बड़ी नेत्री हैं.

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ग्रामीण नारीवाद की सबसे बड़ी नेत्री हैं भंवरी देवी

1985 में भंवरी देवी सरकार द्वारा चलाए गए एक कार्यक्रम के तहत 'साथिन' बनीं. उन्होंने अपने इलाके में राशन आवंटन, स्वास्थ्य, शिक्षा और साफ़-सफ़ाई जैसे कई सारे कार्यक्रमों को सुचारू रूप से चलाने में सरकार की मदद की. लेकिन वह चीज़ जिस पर उन्होंने सबसे ज़्यादा ध्यान दिया था, वह था महिला सशक्तिकरण (women empowerment in rural India). इसके तहत छोटी बच्चियों की शादी को रोकना, बाकी महिलाओं को 'साथिन' बनने के लिए प्रोत्साहित करना और महिला सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना, यह सब भंवरी देवी ने किया. हालांकि उन्हें इसकी बहुत बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी. 

bhawari devi child marriage

Image Credits: ThePrint

1992 में गुर्जर परिवार के कुछ लोगों ने भंवरी देवी के साथ ज़बरदस्ती की क्योंकि उन्होंने उसे परिवार में हो रहे एक बाल विवाह को रोकने की कोशिश की थी. अपराधियों को लगा कि इसके बाद वह भंवरी देवी को हमेशा के लिए चुप करा देंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. भंवरी देवी अपने इंसाफ़ के लिए लड़ी और आज भी लड़ रहीं हैं. लेकिन भंवरी देवी ने अपने मिशन को नहीं रोका और आज भी भंवरी देवी ग्रामीण नारीवाद की सबसे जिंदा तस्वीर हैं.

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ग्रामीण भारत में महिला सशक्तिकरण को राह दे रहे Self Help Groups

अब बात ग्रामीण महिलाओं की हो और महिला स्वयं सहायता समूह का ज़िक्र ना आए यह तो मुमकिन नहीं है. देखिए ग्रामीण नारीवाद (rural feminism) आपको शहरी नारीवाद से थोड़ा अलग दिखाई दे सकता है. लेकिन वह फ़र्क  सिर्फ़ और सिर्फ़ सतही है. मूल रूप से दोनों ही परिवेशों में ज़ोर समानता और women empowerment पर ही है.

शहरी परिवेश में अक्सर लोगों को यह टर्म जो है 'फेमिनिज्म' यानी कि नारीवाद, यह पता होती है. तो हर कदम जो महिला सशक्तिकरण की तरफ़ उठाया जाता है उसे फेमिनिज्म का नाम दिया जाता है. उसे लेबल करना आसान हो जाता है. उसे समझना आसान हो जाता है. ग्रामीण परिवेश में ऐसा नहीं होता.

एक साथ पनप रहा ग्रामीण और शहरी नारीवाद

आप भारत के गांव में जाकर पूछेंगे तो नारीवाद या फेमिनिज्म वहां की महिलाएं शायद नाम से जान भी ना पाएं. लेकिन उनके आचरण में, उनके उठाए कदमों में, और उनके संघर्षों में समानता पाने की ललक होती भी है और दिखती भी है. और महिला स्वयं सहायता समूह (women self help group) इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है.

self help group enabling women empowerment

Image Credits: Oxfam India

भारत का आधुनिक नारीवाद, चाहे वह ग्रामीण हो चाहे शहरी, लगभग एक ही साथ पनपा है. आज़ादी से पहले महाराष्ट्र के अमरावती जिले में महज़ 25 पैसों के साथ महिलाओं का एक छोटा सा समूह साथ में आया और शुरुआत हुई भारत के सबसे पहले माने जाने वाले महिला स्वयं सहायता समूह की. इसके बाद एक के बाद एक कई सारे गांव में, कई सारे जिलों में और कई सारे राज्यों में यह महिला स्वयं सहायता समूह एक के बाद एक बनते रहे.

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Self Help Groups को मिल रहा सरकार का समर्थन

यह महिला स्वयं सहायता समूह ग्रामीण महिलाओं को एक प्लेटफार्म देते हैं, एक मंच देते हैं एक साथ आने का, अपने हुनर का इस्तेमाल करने का, अपनी आजीविका कमाने का. यह आजीविका उन्हें सक्षम बनाती है अपने पैरों पर खड़े होने में, अपने फ़ैसले ख़ुद लेने में और अपना अधिकार लेने में. महिला स्वयं सहायता समूहों ने ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण (rural women empowerment) में एक बहुत अहम भूमिका निभाई है. और यह सिलसिला जारी है, और इसका जारी रहना बहुत जरूरी भी है. 

feminism in rural india

Image Credits: CSR Mandate

इसीलिए भले ही वोटों के लिए ही सही, सरकार और विपक्ष जब महिला सशक्तिकरण की बात करते हुए स्वयं सहायता समूहों को और ज़्यादा सिस्टमैटिक बनाने की तरफ़ ध्यान देने का वादा करते हैं, तो यह बात स्वागत योग्य मानी जानी चाहिए. क्योंकि ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण और ग्रामीण नारीवाद के लिए यह ज़रूरी है कि सरकारों का ध्यान महिला स्वयं सहायता समूहों पर बना रहे और वह उनकी प्रगति के लिए जवाबदेह रहें. Self Help Groups से जुड़ी हुई कई और कहानियां हम Ravivar Vichar के ज़रिए आप तक पहुंचाते रहेंगे.

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