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कोलकाता के Kasba Law College में एक 24 वर्षीय छात्रा के साथ कॉलेज परिसर के भीतर ही Gangrape की घटना ने बंगाल की शिक्षा व्यवस्था और महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. इससे पहले 2024 में RG Kar medical college में भी एक छात्रा के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई थी. इन दोनों मामलों में न सिर्फ अपराध की क्रूरता समान है, बल्कि सत्ता से जुड़े छात्र संगठनों की भूमिका और संस्थानों की चुप्पी भी एक जैसे हैं.
Aparajita जैसे महिला-सुरक्षा कानून बनने के बाद भी यह साफ हो चुका है कि ज़मीनी स्तर पर न बदलाव आया है, न जवाबदेही तय हुई है. यह लेख इन दोनों घटनाओं के बहाने बंगाल के कॉलेजों में बढ़ती महिला असुरक्षा, राजनीतिक संरक्षण और न्याय प्रणाली की विफलता पर केंद्रित है. हाल ही में दो इतने भयानक Bengal rape cases सामने आना इस बात कासीधा संकेत है की कुछ तो है जो सही नहीं है.
Kasba College Rape Case: कॉलेज की चारदीवारी में सत्ता, साज़िश और सहमति की चुप्पी
25 जून 2025 | कोलकाता के South Kasba Law College में एक 24 वर्षीय छात्रा के साथ कॉलेज परिसर में तीन घंटे तक गैंगरेप किया गया. आरोपी थे—मनोजित मिश्रा (पूर्व TMCP नेता), ज़ैब अहमद, प्रमित मुखोपाध्याय, और कॉलेज का ही सुरक्षा गार्ड पिनाकी बैनर्जी. जो लोग परिसर की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार थे, वे ही इस अपराध में शामिल या मौन दर्शक बने.
यह एक अकेली घटना नहीं थी. यह उस ढांचे की पोल खोलती है, जहाँ कॉलेज — जो न्याय, संविधान और स्वतंत्रता की शिक्षा देने की जगह होने चाहिए — सत्ता संरक्षित अपराधों के अड्डे बनते जा रहे हैं.
RG Kar मेडिकल कॉलेज की याद: क्या हमने कुछ सीखा?
अगस्त 2024 में, कोलकाता के RG Kar Medical College में एक मेडिकल छात्रा के साथ उसके ही हॉस्टल में बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई थी. यह मामला बंगाल में महिला सुरक्षा को लेकर एक निर्णायक मोड़ बन सकता था. Aparajita नाम का कानून बनाया गया — जिसमें कॉलेजों में महिला हेल्पलाइन, शिकायत समिति, और फास्ट-ट्रैक जस्टिस जैसी व्यवस्थाओं का वादा था.
लेकिन 2025 में ही विधानसभा में दिए गए सरकारी आंकड़ों ने बताया कि राज्य के 118 सरकारी कॉलेजों में से 62 में शिकायत समितियाँ अस्तित्व में ही नहीं हैं. Kasba कॉलेज उनमें से ही एक निकला.
कॉलेज नहीं, सत्ता के किले
इन दोनों मामलों में आरोपी केवल छात्र नहीं थे — वे छात्र संगठनों से जुड़े लोग थे, राजनीतिक रूप से संरक्षित चेहरे. TMCP जैसे संगठनों का कॉलेज परिसरों में सीधा दखल है, जहाँ उनके लिए कमरे, फंड और प्रभाव बिना किसी निगरानी के जारी रहते हैं.
कॉलेज स्टाफ, सिक्योरिटी और प्रशासन, जिनकी भूमिका छात्राओं की सुरक्षा होनी चाहिए, वे या तो अपराध में शामिल होते हैं या चुप रहकर उसे वैधता देते हैं. यह चुप्पी सबसे बड़ा अपराध बन चुकी है.
सत्ता की संवेदनहीनता: बयान जो डराते हैं
TMC सांसद कल्याण बनर्जी का बयान—“अगर दोस्त ने रेप कर दिया, तो क्या किया जा सकता है?”—किसी व्यक्तिगत असंवेदनशीलता से अधिक, उस सामाजिक पतन का प्रतीक है जिसमें बलात्कार को भी 'दुर्घटना' मान लिया जाता है. ऐसे बयानों से स्पष्ट है कि हमारी सियासत अब संवेदना से नहीं, रणनीति से चलती है.
तथ्य जो चौंकाते हैं: बलात्कार और रिपोर्टिंग का सच
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NCRB 2023 के अनुसार भारत में हर दिन औसतन 89 रेप केस दर्ज होते हैं.
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लेकिन यह सिर्फ सतह का आंकड़ा है — 2022 के National Family Health Survey (NFHS) के अनुसार, भारत में 4 में से 3 यौन अपराध रिपोर्ट ही नहीं किए जाते.
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Molestation (छेड़छाड़) और stalking के मामलों में स्थिति और भी भयावह है — देशभर में लगभग 94% पीड़िताएं अपने परिवार या समाज की प्रतिक्रिया के डर से शिकायत दर्ज नहीं करातीं.
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पश्चिम बंगाल में 2023 में 2,723 बलात्कार के केस दर्ज हुए, लेकिन स्थानीय NGOs जैसे Swayam और Sanhita का अनुमान है कि कम से कम 5 गुना अधिक मामले रिपोर्ट नहीं होते.
ये संख्याएँ केवल आँकड़े नहीं हैं — ये उस सामूहिक मौन की चीखें हैं जो समाज, संस्थानों और सरकारों को बहरा कर चुकी हैं.
Ravivar की टिप्पणी: और कितनी बार?
RG Kar की बेटी गई, अब Kasba की छात्रा न्याय की भीख माँग रही है. हर बार हम कहते हैं — “यह आख़िरी बार होगा.” लेकिन हर बार अगली बार और भी क्रूर होती है.
“जब कोई कॉलेज अपराधी के लिए सुरक्षित और लड़की के लिए खौफनाक बन जाए —
तब हमें सिर्फ सरकार नहीं, समाज को भी कटघरे में खड़ा करना चाहिए.”
निष्कर्ष: अब क्रांति चुप्पी की नहीं, जवाबदेही की होनी चाहिए
बेटियाँ क्लासरूम में कानून पढ़ने जाती हैं, और वहीं उनके साथ कानून को रौंदा जाता है. कॉलेज गार्ड्स अपराध में शामिल हैं, छात्र संगठन अपराधियों के संगठन बन गए हैं, राजनीतिक नेता बलात्कार को ‘गलती’ कह देते हैं, और हम सब सिर्फ देखते हैं.
अब वक्त आ गया है कि हम "लड़कियाँ कहाँ सुरक्षित हैं?" जैसे सवालों से आगे बढ़ें, और ये पूछें —
"हमने एक ऐसा समाज क्यों बनने दिया, जहाँ बेटियाँ सबसे ज़्यादा खतरे में वहाँ होती हैं जहाँ उन्हें सबसे ज़्यादा सुरक्षित होना चाहिए था?"
Ravivar Vichar इस बार कोई मोमबत्ती नहीं जलाएगा. हम इस बार अपराध को अंधेरे में नहीं, शब्दों की रोशनी में लाएंगे — ताकि अगली बेटी, अगली छात्रा, अगली बहन सिर्फ आँकड़ा ना बन जाए.