न्याय और समानता ला रहीं फियर्स, फीयरलेस फीमेल लॉयर्स

न्याय जैसे फंडामेंटल राइट के लिए कई महिला लॉयर्स ने समाज की रूढ़ियों को चुनौती देते हुए लॉ की फील्ड में अपना करियर बनाया है. अदालतों को इन्क्लूसिव स्पेस बनाने और समाज में न्याय का परचम लहराने में इन महिला वकीलों ने ज़रूरी योगदान दिया.

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मिस्बाह
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indian female lawyers

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भारत के संविधान ने सभी को न्याय का फंडामेंटल राइट दिया (fundamental right of justice). पर ये राइट हर नागरिक तक पहुंचे, ये सुनिश्चित करने में वकील अहम भूमिका निभाते हैं (female lawyers ensuring justice). न्याय जैसे फंडामेंटल राइट के लिए कई महिला लॉयर्स (female lawyers) ने समाज की रूढ़ियों को चुनौती देते हुए लॉ की फील्ड में अपना करियर बनाया है. अदालतों को इन्क्लूसिव स्पेस बनाने (courts becoming inclusive space) और समाज में न्याय का परचम लहराने में इन महिला वकीलों ने ज़रूरी योगदान दिया-

मेनेका गुरुस्वामी 

मेनेका गुरुस्वामी (Menaka Guruswamy) प्रसिद्ध मानवाधिकार वकील हैं. भारत में समलैंगिकता (homosexuality) को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई में उनके योगदान ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. मेनका गुरुस्वामी शिक्षा का अधिकार अधिनियम (Right to Education) में लगातार बदलाव लाने की लिए भी काम कर रही है. उनका कहना है कि सभी प्राइवेट स्कूलों को वंचित बच्चों को एडमिशन देना चाहिए. 

वृंदा ग्रोवर

वकील, शोधकर्ता, मानवाधिकार और महिला अधिकार कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर (Vrinda Grover) ने कई घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों में महिलाओं को न्याय दिलाया है. वृंदा कई ऐतिहासिक मानवाधिकार मामलों, सांप्रदायिक नरसंहारों, गैर-न्यायिक हत्याओं, हिरासत में यातना, यौन अल्पसंख्यकों, और ट्रेड यूनियनों से जुड़े केसेस को सॉल्व कर चुकी हैं.वह POCSO (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम 2012, आपराधिक कानून संशोधन 2013 और अत्याचार निवारण विधेयक 2010 की ड्राफ्टिंग में शामिल रही हैं. 

इंदिरा जयसिंह

ह्यूमन राइट्स लीगल एक्टिविज्म (Human rights legal activism) की फील्ड में इंदिरा जयसिंह (Indira Jaising) एक जाना-माना नाम है. अपने पति आनंद ग्रोवर के साथ, उन्होंने 1981 में ह्यूमन राइट्स की वकालत करने वाले संगठन लॉयर्स कलेक्टिव की शुरुआत की. 2009 में, जयसिंह भारत की अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त होने वाली पहली महिला बनीं. उन्होंने मुंबई के बेघर निवासियों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी, पर्यावरण से जुड़े मुद्दों का समर्थन किया, और मणिपुर में एक्सट्रा-जुडिशियल हत्याओं के खिलाफ आवाज उठाई है.

अरुंधति काटजू

अरुंधति काटजू (Arundhati Katju) को कानून और मानवाधिकार के क्षेत्र में उनके ज़रूरी योगदान के लिए जाना जाता है. वह वंचित समुदायों के अधिकारों की वकालत करने और सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ने में अहम भूमिका निभाती रही हैं.  मेनेका गुरुस्वामी के साथ, उन्होंने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को चुनौती देते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में LGBTQ+ समुदाय का प्रतिनिधित्व किया था. वह इन्क्लूसिव और न्यायपूर्ण समाज की वकालत करने के लिए अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए, हर तबके के अधिकारों की वकालत करना जारी रखती है.


रेबेका जॉन

रेबेका जॉन (Rebecca John) 1990 में लीगल प्रोफेशन से जुड़ी, जिस वक़्त आपराधिक क्षेत्र में शायद ही कोई महिला वकील थीं (criminal lawyer). वह कानूनी संहिता में वरिष्ठ वकील बनने वाली पहली महिला वकील थीं (first women lawyer to become a senior advocate in the legal code). उन्हें 2013 में सुप्रीम कोर्ट (supreme court) द्वारा वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था. 1996 का जैन हवाला मामला, 2जी स्पेक्ट्रम मामला, आरुषि तलवार हत्याकांड, श्रीसंत आईपीएल मैच फिक्सिंग मामला, हाशिमपुरा नरसंहार मामला सहित कई ऐतिहासिक मामलों में शामिल रही हैं.

करुणा नंदी

करुणा नंदी (Karuna Nundy) एक प्रैक्टिसिंग सुप्रीम कोर्ट वकील हैं, जिन्होंने भारत में लैंगिक न्याय आंदोलन में अहम योगदान दिया है. भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas tragedy) में लोगों को उचित न्याय दिलाने के अलावा, वह 2013 में आपराधिक कानून संशोधन विधेयक का ड्राफ्ट तैयार करने में भी शामिल रही थीं.

मिशी चौधरी

मिशी चौधरी (Mishi Choudhary) भारतीय और अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट (Indian and American Supreme Court) में पेश होने वाली एकमात्र वकील रहीं है. उन्होंने इंटरनेट उपयोगकर्ताओं और मुफ्त सॉफ्टवेयर डेवलपर्स के मानवाधिकारों और लाभों की रक्षा के लिए भारत में सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (एसएफएलसी) की शुरुआत की. उन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रौद्योगिकी वकीलों (technology lawyer) में से एक माना जाता है.

फ्लाविया एग्नेस

फ्लाविया एग्नेस (Flavia Agnes) मुंबई उच्च न्यायालय में एक प्रैक्टिसिंग वकील हैं और घरेलू हिंसा (domestic violence) के खिलाफ चल रही मुहिम का हिस्सा रही है. वह MAJLIS की संस्थापक हैं, जो घरेलू और सामाजिक दुर्व्यवहार की सर्वाइवर्स का समर्थन करने वाला एक लीगल-कल्चरल रिसोर्स सेंटर (legal cultural resource center) है. उन्होंने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर आवाज़ उठाई और तीन तलाक (Triple Talaq) जैसे कई मामलों का प्रमुख हिस्सा रही हैं.

ज़िया मोदी

ज़िया मोदी (Zia Mody) कॉर्पोरेट लॉयर (corporate lawyer) हैं, जिन्हें कॉर्पोरेट मर्जर और एक्वीजीशन लॉ, सिक्योरिटीज लॉ, निजी इक्विटी और प्रोजेक्ट फाइनेंस के क्षेत्र में बेस्ट माना जाता है. उन्होंने 1984 में मुंबई में भारत की सबसे बड़ी लॉ फर्मों में से एक एजेडबी एंड पार्टनर्स के साथ अपनी प्रैक्टिस शुरू की, जहां उन्होंने मैनेजिंग पार्टनर के रूप में काम किया. मोदी इसके अतिरिक्त भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड की म्यूचुअल फंड समिति और फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की कैपिटल मार्केट कमिटी की सदस्य भी हैं.

राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के आंकड़ों के अनुसार, 2020 तक, जिला अदालत स्तर पर न्यायाधीशों की कुल संख्या में महिलाएं लगभग 11% और उच्च न्यायालय स्तर पर सिर्फ  8% है. महिला वकीलों ने ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा बन समय-समय पर अपनी क्षमता की शक्ति को दर्शाया है. लेकिन, महिला वकीलों की संख्या को बढ़ाना ज़रूरी है, ताकि ये महिलाएं अपने कानूनी ज्ञान और सामाजिक जागरूकता (social awareness) के ज़रिये इन्क्लूसिव (inclusive), सशक्त, और बेहतर समाज बना सकें.   

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