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अमृता प्रीतम साहित्य के आकाश में वह चमकता सितारा है जिसकी रोशनी ने महिलाओं के उन मुद्दों पर प्रकाश डाला जिन्हें अंधेरे में धकेल दिया जाता है. उनकी कलम अपने समय की चश्मदीद गवाह है, जो सदियों तक गवाही देती रहेगी. 31 अगस्त 1919 को अविभाजित भारत के गुजरांवाला में जन्मीं अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है. भारत-पाक विभाजन पर लिखी उनकी लंबी पंक्ति "अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ कित्थों क़बरां विच्चों बोल"