अप्रैल-मई की भीषण गर्मी ने पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया है. कहीं पर उमस से भरी गर्मी है तो कहीं लू के थपेड़ों ने जीना मुहाल किया हुआ है. और कई जगहों पर पानी का संघर्ष है. और अगर आप को लग रहा हो कि गर्मी ने किस तरह आपका हाल बेहाल किया हुआ है तो एक बार अपने आस पास की महिलाओं के बारे में ज़रूर सोच लीजिएगा. क्योंकि मौसम तक की सबसे ज़्यादा मार महिलाओं पर ही पड़ती है. शुरुआत अपने घर से करके देख लीजिए. गर्मी चाहे कितनी भी हो, आपकी मां, पत्नी या बेटी, रसोई में उतना ही वक्त देती हैं जितना किसी भी मौसम में देती हों.
घर की महिला के लिए कोई गर्मी नहीं !
आपकी थाली में परोसे जाने वाले व्यंजन गर्मी के चलते कम नही होते. भरी गर्मी में आपके घर में साफ़ सफ़ाई करने के लिए आने वाली महिला को भी उसी तरह अपना काम करना पड़ता है. कभी पंखा बंद करके झाड़ू तो कभी घर में जमी हुई धूल हटाने के लिए ज़्यादा मेहनत.
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ये तो बात हुई एक आम परिवार की जहां पर हर तरह की मूलभूत सुविधा उपलब्ध है. भारत के गांव खेड़ों की तरफ़ रूख करेंगे तो देखेंगे कि अब भी कई घरों में लकड़ी के चूल्हे जलते हैं. और इस आग उगलने वाली गर्मी में चूल्हे की आग के सामने भी एक महिला ही बैठी मिलेगी.
गांव में अलग समस्याएं
इसके बाद बारी आती है उन इलाकों की जहां पर पानी की उपलब्धता एक चुनौती है. देश के कई इलाकों से आती हुई ख़बरें आपने अक्सर देखी होंगी जहां आपने सर पर पानी का बर्तन रखे महिलाओं को पानी लाने के लिए लंबी दूरी पैदल ही तय करते हुए देखा होगा.
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हाल ही में महाराष्ट्र के मेलगाट के इलाके का एक वीडियो देखा जहां महिलाएं बता रहीं थी कि एक मटके पानी के लिए उन्हें दिन में कई कई बार पैदल ही दूर तक जाना पड़ता है. अपने दस साल से ज़्यादा के पत्रकारिता के करियर में मैंने भी कितनी बार ऐसी घटनाएं कवर की हैं. राज्य चाहे जो भी हो, एक बात जो ऐसी स्थिति में समान होती है वो यह है कि भरी गर्मी में, सर पर पानी का बर्तन रखे पैदल पैदल लंबी दूरी तय करते हुए महिलाएं ही दिखेंगी.
कई बार छोटे बच्चे बच्चियां भी दिखते हैं. लेकिन पुरुष नहीं. आप लोग सोच सकते हैं कि पुरुष नौकरी कर रहे होंगे इसलिए पानी लाने का वक्त नहीं मिलता होगा. ऐसा नहीं हैं. इन इलाकों में अक्सर लोग खेती पर निर्भर करते हैं. गर्मी और पानी की कमी के चलते खेती में करने को कुछ विशेष होता नही. आप जब भी ऐसे गांव में जायेंगे तो आपको पुरुष घर पर ही मिलेंगे. लेकिन महिलाएं पानी के जुगाड में संघर्षरत होंगी. ऐसा इसलिए की समाज का ढांचा ही ऐसा बना है जी कि जीवन का चाहे जो भी हिस्सा हो, महिलाओं के हिस्से में अधिकार नहीं सिर्फ़ जिम्मेदारी ही आती है.
किसी भी तरह की समानता के लिए, सही परिवर्तन के लिए, समाज के इस ढांचे को बदलना बहुत ज़रूरी है. ज़रूरी है कि महिलाओं को उनके अधिकार मिलें और उनकी जिम्मेदारियों का बोझ सांझा किया जाए. तो चलिए इस बार कोशिश करें कि ये गर्मियां हमारे आस पास महिलाओं पर कुछ तो आसान हों.
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