Southern india music के घरों में इनका नाम शायद ही किसी ने ना सुना हो! आवाज़ में एक divine feel थी इनके. MS Subbulakshmi का नाम carnatic music को अपने best पर पहुंचाने के लिए ही याद रखा जा रहा है आज तक. सुब्बुलक्ष्मी के घर वाले उन्हें कुंजम्मा कहते थे. मदुरई, तमिलनाडु (Madurai Tamilnadu) के संगीतकारों के घर में जन्मी थी सुब्बुलक्ष्मी. पिता वीणा वादक, मां देवदासी और दादी violinist थी.
MS subbulakshmi को संगीत किसे सिखाया?
ज़ाहिर सी बात है बेटी को भी संगीत के क्षेत्र से जुड़ना था. बहुत छोटी सी उम्र से उन्होंने carnatic music सीखना शुरू कर दिया. उन्होंने सेम्मनगुडी श्रीनिवास अय्यर से कर्नाटक संगीत में और पंडित नारायणराव व्यास से हिंदुस्तानी संगीत में ट्रेनिंग ली.
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सुब्बुलक्ष्मी ने अपना पहला performance 11 साल की उम्र में, वर्ष 1927 में, Rockfort Temple, तिरुचिरापल्ली (Tiruchirappali) में किया. इसके बाद 13 साल की उम्र में उन्होंने Madras Music University में भजन परफॉरमेंस दिया. उनके performance ने madras के हर व्यक्ति को मंत्रमुग्ध कर दिया था. उस वक्त से उनके प्रशंसक बन गए थे मद्रास के संगीतकार. उनकी एक आदत थी कि किसी भी नए गीत को लोगों के सामने पेश करने से पहले वह उसे भगवान के सामने गाया करती थी.
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MS Subbulakshmi ने कुछ तमिल फिल्मों में भी एक्टिंग (MS Subbulakshmi films) की. उनकी पहली फिल्म, सेवासदनम, मई 1938 को रिलीज़ हुई थी. K. Subramanyam द्वारा directed इस फिल्म में सुब्बुलक्ष्मी के opposite नतेसा अय्यर मुख्य कलाकार थीं. इसके बाद उनकी कुछ फिल्में जो हर इंसान ने खूब पसंद की, वो थी, Meerabai (1947), Savithiri (1941) और Meera (1945).
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करियर के शुरुआती दिनों में वे charity और राष्ट्रहित के लिए गाती थीं. महात्मा गांधी ने उन्हें अपने हाथ से ‘Thank you note’ लिखकर भेजा था. उस पर उन्होंने तमिल में हस्ताक्षर किया था! अंतिम दिनों में वे सुब्बुलक्ष्मी से उनकी आवाज़ में अपने पसंदीदा मीरा भजन की रिकॉर्डिंग चाहते थे. जब सुब्बुलक्ष्मी ने महात्मा गांधी को बताया कि उन्होंने अभी तक उस गाने में महारत हासिल नहीं की है, तब गांधी जी की प्रतिक्रिया थी,‘‘मैं उस भजन के छंदों को किसी और से गीत के रूप में सुनने के बजाय चाहूंगा कि सुब्बुलक्ष्मी उसका पाठ ही कर दें.’’
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जब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को उनके एक कॉन्सर्ट की अध्यक्षता करने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा था,‘‘Who am I, a mere Prime Minister before a Queen, a Queen of Music’’ अपने dressing sense की बात हो या गाने की, वे सच में किसी रानी से कम नहीं थी.
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उन्हें व्यापक रूप से सम्मानित और पुरस्कृत किया गया. इनमें से कुछ लोकप्रिय हैं, 1998 में भारत रत्न (Bharat ratna), 1954 में Padmabhushan,1956 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1968 में संगीता कलानिधि, 1974 में Ramon Magsaysay award, 1975 में Padma Vibhushan, 1975 में The Indian Fine Arts Society, Chennai द्वारा Sangeetha Kalasikhamani, 1988 में कालिदास सम्मान,1990 में इंदिरा गांधी पुरस्कार. 18 दिसंबर 2005 को उन पर एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया गया था.
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भारत में सुब्बुलक्ष्मी जैसे बहुत कम संगीतकार हुए जिन्हें आजतक आधे से ज़्यादा भारत सुनना पसंद करता है. Carnatic music को अपने चरम पर पहुंचाया है उन्होंने. उन्हें संगीत की रानी का दर्जा दिया गया था जो बिलकुल भी हैरानी की बात नहीं है आज तक. स्वभाव में सहज और निर्मल थी, एक साधारण जीवन जीती थी, लेकिन जब बात आती थी गाने की तो उनका मुकाबला करने वाला कोई भी नहीं था.