बात है साल 1913 की, जब एक बच्ची ने कसार-ऐ-सुल्तानी में, भोपाल रियासत के आखरी नवाब हमीदुल्लाह के घर जन्म लिया. वह नवाब की सबसे बड़ी बेटी थी. आबिदा सुल्तान बचपन निडर और बेबाक लड़की रही. अपने घर में दादी से डरती थी बस.
Strong और confident राजकुमारी थी आबिदा सुल्तान
Image Credits: Youlin Magazine
अबीदा की दादी ने उसे हर चीज सिखाई. शायद उसी स्ट्रिक्ट रूल के चलते अबीदा ने हर काम को सीखने और समझने की कोशिश की. एक कॉन्फिडेंट, बोल्ड और स्ट्रॉन्ग महिला के रूप में दुनिया के सामने आई अबीदा. उस वक़्त जब एक महिला को घर से बाहर भी निकलने की इजाज़त नहीं थी, तब आबिदा हर वो काम कर रही थी जो उनका मन कह रहा था. चाहे पोलो हो, स्क्वॉश हो, निशानेबाज़ी हो, घुड़सवारी हो या शिकार (उस वक़्त पुरुषों के काम कही जाने वाले) हर काम कर रही थी आबिदा.
भारत की दूसरी महिला पायलेट थी आबिदा
वह भारत की दूसरी महिला और पहली मुस्लिम महिला पायलेट थी. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पाइलेट बनने का लाइसेंस भी दिया था. कभी भी उन्होंने ये नहीं सोचा की वे एक लड़की है. जो मर्ज़ी होती थी वो किया करतीं थी आबिदा. किसी की ना सुनना और अपने मन की करना, बचपन से यह ही सीखा था उसने.
अपने पति पर तानी थी बंदूक
Image Credits: Facebook
शादी के बाद भी अपनी मनमर्ज़ी की मालिक थी आबिदा. जब उनकी शादीशुदा ज़िन्दगी में परेशानियां आ रहीं थी, तो उन्होंने अपने पति को छोड़ने का फैसला लिया और अपनी ज़िन्दगी में अकेले रहने लगी. अपने नवजात बेटे को लेकर आबिदा ने अपनी ज़िन्दगी खड़ के बलबूते पर जीने का फैसला किया.
लेकिन उनके पति सरवर अली खान ने आबिदा से उनके नवजात बेटे को छीनने के कोशिश की. सरवर अली खान से आमना सामना करने के लिए वह रात में अकेली भोपाल आई और महल पहुंच गयी. उन्होंने सरवर अली खान पर बन्दूक तान दी और कहा- "हथियार मेरा है और भरा हुआ है. इसका इस्तेमाल करो और मुझे मार डालो, नहीं तो मैं तुम्हें मार डालूंगी. यही एकमात्र तरीका है जिससे तुम अपने बेटे को मुझसे हासिल कर सकते हो." आबिदा के इस रूप को देखकर सरवर अली दर गए और अपने बेटे पर किसी भी तरीके का अधिकार ना जताने को मना कर किया.
आबिदा हर महिला को करती inspire
Image Credits: Pinterest
आबिदा को रिबेल प्रिंसेस (Rebel Prinecess Of India) कहा जाता है. वह सच में देश की हर महिला के लिए आज भी एक inspiration है, क्योंकि आज के ज़माने में भी लड़कियों को दबा कर रखा जाता है. वह आज़ादी के भी पहले आज़ाद उड़ानों की शौक़ीन थी, और इसीलिए आज उनके जन्मदिन पर उनकी कहानियों को याद करना तो बनता है.