देशभक्ति के अलग अलग रंग में डूबा देश

सड़कों पर नारे लगा कर ही नहीं कई लोग अपने अंदाज़ में देशभक्ति के रंग में डूबे नज़र आए. स्वतंत्रता दिवस पर ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले. तिरंगा किसी के लिए आजीविका तो किसी के लिए सेवा का जरिया. ऐसे ही गुमनाम कई लोग मिले जो सामने आना नहीं चाहते.

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अपनी शॉप पर तिरंगे पर प्रेस करते हुए अनिल रूनिजा (Image Credit: Ravivar Vichar)

देशभक्ति के अलग अलग रंग में डूबा देश 

सड़कों पर नारे लगा कर ही नहीं कई लोग अपने अंदाज़ में देशभक्ति के रंग में डूबे नज़र आए. स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) पर ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले. तिरंगा किसी के लिए आजीविका का साधन बना तो किसी के लिए सेवा का जरिया. ऐसे ही गुमनाम कई लोग मिले जो सामने आना नहीं चाहते. किसी ने अपना रिक्शा कुछ खास सवारियों के लिए फ्री किया तो कुछ लोगों ने तिरंगा (Flag) कलर की मिठाई गरीब बच्चों में बांट दी. 

तिरंगा अनमोल कैसे लें पैसा !

इंदौर (Indore) शहर के 71 स्कीम के रहने वाले अनिल रूनिजा कहते हैं- "20 साल से ज्यादा टाइम से लॉन्ड्री चलाते हैं. हर साल 15  अगस्त स्वतंत्रता दिवस   (Independence Day)और 26 जनवरी गणतंत्र दिवस को कई संस्थाएं खासकर स्कूल की तरफ से झंडे प्रेस और लॉन्ड्री के लिए आते हैं. संस्था के लोग मेहनताना पूछते हैं. तिरंगा हमारे देश की शान है. ये अनमोल हैं. हम इसके प्रेस करने के पैसे कैसे ले सकते है."

कई सालो से शैक्षणिक संस्थाओं से जुड़ीं शिक्षाविद तृप्ति बताती है- "रूनिजा परिवार को हम जानते है. ये कभी तिरंगे के लिए चार्ज नहीं लेते.ये भी देशभक्ति का प्रतीक है."

रूनिजा परिवार की तोरल बताती है- "ये हमारे लिए गर्व की बात है कि झंडे (Flag) को सजाने और उसको प्रेस (Ironing) करने का अवसर हमें मिलता है. हमारा परिवार की कई पीढ़ियां यह काम करती आईं,लेकिन कोई चार्ज नहीं लेते." 

गर्भवती महिलाओं को अस्पताल छोड़ते हैं फ्री 

बिना किसी दिखावे के कुछ लोग देशभक्ति के लिए अलग अंदाज़ में सेवा में जुटे हैं. इंदौर शहर की ई-रिक्शा चलाने वाली रानी बताती है- "वह चार साल से यह रिक्शा चला रही. ख़ास मौके 15 अगस्त और 26  जनवरी को मैं गर्भवती  महिलाओं को फ्री में वह जिस भी अस्पताल कहती हैं, छोड़ देती हूं. ऐसे चार  प्रकरण हुए, जिन्हे छोड़कर मुझे सुकून मिला."                                        

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