12 साल की उम्र में देश के लिए क़ुर्बान तिलेश्वरी बरुआ

तिलेश्वरी बरुआ ने साबित किया कि राष्ट्रवाद और बहादुरी की कोई उम्र नहीं होती. तिलेश्वरी असम के ढेकियाजुली ज़िले के छोटे से गांव में जन्मी. बचपन में तिलेश्वरी स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े गीतों को गुनगुनाती और नेताओं के भाषणों को समझने की कोशिश करती. 

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मिस्बाह
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Assam tileswari barua

Image Credits: NCPCR

12 साल की उम्र में शायद ज़्यादतर बच्चों को यह भी न पता हो कि देश में क्या चल रहा है. उस उम्र में एक लड़की थी जिसनें शहादत हासिल की. तिलेश्वरी बरुआ (Tileswari Barua) ने साबित किया कि राष्ट्रवाद (nationalism) और बहादुरी की कोई उम्र नहीं होती. तिलेश्वरी असम के ढेकियाजुली ज़िले (Dhekiajuli district in Asam) के छोटे से गांव में जन्मी. बचपन में तिलेश्वरी स्वतंत्रता संग्राम (freedom struggle) से जुड़े गीतों को गुनगुनाती और नेताओं के भाषणों को समझने की कोशिश करती. 

भारत छोड़ो आंदोलन में ‘मृत्यु वाहिनी’ का हिस्सा रही तिलेश्वरी बरुआ

गांधी ने  महिलाओं को 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया. इस आंदोलन में तिलेश्वरी को जुड़ने का मौका मिला. उस आंदोलन में कई महिलाओं ने ‘मृत्यु वाहिनी’ (Mrityu Bahini) नाम से समूह बनाया. इनके समूह का मिशन था पुलिस थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराना, फिर चाहे उन्हें अपने जीवन का बलिदान ही क्यों न देना पड़े. 20 सितंबर 1942 को, मनबर नाथ के साथ  ‘मृत्यु वाहिनी’ ढेकियाजुली पुलिस थाने पहुंची. पुलिस अधिकारी के आदेशों के खिलाफ, थाने के ऊपर चढ़कर महिलाओं ने ध्वज फहराया.

देशभक्ति गीतों ने पुलिस के आदेशों को अनसुना कर दिया. महिलाओं के जज़्बों और नारों को रोकने के लिए पुलिस ने फायरिंग शुरू की. तिलेश्वरी बरुआ के नन्हें शरीर में गोली हां लगी. उन्हें खून से लथपथ देख, मृत्यु वाहिनी के साथियों ने  बचाने की कोशिश की. पर अफ़सोस, वह बच न सकी.

ढेकियाजुली वारदात को दर्शाता शहीद स्मारक

खाहुली देवी, कुमाली देवी, भोगेश्वरी फुकननी, और पदुमी गोगोई वह वीर महिलाएं थी जो ढेकियाजुली वारदात में शहीद हुईं. 20 सितंबर के दिन को आज भी असम में शहीद दिवस (Martyrs Day) के रूप में मनाया जाता है. ढेकियाजुली ज़िले में दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने तिलेश्वरी बरुआ को श्रद्धांजलि दी थी. भारत सरकार ने ‘हर घर तिरंगा’ (Har Ghar Tiranga) अभियान के दौरान  स्वतंत्रता संग्राम में शहीद होने वाली सबसे कम उम्र की लड़की  तिलेश्वरी बरुआ को याद किया गया. (youngest martyred of Indian freedom struggle)

‘ढेकियाजुली 1942: दी अनटोल्ड स्टोरी' ने अनसुनी घटना के बारे में बताया 

समुद्र गुप्त कश्यप (Samudra Gupta Kashyap) ने अपनी किताब ‘ढेकियाजुली 1942: दी अनटोल्ड स्टोरी’ (Dhekiajuli 1942: The Untold Story) में इस पूरी घटना का ज़िक्र किया है. इस किताब के ज़रिये आज़ादी की लड़ाई से जुड़ी इस अहम घटना के बारे में जनता को पहली बार पता चला. ढेकियाजुली पुलिस थाने को, जहां भारत छोड़ो आंदोलन का सबसे भयानक हत्याकांड हुआ,  असम सरकार द्वारा उसे विरासत स्थल घोषित किया गया.

tileswari barua

Image Credits: Daily News

राष्ट्रवाद से भरपूर, बहादुरी की मिसाल कायम करते हुए कई  महिलाओं ने भारत को आज़ादी दिलाने में योगदान दिया. 12 साल की तिलेश्वरी बरुआ ऐसी ही एक स्वतंत्रता सेनानी थीं जिन्होंने साबित किया कि महिलाएं ग़लत के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करने और देश की आज़ादी के लिए लड़ने में सक्षम हैं, जिसके लिए वह कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं. (women freedom fighters)