आपने हमारे संविधान को देखा है? अगर हां, तो आपको पता होगा कि indian constitution दुनिया का सबसे बड़ा constituion है. हर क़ानून, हर बात, इसमें साफ़ तरह से लिखी गयी है. कोई ऐसी पॉइंट नहीं होगा जो छूठ गया हो हमारे संविधान रचयिताओं से. तो फिर हम क्यों बात करे इस बारे में, ये सवाल आया होगा ना दिमाग में.
एक अधिकार लिखा होता है दुनिया के हर संविधान, जिसे right to equality कहते है. मतलब ये कि भारत का हर व्यक्ति एक सामान अधिकारों के साथ आगे बढ़ेगा. चाहे पुरुष हो या महिला. लेकिन रुकिए! ये बात सुनने में अटपटी नहीं लोगी आपको? क्योंकि महिलाओं के लिए तो कोई समान अधिकार नहीं है. ये बात तो हमनें कभी सोची ही नहीं ना.
अगर संविधान एक है, हक़ एक है और अधिकार भी एक है, तो फिर एक माना क्यों नहीं जाता? हर बात में महिलाओं को पीछे क्यों रखा जाता है? भारत में आज भी महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए लड़ना क्यों पड़ रहा है? अभी तो फिर भी हालात बहुत अच्छे है, लेकिन आज से कुछ साल पहले तो महिलाओं को किसी भी कार्य में आगे लाने से लोग ना जाने क्यों पीछे हटते थे.
Image- Ravivar Vichar
आज के हालात हम देख रहे है....महिलाएं हर क्षेत्र में जिस तेज़ी से आगे बढ़ रहीं है वो बेहद सराहनीय है, और अब जनता को यह भी समझ आ चुका है कि इन्हे रोक पाना भी नामुमकिन है. जितना कर सकते थे कर लिया. अब ऐसा कुछ नहीं है जिस कारण ये कहा जाए कि महिलाएं किसी से कम है.
Gender equality से economy होगी मज़बूत
आज भारत में gender equality पर हर दिमाग सोच रहा है और बात कर रहा है. सब समझ चुके है कि आज तक जैसा चल रहा था वैसे चलना अब मुमकिन नहीं होगा. और इसीलिए भारत की आधी आबादी को सबसे ऊपर लाने के लिए सरकार किसी भी प्रयास को छोड़ना नहीं चाहती.
World bank research में हाल ही में यह सामने आया कि जिस देश में gender equality ज़्यादा होती है वहां की अर्थव्यवस्था दूसरे देशों के मुकाबले ज़्यादा मज़बूत और स्थिर होती है. उस research में पता चला कि जिन देशों में gender equality सबसे ज़्यादा है उन देशों की GDP की growth औसत GDP के मुकाबले साल में 0.8% से ज़्यादा है. और अगर 15 साल के अंतर से देखा जाए तो यह बढ़त 20% के बराबर है. यह world bank report हमें कई कारणों पर नज़र डालने को मजबूर करती है.
पहले ये समझते है कि ऐसा क्यों है? अगर भारत की ही बात की जाए तो हमारे देश में महिलाएं एक बहुत ज़रूरी asset के रूप में सामने आई है. वे labour और entrepreneurship में देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा है. जब देश की महिलाओं को हर काम में सामान अधिकार और अवसर मिलेंगे, तो वे देश के लिए बहुत बड़ा asset साबित होंगी. वे अर्थव्यवस्था में अपने कौशल, प्रतिभा और ज्ञान का योगदान भी करेंगी.
Image- Ravivar Vichar
जब हर परिवार में gender equality होती है तो उससे पारिवारिक गतिविधियों में भी एक संतुलन बना रहता है. परिवार को चलाने में महिलाओं से बेहतर कोई नहीं होता यह बात बताने की ज़रूरत नही है. तो सोचिये अगर एक महिला आर्थिक रूप से सशक्त और आज़ाद होगी तो वह हर काम को और perfectly करेगी. परिवार का बेहतर समर्थन करने की बात हो या और अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करने की, एक महिला अपने परिवार के लिए एक समझदारी से भरा फैसला ले पाएगी.
एक बार ज़रा उस समय के बारे में भी सोच ही लेते है जब महिलाओं को ना जाने क्यों, लेकिन नज़रबंद कर रखना पुरुष अपनी शान समझते थे. और ये भी किसी से छुपा नहीं हुआ कि उस वक़्त शान्ति और स्थिरता का दूर दूर तक कोई नामोनिशान नहीं था. क्योंकि घर की महिला अपनी बात रखने में असमर्थ थी. वह कह नहीं पाती थी, अपने भाव प्रकट नहीं कर पाती थी. जब उसके साथ इस तरह का बर्ताव होता था तो वह परेशान भी होती थी. पुरुष उसे अपनी जायदाद समझता था.
घरेलु हिंसा हो या महिलाओं के ऊपर कोई और अत्याचार, यह सब कुछ कितनी आम बात थी उस वक़्त. कारण था महिलाओं का खुद को लाचार समझना और ये न जानना कि उनके पास हर वो हक़ है जिसे इस्तेमाल कर वे खुद के लिए खड़ी हो सकती है. लेकिन आज जब महिलाओं को पढ़ने और आगे बढ़ने का मौक़ा मिल रहा है तो वे सामने आकर हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठा पा रहीं है. पुरुषों को भी समझ आ चुका है कि औरत उनकी जागीर नहीं है और इसीलिए हिंसा खत्म हो रही है और शांति और स्थिरता भाव भी बढ़ रहा है.
Image- Ravivar Vichar
Developing countries में gender equality पर दिया जा रहा ध्यान
बड़े बड़े देशों की बात तो अलग है, वहां पर तो काम चल रहा है...महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने पर ज़ोर दिया जा रहा है. लेकिन आज ऐसे देशों की बात भी कर लेते है जो उतने ताकतवर नहीं है. ऐसे कई उदाहरण है दुनिया में. Rwanda, Africa महाद्वीप का एक देश है जहां बदलाव आना शुरू हो चुका है. वहां की सरकार समझ गई है कि gender equality ही एक मात्र तरीका है जो उन्हें आगे बढ़ने में मदद कर सकता है. इसीलिए वे महिलाओं की पढाई और उनके employment को तवज्जो दे रहे है.
Africa में इसके परिणाम भी दिख रहे है. यह महिला श्रम बल भागीदारी की दर सबसे ज़्यादा होने वाले देशों में से एक है. Rwanda में economic growth भी बेहद तेज़ी से बढ़ी है, जो पिछले दशक में हर साल औसतन 7% से ज़्यादा है. एक और उदाहरण है Iceland, जो gender equality में बहुत आगे है. WEF के Global Gender Gap Index में यह देश दुनिया में पहले स्थान पर है, क्योंकि Iceland में महिलाओं का economic participation सबसे अधिक है.
भारत के self help group है economic growth का बड़ा उदाहरण
भारत देश से यह बात सीखी जा सकती है क्योंकि हमारी सरकार ग्रामीण और निचले तबके की महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए self help groups को प्रोत्साहन दे रही है. Self help group से जुड़कर ये महिलाएं सरकार की हर योजना का फायदा उठा पाएंगी और इसीलिए उन्हें हर वक़्त स्वयं सहायता समूह से जुड़ने को कहती है सरकार.
Image- Raviar Vichar
भारत में इन महिलाओं के लिए बहुत सी पहलों की शुरुआत की जा चुकी है. चाहे लाड़ली बहना योजना हो, या लखपति दीदी स्कीम, सरकार देश की हाशिये पर स्थित महिलाओं को आगे बढ़ाने का हरसंभव प्रयास कर रही है. हाल ही में finance minister Nirmala Sitharaman ने budget 2024 बताते वक़्त यह घोषणा की थी कि अब देश की 3 करोड़ महिलाओं को वे लखपति बनाएंगी.
भारत सरकार महिलाओं की ज़रूरत को बहुत अच्छे तरह से समझ चुकी है और इसीलिए उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास कर रही है. SHG से जुड़कर देश की महिलाएं कितनी तेज़ी से आगे बढ़ रही है यह इस बात से समझा जा सकता है कि आज भारत में 12 मिलियन SHGs तैयार हो चुके है जिनमें करीब 3 करोड़ महिलाओं है. यह संख्या दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही है. इसीलिए सरकार चाहती है कि देश की हर ग्रामीण महिला self help group से जुड़े और फायदों का लाभ भी उठा पाए.
आज की महिला, वो पहले वाली- डरी सहमी सी, अपनी बात को सामने ना रखने वाली, हर बात में पीछे रहने वाली, और सिर्फ घर में बंद रहने वाली महिला नहीं बची है. वह बाहर निकल हर व्यक्ति को सोचने पर मजबूर कर रही है और बता रही है कि 'काश आज से पहले तक हमारे हुनर और कला का इस्तेमाल कर लिया होता तो कब के आर्थिक रूप से मज़बूत हो जाते.' लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है, आज भी अगर अपनी पुरानी गलतियों को सुधारा जाए तो Indian Economy इतनी मज़बूत हो जाएगी कि फिर उसे 'Womenomics' कहने पर मजबूर हो जाएंगे आप सब !