कभी स्कूल,कॉलेज नहीं गई, पर आज दुनिया उन्हें 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट' (encyclopedia of forest) के नाम से जानती है. पद्मश्री (Padma Shri Tulsi Gowda) से सम्मानित ये आदिवासी महिला (Adivasi Woman environmentalist) वन्यजीवन की दुनिया में जीवनभर इसे समझने और संरक्षण में अपने योगदान के लिए जानी गई. तुलसी गौड़ा (Forest Savior Tulsi Gowda) पिछले 6 दशकों में 30 हज़ार से ज़्यादा पौधे लगा चुकी है.
बीज जमा करने खुद जाती हैं वन विभाग की नर्सरी तक
पेड़-पौधों से तुलसी गौड़ा का रिश्ता दशकों पुराना है. जब वह 3 साल की थी, तब पिता का देहांत हो गया. मां के साथ नर्सरी में काम किया. वहीं से पेड़ पौधों, वनस्पति, और जड़ी बूटी को लेकर उनकी समझ बढ़ी. जिस उम्र में लोग रिटायर होने का सोचते है, उस उम्र में तुलसी पौधों के बीज जमा (seed collection) करने के लिए खुद वन विभाग की नर्सरी तक जाती हैं. वह कई पौधों के बीज को इकट्ठा करती हैं, गर्मियों के मौसम तक उन्हें संभालती हैं और फिर सही समय आने पर जंगल में उस बीज को बो आती हैं.
रिटायर होने की उम्र में बो रही संरक्षण के बीज
पर्यावरण संरक्षण (environmental conservation) के लिए उन्हें 'इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड', 'राज्योत्सव अवॉर्ड' और 'कविता मेमोरियल' जैसे कई अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है. पेड़-पौधे लगाने के बाद किसी मां की तरह उनकी देखभाल करती हैं. तुसली गौड़ा जंगल में नए पौधों को देखकर ही उनके मदर प्लांट का नाम बता सकती है. उनकी इसी समझ की सराहना करते हुए कर्नाटक (Karnataka) की वनीकरण योजना के तहत उन्हें पौधारोपण (plantation) कार्यकर्ता के तौर पर नियुक्त किया गया था. तुलसी गौड़ा नौकरी से रिटायर हो चुकी है, लेकिन जंगलों के संरक्षण का काम अभी जारी है.
तुलसी गौड़ा आने वाली पीढ़ी को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक कर रही है. सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते उन्होंने जंगल की कटाई को रुकवाने और लोगों को इस मुहिम से जोड़ने का काम किया. पद्मश्री तुलसी गौड़ा की सेवाएं वन्यजीवन के संरक्षण में अहम योगदान मानी जाती हैं. उनकी निस्वार्थ सेवा और ज्ञान ने उन्हें वन्यजीवनों के संरक्षक रूप में पहचान बना दिया है. उनके समर्पण से प्रेरित होकर कई लोग वन्यजीवन संरक्षण की ओर कदम बढ़ा रहे हैं.