भारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं, जिनकी गूँज सिर्फ संगीत सभाओं और महफ़िलों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उन्होंने लोगों के दिलों में भी अपनी एक खास जगह बनाई. Kishori Amonkar उन्हीं विलक्षण प्रतिभाओं में से एक थीं, जिन्होंने अपने संगीत से न सिर्फ श्रोताओं का मन मोहा बल्कि संगीत के परंपरागत ढांचे को भी नई दिशाएं दी.
Kishori Amonkar की पहली शिक्षक थी उनकी मां
1932 में मुंबई में जन्मीं किशोरी जी का बचपन से ही संगीत से गहरा नाता था. उनकी माँ, मोगुबाई कुर्डीकर, जो कि खुद एक प्रतिष्ठित जयपुर-अत्रौली घराने की गायिका थीं, किशोरी की पहली गुरु थीं. इस तरह, किशोरी को संगीत की शिक्षा घर पर ही मिली.
उनके संगीत में विविधता और गहराई दोनों ही थी. उन्होंने जयपुर घराने की गायकी को नए आयाम दिए, और साथ ही संगीत की अन्य शैलियों से भी प्रेरणा ली. उनकी गायकी में भक्ति और भावुकता का अद्भुत संगम देखने को मिलता था.
किशोरी का मानना था कि संगीत सिर्फ तकनीक और नियमों का खेल नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा है जो कलाकार और श्रोता दोनों को एक उच्चतर अवस्था में ले जाती है. उनके लिए, हर राग एक जीवित प्राणी था, जिसे वह अपने संगीत के माध्यम से साकार करती थीं.
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ये थी सबसे प्रसिद्ध रचना और संगीत
राग भैरवी में उनका प्रसिद्ध गायन "बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए", जिसे नवाब वाजिद अली शाह ने लिखा था, आज भी लोगों को सुकून और दिव्यता का एहसास कराता है. किशोरी जी ने प्लेबैक सिंगिंग की बारीकियों को सीखने के लिए बॉम्बे फिल्म उद्योग से पंडित हुसनलाल के साथ भी प्रशिक्षण लिया. "गीत गया पथरों ने" (पत्थरों ने एक मेलोडी गाई) फिल्म के उनके टाइटल गीत ने उन्हें लोकप्रिय बनाया, और बाद में उन्होंने गोविंद निहलानी की "दृष्टि" के लिए संगीत तैयार किया और गाने भी गाए.
इस सुंदर रचना के माध्यम से, किशोरी जी ने न केवल संगीत की एक अनूठी शैली को पेश किया, बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे एक गीत आत्मा को छू सकता है और भावनाओं की एक पूरी नई दुनिया को खोल सकता है. उनके संगीत में ऐसी गहराई थी कि श्रोता अक्सर खुद को उस दुनिया में पा लेते थे, जहाँ केवल प्रेम, शांति, और सुकून है.
पद्मभूषण से सम्मानित है Kishori Amonkar
उन्होंने अपने जीवन में कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए. पद्म भूषण (1987) और पद्म विभूषण (2002) जैसे राष्ट्रीय सम्मानों के साथ-साथ, उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और गांधारव महाविद्यालय के तानसेन पुरस्कार से भी नवाजा गया.
संगीत की बारीकियों का रखती थी विशेष ध्यान
Kishori Amonkar की संगीत में बारीकियों, भावनाओं, साहित्य और अध्यात्म पर विशेष ध्यान देने की क्षमता ने उन्हें उनके समकालीनों से आगे रखा. हालांकि, विभिन्न शैलियों और संगीत के रूपों को आपस में मिलाने और पारंपरिक स्वरूपों को विकृत करने की उनकी शैली ने उस समय के संगीतकारों से काफी आलोचना भी प्राप्त की.
उनका मजबूत विश्वास था कि घराने किसी कलाकार को सीमित दायरों में बांधने के लिए नहीं होने चाहिए और किसी भी रचना में नई व्याख्याएँ लानी चाहिए ताकि प्रस्तुति में विविधता आ सके. लेकिन, पारंपरिक संरचनाओं को चुनौती देना उस समय के लोगों के लिए धर्मविरुद्ध माना जाता था.
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Feminism की प्रेरक थी Kishori Amonkar
वह अपनी सबसे बड़ी आलोचक थीं और अपने आप को सुधारने के लिए पूरे दिन अपने रिकॉर्डिंग्स की टेप सुना करती थीं. आलोचनाओं के बावजूद, वह अपनी अनूठी शैली के प्रति सच्ची रहीं और एक अमर कलाकार के रूप में अपनी पहचान सफलतापूर्वक स्थापित की, जो आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं.
किशोरी जी की कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची कला का कोई बंधन नहीं होता. उन्होंने अपने संगीत के माध्यम से न केवल अपनी आत्मा की अभिव्यक्ति की, बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे एक कलाकार अपनी व्यक्तिगत शैली को विकसित कर सकता है, भले ही वह पारंपरिक मानदंडों से अलग हो.
उनका जीवन और संगीत हमें यह भी बताता है कि सच्चे सृजन के लिए साहस और समर्पण की आवश्यकता होती है. उनका संगीत, उनकी विरासत, और उनकी जीवन यात्रा हमें प्रेरित करती रहेगी कि हम अपनी आवाज खोजें और उसे निडरता से व्यक्त करें.
एक rebellious female singer थी Kishori Amonkar
किशोरी जी का जीवन संगीत के प्रति समर्पण की एक अद्भुत मिसाल है. उन्होंने अपने संगीत के माध्यम से न सिर्फ अपनी गायकी की घराने की परंपरा को आगे बढ़ाया, बल्कि इसे नए विचारों और भावों से भी संवारा. उनकी गायकी में एक अलौकिकता थी, जिसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है.
वे एक ऐसी कलाकार थीं, जिन्होंने संगीत को जीया और संगीत के माध्यम से ही जीवन को समझा. उनके संगीत में एक गहरी अंतर्दृष्टि और समर्पण की भावना थी, जो उन्हें उनके समकालीनों से अलग करती थी.
किशोरी जी का निधन 3 अप्रैल 2017 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है. उनके शिष्य और संगीत प्रेमी उनके संगीत को आज भी संजोए हुए हैं. Kishori Amonkar का जीवन और संगीत एक ऐसी धरोहर है, जो आने वाली पीढ़ियों को संगीत की एक अद्वितीय और अध्यात्मिक यात्रा पर ले जाएगी.
उनका कार्य और उनकी उपलब्धियां हम सभी के लिए एक प्रेरणा हैं, और उनका संगीत हमें याद दिलाता है कि कला और संगीत की शक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं है. Kishori Amonkar ने हमें दिखाया कि कैसे एक कलाकार अपनी कला के माध्यम से समाज और संस्कृति को आकार दे सकता है, और कैसे संगीत आत्मा को छू सकता है. उनका संगीत अनंत काल तक हमारे साथ रहेगा, एक अमूल्य निधि के रूप में, जिसे हम बार-बार अनुभव कर सकते हैं.