हिंदी आमजन की भाषा है. यह विचारों को गति देती है. साहित्य अकादमी पुरस्कार (Sahitya Akademi Award) विजेता अनामिका (Anamika), हिंदी को "सड़कों की भाषा" बताती. दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) में अंग्रेजी प्रोफेसर (english professor) होने के बावजूद हिंदी में लिखती. बिहार से आने वाली अनामिका बताती है कि, "मैंने हिंदी में लिखना इसलिए चुना क्योंकि मैं जिस परिवेश से हूं, जिन लोगों के साथ मैं बड़ी हुई हूं, मैं जिस माहौल से आती हूं, जिन किरदारों से आकर्षित होती हूं, वे सभी लोग सड़कों पर चलते हैं - और अंग्रेजी उनकी मातृभाषा नहीं है,”
कवयित्री, लेखिका, और आलोचक है अनामिका
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अनामिका एक कवयित्री, लेखिका, और आलोचक हैं, जिन्हें 2020 साहित्य अकादमी हिंदी कविता पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. वह आठ कविता संग्रहों की लेखिका हैं, जिनमें अनुष्टुप, डूब-धान, खुरदुड़ी हथेलियां, टोकरी में दिगंत और पानी को सब याद था शामिल हैं. टोकरी में दिगंत कविता संग्रह है जिसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया है.
वह अपनी कविता स्त्रियां में लिखती हैं,
"पढ़ा गया हमको
जैसे पढ़ा जाता है कागज
बच्चों की फटी कॉपियों का
चनाजोरगरम के लिफाफे बनाने के पहले!आगे लिखती हैं,
"हम भी इंसान हैं
हमें कायदे से पढ़ो एक-एक अक्षर
जैसे पढ़ा होगा बीए के बाद
नौकरी का पहला विज्ञापन!"
कैनवास पर पेंटिंग की तरह, अनामिका की कविताएं नारीवाद (feminism) और सामाजिक आलोचना (social criticism) के रंग से भरपूर होती. वह मध्य पूर्व भारत की लोक और मौखिक परंपराओं से प्रेरणा लेती. सूझ-बूझ के साथ हास्य का इस्तेमाल कर वह पितृसत्ता (patriarchy) से जुड़े रीति-रिवाज़ों को चुनौती देती. उनके लेख हर उस इंसान के साथी बनते हैं जिन्हें सामजिक मानदंडों की वजह से असमानता (inequality) का सामना करना पड़ता है. कविताओं (poetry) के ज़रिये वे महिलाओं के विरोधाभासी जीवन को दर्शाती है.
फीमेल गेज़ को अपने लेखों में जगह देती है अनामिका
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अनामिका कहती है, आज भी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का मुख्य टारगेट उनका शरीर है. किसी लड़की या महिला के साथ हिंसा, जिंदा जलाना, तस्करी या अश्लील वीडियो बनाने जैसी यातनाओं का आधार शरीर ही है. ''इसलिए, भले ही महिलाएं अलग-अलग वर्गों, जातियों, और धर्मों से आती हों, अनामिका कहती हैं, यह ऐसे विषय हैं जो महिलाओं और उनकी भाषा को एकजुट करते हैं और यही उन्हें एक साथ लाते हैं."
उनकी कविताएं मेल गेज़ (male gaze) से दूर, फीमेल गेज़ (female gaze) के ज़रिये महिलाओं के नज़रिये को जगह देती. अनामिका की सबसे बड़ी चिंता लैंगिक रूढ़िवादिता (gender stereotyping) है जो पुरुषों को आक्रामक, मजबूत और शक्तिशाली दिखाती, जबकि महिलाओं को कमजोर, और सहनशील दिखाया जाता. अपनी सभी कविताओं में अनामिका ने महिला नायिकाओं (female characters) के दर्द को साझा किया और लिंग आधारित असमानताओं (gender based inequalities) पर ध्यान खींचा. अपने कई निबंधों में उन्होंने इस बात पर
ज़ोर दिया है कि हम तभी समान हो सकते हैं जब पुरुषों को अधिक मर्दाना न बनाया जाए और महिलाओं को केवल स्त्रीत्व के रूप में परिभाषित न किया जाए.
अनामिका लिखती हैं, “राजनीति, धर्म या कानून तो हमें खूंखार होने से बचा नहीं पाए, प्रेम और कविता बचा ले शायद". अनामिका का नाम आज के समय में हिन्दी भाषा की प्रमुख कहानीकार और कवयित्री के रूप में लिया जाता है. हिंदी साहित्य प्रेमियों को उनकी लेखों का बेसब्री से इंतज़ार रहता है.