नाशिक, प्याज और महिलाएं...

नाशिक के व्यापारियों के मुताबिक एक्सपोर्ट का माल तैयार करने के लिए हर सीज़न में 20 से 25 लाख मज़दूरों की जरूरत पड़ती है. इनमें से 50% से ज़्यादा महिलाएं होती हैं. ये महिलाएं नाशिक के ही गांवों से होती हैं.

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मैत्री
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Nashik women onion farming

Image- Ravivar vichar

Nashik का नाम सुनते ही सबसे पहले मन में ख्याल आता है किसानों का और प्याज का. Nashik भारत के सबसे बड़े प्याज उत्पादक इलाकों में से है. वैसे तो यहां पर अंगूर की खेती भी बहुत होती है लेकिन अक्सर Nashik प्यास की वजह से सुर्खियों में रहता है. पिछले दो साल Nashik के प्याज किसानों के लिए मुश्किल भरे रहे. खासकर की 2023.

पिछले साल की शुरूआत प्याज किसानों के लिए अशुभ

पिछले साल की शुरुआत किसानों के लिए बहुत शुभ साबित नहीं हुई. फरवरी में ही तापमान अमूमन से ज्यादा बढ़ने लगा. प्याज किसानों (Nashik women onion farming) को लगा कि उनकी तैयार फसल बढे हुए तापमान के चलते खराब हो जाएगी तो ऐसे में उन्होंने उस फसल को बाज़ार में ठीक उसी वक्त उतार दिया जब लाल प्याज और खरीफ की फसल बाजार में आई थी. बंपर सप्लाई के चलते दाम बुरी तरह से गिर गए. इसके बाद मार्च के महीने में बरसात हुई और ओले पड़े. यह सिलसिला अप्रैल में भी जारी रहा. इससे प्याज की अगली फसल भी खराब हो गई. बची हुई कसर एक पूरी तरह से सूखे अगस्त ने निकाल दी.

women in nashik onion farming

Image credits: News click

प्याज किसान अभी पहले के नुकसान से संभले भी नहीं थे कि नवंबर और दिसंबर में फिर से हुई बारिश और ओलावृष्टि ने एक बार फिर उनकी प्याज की अगली फसल को खराब कर दिया. इन उतार-चढ़ाव के चलते एक बार अगस्त और एक बार दिसंबर में प्याज के दाम ज़रा से ऊपर हुए. टमाटर के ऊंचे दामों की वजह से आलोचना झेल रही सरकार ने प्याज के दाम ज़रा से बढ़ते ही अगस्त में प्याज पर 40% निर्यात ड्यूटी लगा दी.

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बाद में दिसंबर में निर्यात को 31 मार्च 2024 तक के लिए प्रतिबंधित कर दिया. ऐसे में प्याज के दाम एक बार फ़िर से गिर गए. और किसानों के साथ-साथ व्यापारियों को भी नुकसान झेलना पड़ा. नुकसान का सिलसिला अब भी जारी है. विशेषज्ञों का कहना है कि निर्यात में लगे इन प्रतिबंधों के कारण प्याज की खेती और निर्यात से जुड़े लोगों को 10,000 करोड रुपए तक का नुकसान उठाना पड़ जाएगा.

Nashik की महिलाओं का प्याज से गहरा connection

अब आप सोच रहे होंगे कि Nashik और प्याज का महिलाओं से क्या कनेक्शन. देखिए जब भी अपने Nashik या प्याज से जुड़ी हुई खबरें टीवी पर देखी होंगी, अखबारों में पढ़ी होंगी, आपने खेतों में, मंडी में, दुखी और पीड़ित किसान देखे होंगे. लेकिन एक बहुत बड़ा तबका जो कि प्याज की खेती को इस बड़े स्तर पर अंजाम देता है, वह हैं Nashik की महिलाएं, जिनका ज़िक्र अक्सर नहीं होता.

Nashik के खेतों में आपको महिलाएं साल भर काम करती हुईं दिखाई देंगी. कुछ अपने खेतों में काम करती हैं तो कुछ दूसरों के खेतों में मज़दूरी करती हैं. प्याज की रोपाई से लेकर कटाई तक साल भर काम जारी ही रहता है और महिलाओं का काम सिर्फ खेती तक ही सीमित नहीं रहता. निर्यात के लिए जो माल महाराष्ट्र और देश से बाहर जाता है उसको भी तैयार करने में महिला मज़दूरों का बड़ा हाथ रहता है.

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Image credits: The economic times

Nashik से प्याज export में 50 % महिलाएं

Nashik के व्यापारियों के मुताबिक एक्सपोर्ट का माल तैयार करने के लिए हर सीज़न में 20 से 25 लाख मज़दूरों की जरूरत पड़ती है. इनमें से 50% से ज़्यादा महिलाएं होती हैं. ये महिलाएं Nashik के ही गांवों से होती हैं. प्याज के व्यापार में महिला किसानों और महिला मज़दूरों का योगदान बहुत बड़ा रहता है लेकिन अक्सर उनके इस योगदान की चर्चा नहीं होती. प्याज की स्थिति या फ़सल जब भी ख़राब होती है, या दाम गिरते हैं, तो इन महिलाओं का क्या होता है, उन पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है, उनका कितना आर्थिक नुकसान होता है, इस बात की भी चर्चा कहीं नहीं होती.

Nashik के निफाड़ इलाके की 25 साल की कल्याणी सुनीलवाकर बताती हैं कि वह मंडी में आए प्याज को सॉर्ट करती हैं, उस प्याज को पैकेजिंग बॉक्स में डालती हैं, और लेबलिंग करती हैं. अब इस निर्यात बंदी के बाद जो प्याज Nashik से बाहर जाना था, महाराष्ट्र से बाहर जाना था, उसका काम तो है लेकिन क्योंकि देश से बाहर जाने वाले प्याज पर प्रतिबंध लगा दिया गया है तो निर्यात का काम नहीं है.

ऐसे में इसका प्रभाव कल्याणी को मिलने वाली मज़दूरी पर पड़ रहा है. मज़दूरी के दिन कम हो गए हैं. कल्याणी की तरह और बहुत सारी महिलाएं हैं जिनकी मज़दूरी पर प्रभाव पड़ा है और सिर्फ़ निर्यात के काम पर ही नहीं, खेतों की मज़दूरी के काम पर भी प्रभाव पड़ा है. पिछले कुछ वक्त से प्याज ने जिस तरह से Nashik के किसानों को रुलाया है, हर मौसम के साथ प्याज लगाने वाले किसान और उनके द्वारा प्याज उगाने की मात्रा कम होती जा रही है.

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Image credits: Hindustan times

इसका मतलब कि उन्हें अब पहले की तरह मज़दूरों की ज़रूरत नहीं पड़ती. तो पहले के मुकाबले अब महिला मज़दूरों को कम काम मिलता है. इस इलाके में बाकी की फ़सलें इस कमी को पूरा इसलिए नहीं कर सकती क्योंकि जिस तरह की मज़दूरी की ज़रूरत प्याज की खेती में पड़ती है, उतनी बाकी फसलों के लिए नहीं पड़ती.

हां, अंगूर की फ़सल से थोड़ा बहुत सहारा ज़रूर मिलता है, लेकिन मौसम की मार से पिछले दो-तीन साल से अंगूर भी अछूते नहीं रहे हैं. तो ऐसे में खराब अंगूरों का निर्यात भी ठीक तरह से नहीं हो पाता और उस निर्यात से जुड़ा हुआ काम भी महिला मजदूरों को कम मिलता है.

यह थोड़ा चिंताजनक इसलिए भी है क्योंकि पहले इन महिलाओं को अपने घर के आसपास ही जो काम मिल जाता था अब उसकी तलाश में कुछ महिलाओं को बाहर जाना पड़ता है, दूर जाना पड़ता है और यह बात शहरों की ओर हो रहे ग्रामीण निकास को और ज़्यादा बढ़ाती है. यह तो थी समस्या. समाधान की बात करें तो इसका समाधान सरकारी नीतियों में है और वक्त के तकाज़े को समझ कर मौसम में हो रहे परिवर्तन को ध्यान में रखकर खेती करने में है. क्योंकि अगर प्याज की खेती संभालेगी तो उस पर निर्भर महिलाओं की आय का स्रोत भी संभला हुआ रहेगा.

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