किसी भी बच्चे का अपनी माँ की साड़ियों से एक अलग ही रिश्ता होता है. दुनिया अपनी मुट्ठी में रखने के सपनों के साथ हर बच्चे ने अपनी मां का का पल्लू मुट्ठी में थामा होगा. उसी साड़ी का आंचल कभी कड़ी धुप से बचा लेता या कभी चुपके से मुँह पोछने के काम आता. ममता , लाड , दुलार , डांट और नाराज़गी , यह सब इमोशंस को साड़ी में ही तो देखा है .न जाने कितने ही बच्चों ने खुद को साड़ी में सजने संवरने की कोशिशें करी होगी. कुछ ऐसा ही त्रिनेत्रा हलदर गुम्मराजू (Trinetra Haldar Gummaraju) ने भी किया. 3-4 साल के त्रिनेत्रा को उस वक़्त न समाज के रीति रिवाजों की फ़िक्र थी न ही उनसे कोई शिकायत. लेकिन उस बच्चे को साड़ी पहने देख, चंद मिनटों में ही समाज ने उस पर बंदिशें लगा दी. इन बंदिशों पाबंदियों की असली वजह थी त्रिनेत्रा का जेंडर.
संघर्ष से सेल्फ -एक्सेप्टेन्स की कहानी
त्रिनेत्रा को साड़ी पहनने की इच्छा को इसलिए कुचलना पड़ा अपने जन्म से असाइंद (assigned) जेंडर के कारण. दोस्त और रिश्तेदार उसे जानते थे तो बस 'अंगद ' के नाम से . लेकिन त्रिनेत्रा के लिए उस आइडेंटिटी में ढलना मुश्किल था. सही गाइडेंस न मिल पाने के कारण , त्रिनेत्रा ने अपने घरवालों और टीचर्स के कहने पर कई 'मेनली' एक्टिविटीज ट्राय करी. लेकिन यह सब कर के वो खुद को खुद से अनजान महसूस करती. हाई स्कूल आते - आते जेंडर आइडेंटिटी इश्यूज से एक जंग लड़ रही त्रिनेत्रा का बच्चों से लेकर टीचर्स तक , सबने मज़ाक उड़ाया. न किसी ने हालत को समझा और न ही साथ दिया. लेकिन बदलते वक़्त के साथ तस्वीर भी बदली जब बचपन से लेकर कॉलेज तक की जर्नी ने उन्हें अपने ट्रांसवूमन आइडेंटिटी से रूबरू करवाया. छोटे-छोटे पलों से साझा हुई इस बात ने त्रिनेत्रा को हिम्मत दी, खुद को एक्सेप्ट करने की. लड़के से ट्रांसवुमन बनने की फिजिकल जर्नी के दौरान ऑफलाइन और ऑनलाइन दुनिया ने कई ताने मारे , लेकिन असल मायने में सेल्फ एक्सेप्टेन्स और सेल्फ लव की राह पर चल पड़ी त्रिनेत्रा को अब रोकना मुश्किल था
आगे बढ़ने के लिए हर कोई 'आउट ऑफ़ दी बॉक्स ' सोचने को कहता है. लेकिन फिर भी इस दुनिया को हम ब्लैक एंड वाइट , पिंक एंड ब्लूव , मेल एंड फीमेल की बाइनरी में बांटकर रखता है. फीमेल और मेल बॉक्सेस के परे ट्रांसजेंडर का बॉक्स क्यों नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है ? यह सवाल त्रिनेत्रा के मन में भी उठे जब उन्होंने हेल्थकेयर सर्विसेज में ट्रांसजेंडर्स के साथ होते भेदभाव को देखा. इस डिवाइड को कम करने के लिए वो बन गई डॉक्टर. कर्णाटक की पहली 'ट्रांसवूमन डॉक्टर'. खुद से दूरियां कम ज़रूर हुई ,लेकिन समाज और उनके बीच के फासले तो बढ़ ही रहे थे . एक क्लास में नोज़रिंग पहना देख, प्रोफेसर ने क्लास से बहार निकल दिया . तब उन्हें हक़ीक़त समझ आई की सशक्तिकरण की बातें तो किसी कागज़ पर लिखकर , अक्षरों में घुम हो चुकी है. इसी दुरी को कम करने के लिए त्रिनेत्रा ने ऑनलाइन कंटेंट बनाना शुरू किया. उन्ही रंग बिरंगी साड़ियों में अपनी जर्नी , अपना संघर्ष बयां किया. इसके दौरान LGBTQIA प्रोटेस्ट्स में आवाज़ उठाई और आइडेंटिटी से जुझते मुसाफिरों के लिए एक सुकून भरा पड़ाव बन गई.
ट्रांसजेंडर समुदाय की आवाज़, कहानी और नज़रिये को आज ज़ोया अख़्तर (Zoya Akhtar) और रीमा कागती (Reema Kagti) डायरेक्टेड Made In heaven 2 वेब सीरीज के ज़रिये ला रही है दुनिया के सामने . अमेजॉन प्राइम (Amazon prime) पर आ चुकी इस सीरीज में त्रिनेत्रा ने ट्रांस विमेन के अपने किरदार के जरिए अपने संघर्ष को दिखाया है.किसी समय पर, जिस 'अंगद' को साडी पहना देख समाज ने सिरे से नकार दिया था आज उसी रंग बिरंगी साडी का पल्लू बड़ी शान से लहराते हुए घुमाती है .सेल्फ एक्सेप्टेंस और सेल्फ लव की सटीक परिभाषा सिखाती है त्रिनेत्रा.