इतिहास के पन्नों पर रानियों (Queens in history) का नाम राजा की पत्नी होने की वजह से लिखा जाता. लेकिन, पितृसत्ता (patriarchy) के उस दौर में रानी अहिल्या बाई (Ahilya Bai Holkar) वो नाम है, जिन्होंने समाज की बेड़ियों को तोड़, इतिहास में अपनी अलग जगह बनाई. मालवा की रानी अहिल्या बाई होल्कर सबसे सफ़ल और प्रसिद्ध मराठों (successful maratha queen) में से एक रहीं. वह नारीवादी शासक (feminist ruler Ahilyabai), दूरदर्शी नेता, बहादुर योद्धा और बुद्धिमान विद्वान थी. मल्हार राव (Malhar Rao) और खंडेराव (Khanderao) की मृत्यु के बाद अहिल्या बाई ने 11 दिसंबर, 1767 से इंदौर का शासन संभाला.
अहिल्या बाई ने शिक्षा, अर्थव्यवस्था, और सामाजिक कल्याण को दी थी प्राथमिकता
उन्हें इंदौर (Indore ruler) को छोटे से गांव से समृद्ध, सुंदर और शांतिपूर्ण शहर बनाने का श्रेय मिला. उन्होंने मालवा (Malwa) में किले और सड़के बनाने, त्योहार आयोजित करने, मंदिरों को दान देने, और धर्मशाला और आश्रयों की स्थापना करने में अहम भूमिका निभाई. इसके अलावा, वह एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थी, जिन्होंने गरीबों और तीर्थयात्रियों के लिए मुफ्त रसोई की शुरुआत की. उन्होंने इस बात का ख्याल रखा कि उनके शासन में कोई भी भूखा न सोये. जिस समय लड़कियों (Ahilyabai promoted girl education) को पढ़ाया नहीं जाता, उस समय खुद शिक्षा हासिल कर उन्होंने महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.
टैक्स को बनाया था सामाजिक सशक्तिकरण का ज़रिया
प्रसिद्द जाम गेट (Jam Gate) पर गणपत राव नाम का कोई व्यक्ति, वहां से गुजरने वाले यात्रियों, घुड़सवारों और गाड़ियों से टोल वसूला करता था. टैक्स इकट्ठा कर जब वह रानी अहिल्या बाई को देने गया तो रानी ने पैसे लेने से इनकार कर दिया और गणपत को आदेश दिया कि उस राशि को एक द्वार बनाने में खर्च करे जहां यात्री आराम कर सकें.
अहिल्या बाई की शासन व्यवस्था पर बात करते हुए स्वामी अवधेशानंदगिरि (Swami Avadheshanandgiri) बताते है, ''अहिल्या बाई के शासन से हम सीख सकते हैं कि कर या टैक्स कैसे इकट्ठा किया जाना चाहिए. कर न तो मजबूरी से वसूला जाना चाहिए, न ज़बरदस्ती से, और न ही डर से, बल्कि उसी तरह वसूलना चाहिए जैसे मधुमक्खी फूलों से रस इकट्ठा करती है.”
टेक्सटाइल इंडस्ट्री, महिला सशक्तिकरण, वन संरक्षण पर दिया ध्यान
महेश्वर (Maheswar) में टेक्सटाइल इंडस्ट्री (Textile Industry) की शुरुआत कर महिलाओं को रोजगार का अवसर दिया. उन्होंने वन संरक्षण (Forest Conservation) करने के साथ कला, संस्कृति और साहित्य को भी प्राथमिकता दी. अपने शासन के एक साल में ही अहिल्या बाई ने मैदान में सेनाओं का नेतृत्व किया और मालवा को लूटने आये दुश्मनों से बचाया.
राजमाता अहिल्या बाई कहलाई 'द फिलोस्फर क्वीन'
ब्रिटिश इतिहासकार जॉन कीए (British historian John Keay) ने उन्हें 'द फिलोस्फर क्वीन' (The Philosopher Queen) का टाइटल देते हुए कहा, "मालवा की शासक उग्र रानी और कुशल शासक होने के साथ एक समझदार राजनीतिज्ञ भी थीं. जब मराठा पेशवा अंग्रेजों और उनकी योजनाओं को समझ न सके, तब उन्होंने पेशवा को आगाह किया था."
वह अपने पति की मृत्यु के बाद सती हो सकती थी. या हिम्मत भी हार सकती थी. पड़ोसी क्षेत्र को उस समय की 16 करोड़ की विरासत पर कब्ज़ा करने दे सकती थी. लेकिन अपनी हिम्मत और सूझ-बूझ से उन्होंने अपने राज्य को सशक्त बनाया और दुनिया को दिखाया कि महिलाएं पुरुषों से कमतर नहीं हैं .