‘इस उम्र में ये सब अच्छा लगता है क्या’, एक फेमस डायलॉग, अक्सर कहा जाता है उन लोगों से जो "हर उम्र में खुश रहना, अपने पसंद का काम करना, मस्ती मज़ाक करना, और लोग क्या कहेंगे इस बारे में न सोचना" ये सब बख़ूबी करते है. और इसीलिए वो चार लोग जो हमेशा कुछ न कुछ कहते ही है, उन्हें उम्र का याद दिलाकर रोकने की पूरी कोशिश करते है. लेकिन इंसान वो ही आगे बढ़ते है, जो इन सो-कॉल्ड वेल विशर्स की न सुनकर अपने मन की करते है. ऐसी ही एक 'सुपर दादी' रामबाई, जो 106 साल की है, देहरादून में आयोजित राष्ट्रीय एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 85 प्लस वर्ग में 3 गोल्ड मैडल जीतकर सभी को प्रेरणा और उत्साह से भर दिया है.
106 साल की 'उड़नपरी दादी' ने जीते तीन मेडल
इन्होने ने श्रेणी में तीन से पांच प्रतिभागियों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करते हुए 100 मीटर स्प्रिंट, 200 मीटर स्प्रिंट और शॉट-पुट स्पर्धाओं में तीन गोल्ड मैडल जीतकर सबको हक्का बक्का कर दिया. हरियाणा के चरखी दादरी के छोटे से गाँव कदमा में रामबाई का जन्म हुआ. साधारण सा जीवन था उनका. जब थोड़ी बड़ी हुई तो उन्होंने खेतीबाड़ी में भी अपने समय देना शुरू कर दिया. आम से जीवन से आज उड़न पारी दादी के नाम से जानी जाती है पुरे देश में. पिछले दो सालों में, रामबाई ने भारत और विदेशों के 14 खेल आयोजनों में भाग लिया, और 200 से ज़्यादा मैडल जीत कर रिकॉर्ड बना दिया.
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अपने गांव की सबसे बुजुर्ग महिला है रामबाई. अपने लाइफ की आगे सेंचुरी पूइर कर चुकी रामबाई अपनी फिटनेस को लेकर आज के 90 % यंगस्टर्स के ज़्यादा सीरियस है. वे अपनी ट्रेनिंग को बहुत गंभीरता से लेती है और एक स्ट्रिक्ट डाइट का भी पालन करती है, जिसमें डेयरी उत्पाद और उनके खेत की ताज़ी सब्जियाँ शामिल हैं. रोज़ाना 5 से 6 किलोमीटर दौड़ने वाली उड़नपरी दादी के पास खुद को देने के लिए कोई भी एक्सकुज़ नहीं है और इसीलिए वे आज इस मुकामपर है. उनके पास 85 से ऊपर की श्रेणी में 100 मीटर दौड़ का विश्व रिकॉर्ड भी है. रामबाई मिसाल से कई ज़्यादा बन चुकी है हर उस महिला के लिए, जो अपने सपनों को किसी भी उम्र में पूरा करने की ताकत रखती है.